कौन है रामा सिंह, जिसने रोक दिया था रघुवंश का विजय रथ,लंबी चौड़ी है अपराधों की लिस्ट
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रामा किशोर सिंह उर्फ रामा सिंह का नाम 90 के दशक में तेजी से उभरा था। उनकी दोस्ती अपने समय के डॉन अशोक सम्राट से हुआ करती थी। वो वैशाली ही नहीं, बल्कि पूरे उत्तर बिहार में बादशाहत का सपना देख रहे थे। लेकिन, इसी दौरान अशोक सम्राट हाजीपुर में पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारा गया था।
रामा सिंह तो वैसे कई बार चर्चा में रहे, लेकिन उनका पुलिस फाइल में बड़ा नाम तब आया जब वह विधायक बन गए। बताते हैं कि 2001 में छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के कुम्हारी इलाके में 29 मार्च 2001 को पेट्रोल पंप व्यवसायी जयचंद वैद्य का अपहरण हुआ था। अपहरणकर्ता जयचंद को उनकी कार के साथ ले गए थे। इस केस में रामा सिंह को छत्तीसगढ़ की अदालत में सरेंडर कर जेल भी जाना पड़ा था।
1996 से लगातार 5 बार वैशाली सीट पर राजद का झंडा गाड़ने वाले रघुवंश सिंह का विजय रथ भी 2014 में लोजपा के रामा सिंह ने ही रोका था। उसके बाद 2019 में भी उनके खिलाफ ही रामा गोलबंदी में रहे, जबकि उनकी सीट पर लोजपा ने वीणा देवी को उतारा था। इतना ही नहीं वैशाली सीट पर रामा सिंह हमेशा उनके खिलाफ रहे।
रामा सिंह पांच बार विधायक रहे हैं । 2014 के मोदी लहर में राम विलास पासवान की लोजपा से वैशाली से सांसद चुने गए। उन्होंने आरजेडी के कद्दावर नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह को हराया था। इसी हार के बाद रघुवंश प्रसाद रामा सिंह का नाम तक नहीं सुनना चाहते थे।
2014 के लोकसभा चुनाव के बाद रघुवंश प्रसाद सिंह ने जयचंद वैद अपहरण कांड को ही आधार बना कर पटना हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। आरजेडी नेता रघुवंश प्रसाद सिंह का आरोप था कि चुनाव आयोग को दिए गए शपथ पत्र में रामा किशोर सिंह ने वैद अपहरण कांड से संबंधित जानकारी नहीं दी है, इसलिए लोकसभा की उनकी सदस्यता रद्द की जानी चाहिए।
2014 में सांसद बनने के बाद 2019 में एलजेपी ने रामा सिंह को टिकट नहीं दिया था। यहां से वीणा देवी को प्रत्याशी बनाया गया था। तभी से यह कयास लगाए जा रहे थे कि आने वाले दिनों में रामा सिंह एलजेपी को अलविदा कहने के बाद कोई बड़ी पार्टी ज्वाइन कर सकते हैं।
20 साल की दुश्मनी और हार के कारण रघुवंश गुस्से में थे, जबकि लालू प्रसाद की अनुपस्थिति में 2019 के लोकसभा चुनाव और फिर 2020 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए भी तेजस्वी यादव रामा सिंह को राजद में लाने के लिए प्रयासरत थे। इसी के गुस्से में रघुवंश ने पहले उपाध्यक्ष का पद छोड़ा और फिर पार्टी से इस्तीफा दिया था।