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मध्य प्रदेश के इन 4 शहरों में है प्रसिद्ध गणेश मंदिर, सभी से जुड़ी हैं चमत्कारी मान्यताएं

उज्जैन. किसी भी अनुष्ठान या पूजा-पाठ कार्यक्रम में भगवान गणेश (Shri Ganesh) की पूजा सबसे पहले होती है। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता भी कहा गया है। इन दिनों देशभर में गणेश उत्सव मनाया जा रहा है। इन दिनों में प्रमुख गणेश मंदिरों में दर्शनों के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ती है। आज हम आपको 4 ऐसे गणेश मंदिरों के बारे में बता रहे हैं जो बहुत ही प्रसिद्ध हैं। खास बात ये भी है कि ये चारों मंदिर एक राज्य यानी मध्य प्रदेश में स्थित हैं। यहां आम दिनों में भी हजारों की संख्या में भक्त दर्शन करने पहुंचते हैं और गणेश उत्सव में तो यहां भक्तों का सैलाब उमड़ता है। आगे जानिए कौन-से हैं वो 4 गणेश मंदिर…

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Asianet News Hindi
Published : Sep 17 2021, 12:20 AM IST
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यहां मिला था तानसेन को आशीर्वाद
‘उठि प्रभात सुमिरियै, जै श्री गणेश देवा, माता जा की पार्वती पिता महादेवा।’घरों में गाई जाने वाली ये वंदना संगीत सम्राट तानसेन की देन है। मान्यता है कि संगीत सम्राट तानसेन ने बेहट में स्थित शिवालय व गणेश मंदिर में बैठकर ही ‘श्रीगणेश स्तोत्र’की रचना की थी। बेहट के ऐतिहासिक झिलमिलेश्वर शिव मंदिर में तानसेन को आवाज मिली, वहीं गणेश मंदिर परिसर में वे संगीत का रियाज करते थे। ग्वालियर से 55 किमी दूर तानसेन की जन्म स्थली बेहट के ऐतिहासिक गणेश मंदिर की रोचक कहानी है। बचपन में हकलाने वाले तानसेन को उनके पिता बेहट के शिवालय के बगल में बने गणेश मंदिर में दर्शन के लिए लाए थे। मान्यता है कि यहीं गणेश जी के आशीर्वाद से तानसेन की हकलाहट दूर हुई थी और उन्हें मधुर आवाज का आशीर्वाद मिला।

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इस मंदिर में लिखाते हैं पाती के लगन 
उज्जैन (Ujjain) के चिंतामण गणेश मंदिर का निर्माण राजा विक्रमादित्य के शासनकाल में हुआ था। यहां पाती के लगन लिखाने और विवाह कराने की अनूठी परंपरा है। मान्यता है कि जिन लोगों के लगन नहीं निकल रहे, उनके विवाह बिना मुहूर्त के यहां कराए जाते हैं। विवाह के आयोजन के पहले श्रद्धालु निर्विघ्न विवाह के लिए चिंतामण गणेश को मना कर घर ले जाते हैं। विवाह हो जाने पर वर-वधु को आशीर्वाद दिलाने लाते हैं। मंदिर के गर्भगृह में तीन प्रतिमाएं हैं- चिंतामण, इच्छामण और सिद्धि विनायक। माना जाता है कि वनवास के दौरान भगवान श्रीराम, जानकी और लक्ष्मण यहां आए थे। उन्होंने यहां तीन प्रतिमाओं की स्थापना की थी।

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आधी जमीन में धंसी है ये गणेश प्रतिमा
सीहोर (Sehore) में चिंतामण सिद्ध गणेश में प्रतिमा आधी जमीन में धंसी है। मंदिर में स्थापित प्रतिमा को लेकर दो मान्यताएं हैं। पहली यह है कि प्रतिमा की स्थापना राजा विक्रमादित्य के शासनकाल में हुई थी। कहा जाता है विक्रमादित्य अपने देखे गए स्वप्न के आधार पर पार्वती नदी से प्राप्त कमल पुष्प को रथ पर लेकर जा रहे थे। रास्ते में रथ का पहिया जमीन में धंस गया और उस कमल से गणेश की यह प्रतिमा प्रकट होने लगी। विक्रमादित्य उसे निकालने का प्रयास कर रहे थे, पर वह जमीन में धंसने लगी। इसके बाद उन्होंने प्रतिमा यही स्थापित कर दी।
दूसरी मान्यता के अनुसार अपने साम्राज्य का विस्तार करने निकले पेशवा बाजीराव सीहोर पहुंचे तो यहां पार्वती उफान पर थी। लोगों ने बताया कि यहां गणेशजी स्वयं विराजमान हैं। उनकी आराधना करें तो उफान उतर जाएगा। उन्होंने प्रार्थना की तो ऐसा ही हुआ। उनके निर्देशानुसार यहां मंदिर का विस्तार कराया गया।। मंदिर श्रीयंत्र के कोणों पर स्थित है। तब इस कस्बे का नाम सिद्धपुर था।

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बावड़ी से निकली है ये गणेश प्रतिमा
इंदौर (Indore) के खजराना मंदिर की गणेश प्रतिमा पास ही एक बावड़ी में मिली थी। मंदिर का जीर्णोद्धार 1735 में शुरू हुआ। तत्कालीन होलकर घराने की इच्छा थी कि प्रतिमा को राजबाड़ा लेकर आएं और यहां मंदिर बनाकर स्थापित करें। इसके लिए कोशिशें शुरू हुईं, लेकिन गणेश प्रतिमा टस से मस नहीं हुई। अंतत: इसे भगवान की इच्छा मानकर वहीं मंदिर बनाने का निर्णय हुआ। आज भी बावड़ी उसी स्वरूप में परिसर में मौजूद है।

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