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रईस जमींदार का बेटा था नटवर लाल, शातिर इतना कि अच्छे-अच्छों को बनाया शिकार; '113 साल' की मिली थी सजा
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नटवरलाल का असली नाम मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव था। उसका जन्म 1912 में बिहार के सीवान जिले के बांगरा गांव में एक रईस जमींदार रघुनाथ श्रीवास्तव घर में हुआ था। मिथिलेश पढ़ाई की बजाय फुटबॉल और शतरंज को पसंद करता था। बताते हैं कि मैट्रिक की परीक्षा में फेल होने के बाद पिता ने इतना मारा कि वो कलकत्ता भाग गया। उस समय उसकी जेब में सिर्फ पांच रुपए थे। कलकत्ता में बिजली के खंभे के नीचे पढ़ाई की। बाद में सेठ केशवराम नाम के एक व्यापारी ने उसे बेटे को ट्यूशन पढ़ाने के लिए रख लिया। सेठ से अपनी स्नातक की पढ़ाई के लिए पैसे उधार मांगा तो उसने इनकार कर दिया। वह इतना चिढ़ा कि उसने रुई की गांठ खरीदने के नाम पर उस जमाने में सेठ से 4.5 लाख रुपये ठग लिए। संभवत यह उसकी ठगी का पहला मामला था।
नटवरलाल ने एलएलबी की और कलकत्ता में वकालत भी करने लगा। उसका हुनर ऐसा था कि वह एक ही नजर में किसी के भी हस्ताक्षर कर लेता था। बताते हैं कि उसने अपने पड़ोसी के नकली हस्ताक्षर कर बैंक से एक हजार रुपए निकाले थे।
एक बार नटवार लाल के पड़ोस के गांव में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद आए हुए थे। जहां उनके सामने भी अपने हुनर का प्रदर्शन किया था और राष्ट्रपति के भी हुबहू हस्ताक्षर कर सबको हैरान कर दिया था। बताते हैं कि इस दौरान उसने राष्ट्रपति से कहा कि यदि आप एक बार कहें तो मैं भारत पर विदेशियों का पूरा कर्ज चुका सकता हूं और वापस कर उन्हें भारत का कर्जदार बना सकता हूं। राजेन्द्र प्रसाद भी सीवान जिले के ही हैं।
बताते हैं कि अगस्त 1987 में कनॉट प्लेस में घड़ी के बड़े शोरूम में कार से पहुंचा। वित्तमंत्री नारायण दत्त तिवारी के पर्सनल स्टाफ के रूप में अपना परिचय दिया। कहा कि पीएम राजीव गांधी ने एक मीटिंग बुलाई है, जिसमें शामिल होने वाले सभी लोगों को वे घड़ी भेंट करना चाहते हैं। 93 घड़ी चाहिए। शोरूम मालिक घड़ी पैक कर ले लिया और एक स्टाफ को अपने साथ नॉर्थ ब्लॉक ले गया। वहां उसने स्टाफ को भुगतान के तौर पर 32,829 रुपए का बैंक ड्राफ्ट दिया। दो दिन बाद जब शोरूम मालिक ने ड्राफ्ट जमा किया तो पता चला कि बैंक ड्राफ्ट फर्जी है।
नटवरलाल को जब पता चला कि अमिताभ बच्चन के अभिनय वाली फिल्म उसके नाम "नटवरलाल" पर बन रही है तो फिल्म के निर्माता-निर्देशक के खिलाफ कोर्ट में केस दायर कर दिया। काफी मिन्नतों के बाद वह तीन लाख रुपये लेकर केस वापस करने पर राजी हुआ। बताते हैं कि इस फिल्म से उसकी खूब शोहरत बढ़ी। फिल्म उसके कारनामों से प्रेरित बताई जाती है।
1996 में नटवरलाल को पुलिस कानपुर जेल से दिल्ली के एम्स में इलाज के लिए लेकर गई थी। चेकअप के बाद जब वापस ले जाने के लिए पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंची तो नटवरलाल जोर-जोर से हांफने लगा। एक हवलदार दवाई तो दूसरे को पानी लाने के लिए भेजा। आखिरी हवलदार से कहा- भैया तुम वर्दी में हो और मुझे बाथरूम जाना है। तुम रस्सी पकड़े रहोगे तो मुझे जल्दी अंदर जाने देंगे क्योंकि मुझसे खड़ा नहीं हुआ जा रहा। भीड़ भाड़ में नटवरलाल कब हाथ से रस्सी निकालकर गुम हो किसी को भनक तक नहीं लगी।
2009 में नटवरलाल के वकील ने कोर्ट में अर्जी दायर की, जिसमें कहा गया कि नटवारलाल के खिलाफ दायर 100 से ज्यादा मामलों को रद्द कर दिया जाए। क्योंकि 25 जुलाई 2009 को उसकी मृत्यु हो गई है। हालांकि नटवरलाल के भाई गंगा प्रसाद श्रीवास्तव का कहना है कि नटवरलाल की मृत्यु सन 1996 में ही हो गई थी और उनका रांची में अंतिम संस्कार किया गया था। नटवरलाल के खिलाफ आठ राज्यों में 100 से ज्यादा मामलों में जो फैसले हुए उसके मुताबिक उसे 113 साल की सजा हो चुकी है और वह आठ बार जेल से भाग चुका था।