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भगवान श्रीकृष्ण के जीवन से सीखें लाइफ मैनेजमेंट के ये 8 सूत्र, हर मुश्किल हो सकती है आसान
उज्जैन. भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, द्वापर युग में इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। इस बार ये पर्व 12 अगस्त को है। श्रीकृष्ण का जीवन हम सभी के लिए एक आदर्श है। श्रीकृष्ण में ऐसे अनेक गुण थे, जो उन्हें परफेक्ट बनाते थे। दोस्ती निभाना हो या दांपत्य जीवन में खुशहाली, जीवन के हर क्षेत्र में उन्होंने सामंजस्य बनाए रखा था। आज हम आपको श्रीकृष्ण के कुछ ऐसे ही गुणों के बारे में बता रहे हैं, जिसे अपना कर हम भी अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं।
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1. मित्रता निभाना
अर्जुन, सुदामा व श्रीदामा श्रीकृष्ण के प्रमुख मित्र थे। जब-जब इनमें से किसी पर भी कोई मुसीबत आई, श्रीकृष्ण ने उनकी हरसंभव मदद की। आज भी श्रीकृष्ण और अर्जुन की मित्रता की मिसाल दी जाती है।
2. सुखी दांपत्य
ग्रंथों के अनुसार, श्रीकृष्ण की 16108 रानियां थीं। इनमें से 8 प्रमुख थीं। श्रीकृष्ण के दांपत्य जीवन में आपको कहीं भी अशांति नहीं मिलेगी। वे अपनी हर पत्नी को संतुष्ट रखते थे ताकि उनमें कोई मन-मुटाव न हो। श्रीकृष्ण की तरह हमें भी अपने दांपत्य जीवन में खुश रहना सीखना चाहिए।
3. रिश्ते निभाना
भगवान श्रीकृष्ण ने अपना हर रिश्ता पूरी ईमानदारी से निभाया। यहां तक कि अपने परिजन व अन्य लोगों के लिए द्वारिका नगरी ही बसा दी। माता-पिता, बहन, भाई श्रीकृष्ण ने हर रिश्ते की मर्यादा रखी।
4. युद्धनीति
महाभारत के युद्ध में जब-जब पांडवों पर कोई मुसीबत आई, श्रीकृष्ण ने अपनी युद्ध नीति से उसका हल निकाला। भीष्म, द्रोणाचार्य आदि अनेक महारथियों के वध का रास्ता श्रीकृष्ण ने ही पांडवों को सुझाया था।
5. सही-गलत का ज्ञान
जब गोकुलवासी बारिश के लिए इंद्रदेव की पूजा करते थे श्रीकृष्ण ने उन्हें समझाया कि बारिश करना तो इंद्र का कर्तव्य है। इसके लिए उनकी पूजा करना न करें। उसके स्थान पर गोवर्धन पर्वत की पूजा करना चाहिए, जो हमारे गौधन को समृद्ध करता है।
6. ऐसा हो बचपन
श्रीकृष्ण ने बचपन में माखन खाकर श्रेष्ठ भोजन का संदेश दिया। बांसुरी बजाकर हमें सिखाया कि शिक्षा के साथ-साथ हमें ललित कलाओं पर भी ध्यान देना चाहिए।
7. सही समय पर सही निर्णय
कंस का ससुर जरासंध बार-बार मथुरा पर हमला करता था, जिससे वहां की प्रजा परेशान रहती थी। श्रीकृष्ण जानते थे कि जरासंध का वध उनके हाथों नहीं लिखा। इसी कारण उन्होंने मथुरा से दूर द्वारिका नगरी बसाई और समय आने पर भीम के हाथों जरासंध का वध भी करवा दिया।
8. अपना वचन निभाना
शिशुपाल श्रीकृष्ण का रिश्तेदार था। श्रीकृष्ण ने उसकी माता को वचन दिया था कि वे शिशुपाल के 100 अपराध क्षमा करेंगे। श्रीकृष्ण अपने वचन निभाते हुए शिशुपाल को बार-बार क्षमा किया, लेकिन इसके बाद भी शिशुपाल नहीं माना, जिसके चलते श्रीकृष्ण ने उसका वध कर दिया।