आज से महालक्ष्मी व्रत प्रारंभ, 16 दिनों तक रोज इस विधि से करें देवी की पूजा
उज्जैन. भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को महालक्ष्मी व्रत किया जाता है। यह व्रत 16 दिनों तक चलता है, जिसका समापन आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को किया जाता है। इस बार महालक्ष्मी व्रत का प्रारंभ 26 अगस्त, बुधवार को हो रहा है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है। ये उत्सव मुख्य रूप से महाराष्ट्रीय परिवारों में मनाया जाता है।
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निचे बताई गई विधि से करें महालक्ष्मी व्रत और पूजा
बुधवार की सुबह स्नान आदि करने के बाद ये मंत्र बोलकर व्रत का संकल्प लें-
करिष्यsहं महालक्ष्मि व्रतमें त्वत्परायणा।
तदविघ्नेन में यातु समप्तिं स्वत्प्रसादत:।।
अर्थ- हे देवी, मैं आपकी सेवा में तत्पर होकर आपके इस महाव्रत का पालन करूंगा/करूंगी। मेरा यह व्रत निर्विघ्न पूर्ण हो।
इसके बाद एक साफ वस्त्र पर हाथी पर विराजित देवी महालक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। पूजा स्थल के आस-पास साफ-सफाई का ध्यान रखें।
देवी महालक्ष्मी को कुंकुम, चावल, रोली, आदि चीजें चढ़ाएं। शुद्ध घी का दीपक जलाएं। सुहाग की सामग्री अर्पित करें।
गाय के दूध से बनी खीर का भोग लगाएं। नारियल अर्पित करें। अंत में महालक्ष्मी का आरती करें।
इस विधि से 16 दिनों तक रोज देवी महालक्ष्मी की पूजा करें। ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
द्वापर युग में एक बार महालक्ष्मी का त्यौहार आया। हस्तिनापुर में गांधारी ने नगर की सभी स्त्रियों को पूजा का निमंत्रण दिया, लेकिन कुंती से नहीं कहा। गांधारी के 100 पुत्रों ने बहुत सी मिट्टी लाकर एक हाथी बनाया और उसे खूब सजाकर महल में बीचों बीच स्थापित किया।
सभी स्त्रियां पूजा के थाल लेकर गांधारी के महल में जाने लगी। इस पर कुंती बड़ी उदास हो गई। जब पांडवों ने कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि- मैं किसकी पूजा करूं? अर्जुन ने कहा मां, तुम पूजा की तैयारी करो मैं तुम्हारे लिए जीवित हाथी लाता हूं।
ऐसा कहकर अर्जुन इन्द्र के यहां गए और अपनी माता के पूजन हेतु ऐरावत हाथी को ले आए। कुंती ने उसकी पूजा की। जब यह बात अन्य महिलाओं को पता चली तो वे भी ऐरावत की पूजा करने कुंती के पास आ गई। इस तरह महालक्ष्मी व्रत पूर्ण हुआ।