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नर्मदा किनारे स्थित है ये ज्योतिर्लिंग, यहां दर्शन किए बिना अधूरे हैं सारे तीर्थ
| Published : Feb 19 2020, 06:41 PM IST
नर्मदा किनारे स्थित है ये ज्योतिर्लिंग, यहां दर्शन किए बिना अधूरे हैं सारे तीर्थ
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ये है ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा: शिवपुराण के अनुसार एक बार नारद मुनि पर्वतराज विंध्य के पास आए। नारद मुनि को आया देख विंध्य ने उनका आदरपूर्वक सत्कार व पूजन किया। विंध्य को इस बात का अभिमान था कि उसके उसे कभी किसी वस्तु की कमी नहीं होती। उसके मन का भाव जानकर नारद मुनि ने कहा कि तुम्हारे यहां सबकुछ है, लेकिन मेरु पर्वत तुमसे बहुत ऊंचा है, उसके शिखर देवलोक में भी दिखाई देते हैं। नारद मुनि के ऐसा कहने पर विंध्य का अभिमान दूर हो गया और वह भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या करने लगा। विंध्य की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उसे वरदान मांगने के लिए कहा। तब विंध्य ने भगवान शिव से कहा कि मेरी बुद्धि सदा आपके ध्यान में लगी रहे, ये वरदान दीजिए। भगवान शिव ने विंध्य को ये वरदान दे दिया। तभी वहां बहुत से देवता व ऋषि आए और उन्होंने महादेव से कहां कि आप यहां स्थिर रूप से निवास करें। भगवान शिव ने उनकी बात मान ली और उसी स्थान पर ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थिर हो गए।
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जिस पर्वत पर यह ज्योतिर्लिंग स्थापित है वहां ऊँ की आकृति दिखाई देती है। इसलिए इस ज्योतिर्लिंग का नाम ओंकारेश्वर है।
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धर्म ग्रंथों के अनुसार, यहां 68 तीर्थ स्थित हैं। यहां 33 करोड़ देवता परिवार सहित निवास करते हैं।
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कहते हैं कि पूर्व में देवी अहिल्याबाई होलकर की ओर से यहाँ रोज मिट्टी के 18 हजार शिवलिंग तैयार कर उनका पूजन करने के पश्चात नर्मदा में विसर्जित कर दिया जाता था।
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मान्यता है कि कोई भी तीर्थयात्री देश के भले ही सारे तीर्थ कर ले, किन्तु जब तक वह ओंकारेश्वर आकर किए गए तीर्थों का जल लाकर यहां नहीं चढ़ाता, उसके सारे तीर्थ अधूरे माने जाते हैं।