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Sawan First Somwar: आज है सावन का पहला सोमवार, 12 तस्वीरों में करें महादेव के 12 ज्योर्तिलिंग के दर्शन

Sawan First Somwar: हिंदू पंचांग का पांचवां महीना श्रावण (सावन) आज (14 जुलाई, गुरुवार) से शुरू हो चुका है, जो 11 अगस्त तक रहेगा। इस महीने का धर्म ग्रंथों में विशेष महत्व बताया गया है। मान्यता है कि इस महीने (Sawan 2022) में शिवजी की पूजा करने से हर तरह की परेशानी दूर हो सकती है इसलिए इस महीने में शिव मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ती है। देश में भगवान शिव के अनेक प्राचीन मंदिर हैं, लेकिन इन सभी में 12 ज्योतिर्लिंगों का महत्व सबसे अधिक है। वैसे तो इन ज्योतिर्लिंगों के दर्शन के लिए हर समय भक्तों की भीड़ लगी रहती है, लेकिन सावन में इनके दर्शन करना बहुत ही शुभ माना जाता है। सावन के पहले सोमवार यानी 18 जुलाई को घर बैठे करें 12 ज्योतिर्लिंगों (12 Jyotirlinga) के दर्शन...

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Manish Meharele
Published : Jul 14 2022, 10:21 AM IST| Updated : Jul 18 2022, 08:15 AM IST
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इस ज्योतिर्लिंग को पृथ्वी का पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यह गुजरात के सौराष्ट्र में स्थित है। मान्यता है, कि चंद्रमा ने दक्ष प्रजापति के श्राप से मुक्ति पाने के लिए इस स्थान पर शिवलिंग की स्थापना कर तपस्या की थी और यहीं शिव ने प्रकट होकर चंद्रमा को श्राप मुक्त किया था। चंद्रमा का एक नाम सोम भी प्रसिद्ध है। चंद्रमा द्वारा स्थापित होने के कारण ही इस ज्योतिर्लिंग को सोमनाथ कहा जाता है।
 

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ज्योतिर्लिंगों में मल्लिकार्जुन का स्थान दूसरा है। यह आन्ध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैल नाम के पर्वत पर स्थित है। मान्यता है कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। मान्यता के अनुसार, इस ज्योतिर्लिंग की पूजा से अश्वमेध यज्ञ के समान फल प्राप्त होते हैं। 
 

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ज्योतिर्लिंगों में महाकालेश्वर का स्थान तीसरा है। ये मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित है। 12 ज्योतिर्लिंगों में ये एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है। यहां रोज सुबह की जाने वाली भस्मारती विश्व भर में प्रसिद्ध है। उज्जैनवासी मानते हैं कि भगवान महाकालेश्वर ही उनके राजा हैं और वे ही उज्जैन की रक्षा कर रहे हैं। सावन में प्रत्येक सोमवार को भगवान महाकाल की सवारी निकाली जाती है, जिसे देखने लाखों भक्त यहां आते हैं।
 

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ये ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के इंदौर के समीप स्थित है। यह ज्योतिर्लिंग नर्मदा नदी के तट पर स्थित है। पहाड़ी के चारों ओर नदी बहने से यहां ऊं का आकार बनता है। यहाँ ॐकारेश्वर और मामलेश्वर दो पृथक-पृथक लिंग हैं, परन्तु ये एक ही लिंग के दो स्वरूप हैं। यह ज्योतिर्लिंग औंकार अर्थात ऊं का आकार लिए हुए है, इस कारण इसे ओंकारेश्वर नाम से जाना जाता है।
 

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केदारनाथ उत्तराखंड में स्थित है। केदारनाथ का वर्णन स्कंद एवं शिवपुराण में भी मिलता है। यह तीर्थ भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। जिस प्रकार कैलाश का महत्व है, उसी प्रकार का महत्व शिवजी ने केदार क्षेत्र को भी दिया है। शिखर के पूर्व की ओर अलकनन्दा के तट पर श्री बदरीनाथ अवस्थित हैं और पश्चिम में मन्दाकिनी के किनारे श्री केदारनाथ हैं।
 

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ज्योतिर्लिंगों में भीमाशंकर का स्थान छठा है। ये महाराष्ट्र के पूणे जिले में सह्याद्रि पर्वत पर स्थित है। इसे मोटेश्वर महादेव भी कहा जाता है। जो भक्त रोज इस ज्योर्तिलिंग के दर्शन करता है, उसके सात जन्मों के पाप दूर हो जाते हैं। भगवान शिव कई राक्षसों सहित कुंभकर्ण के पुत्र भीम का वध किया था।
 

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यह ज्योतिर्लिंग उत्तर प्रदेश के काशी में स्थित है। ये स्थान सप्तपुरियों में से एक है। मान्यता है कि प्रलय आने पर भी यह स्थान बना रहेगा। इसकी रक्षा के लिए भगवान शिव इस स्थान को अपने त्रिशूल पर धारण कर लेंगे और प्रलय के टल जाने पर काशी को उसके स्थान पर पुन: रख देंगे। गंगा तट स्थित काशी विश्वनाथ शिवलिंग दर्शन हिन्दुओं के लिए सबसे पवित्र है।
 

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ज्योतिर्लिंगों में त्र्यंबकेश्वर का स्थान आठवां है। यह महाराष्ट्र के नासिक जिले में स्थित है। इस ज्योतिर्लिंग के निकट ब्रह्मागिरि नाम का पर्वत है। इसी पर्वत से गोदावरी नदी शुरू होती है। मान्यता है कि भगवान शिव को गौतम ऋषि और गोदावरी नदी के आग्रह पर यहां ज्योतिर्लिंग रूप में रहना पड़ा।
 

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वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का मंदिर जहां है, उसे वैद्यनाथ धाम कहा जाता है। यह झारखंड के देवघर जिले में आता है। मान्यता है कि इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना रावण ने की थी। इस ज्योतिर्लिंग के बारे में कहा जाता है कि यहां पर आने वालों की सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इसलिए इस ज्योतिर्लिंग को कामना लिंग भी कहा जाता है।
 

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ज्योतिर्लिंगों में नागेश्वर का स्थान दसवां है। यह गुजरात के द्वारिका में स्थित है। नागेश्वर का अर्थ है नागों का ईश्वर। द्वारिका से नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की दूरी 17 मील की है। इस ज्योतिर्लिंग की महिमा में कहा गया है कि जो व्यक्ति पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ यहां दर्शन के लिए आता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है।
 

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भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक होने के साथ-साथ यह स्थान हिंदुओं के चार धामों में से एक भी है। यह तमिलनाडु के रामनाथपुरं स्थान में स्थित है। कहा जाता है कि इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना स्वयं भगवान श्रीराम ने की थी। भगवान राम के द्वारा स्थापित होने के कारण ही इस ज्योतिर्लिंग को भगवान राम का नाम रामेश्वरम दिया गया है।
 

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ज्योतिर्लिंगों में घुश्मेश्वर का स्थान बारहवां है। ये मंदिर औरंगाबाद शहर के समीप दौलताबाद के पास स्थित है। इसे घृसणेश्वर या घुश्मेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से यह अंतिम ज्योतिर्लिंग है। इस मंदिर का निर्माण देवी अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था। यहीं पर श्रीएकनाथजी गुरु व श्रीजनार्दन महाराज की समाधि भी है।
 

About the Author

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Manish Meharele
मनीष मेहरेले। मीडिया जगत में इनके पास 19 साल से ज्यादा का अनुभव है। वर्तमान समय में ये एशियानेट न्यूज हिंदी के साथ जुड़कर धर्म-आध्यात्म बीट पर काम कर रहे हैं। करियर की शुरुआत इन्होंने स्थानीय अखबार दैनिक अवंतिका से की थी। इसके बाद वह दैनिक भास्कर प्रिंट उज्जैन में वाणिज्य डेस्क प्रभारी रहे और 2010-2019 तक दैनिक भास्कर डिजिटल में धर्म डेस्क पर काम किया। इन्हें महाभारत, रामायण जैसे धार्मिक ग्रंथों का अच्छा ज्ञान है। इनके पास जीव विज्ञान में बीएससी स्नातक की डिग्री है।

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