ये हैं बिहार की 8 निजी सेनाएं, इनके नरसंहार की फोटो देखकर खामोश हो गई थी दुनिया
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सबसे पहले 1971 में दो निजी सेनाएं लालसेना और लाल स्क्वायड बनी थी, इसके बाद 1978 में कुंवर सेना, फिर 1979 में भूमि सेना, 1981 में ब्रम्हर्षी सेना, 1985 में लोरिक सेना, 1989 में सनलाइट सेना और 1994 रणवीर की निजी सेनाएं बनी थी।
(फाइल फोटो)
बताते हैं कि लालसेना और लाल स्क्वायड की निजी सेनाएं उग्र वामपंथियों की थीं, जबकि शेष अन्य सभी 6 सेनाएं भू-स्वामियों, मुस्लिमों, ऊंची जातियों की थीं, जो जायदाद और इलाके पर अपने वर्चस्व की लड़ाई लड़ा करती थी और चुनावों में भी हिस्सा लेती थी।
(फाइल फोटो)
साल 1977 में पटना के बेल्छी गाांव में एक खास पिछड़ी जाति के लोगों ने 14 दलितों की हत्या कर दी थी। गया जिले के बारा गांव में माओवादियों ने 12 फरवरी 1992 को अगड़ी जाति के 35 लोगों की गला रेत कर हत्या कर दी थी।
(फाइल फोटो)
बात अगर साल 1994 से 1997 तक की ही करें तो एक हजार से ज्यादा लोग इन निजी सेनाओं द्वारा किए गए नरसंहार में मारे गए थे।
(फाइल फोटो)
एक दिसंबर 1997 को हुए लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार को लोग आज भी भूला नहीं पाते हैं, क्योंकि तब निचली जाति के करीब 60 लोग मौत की घाट उतार दिए गए थे। जिसे एक उच्च जाति द्वारा समर्थित रणवीर सेना ने अंजाम दिया था। बताते हैं कि कुछ परिवारों में तो सिर्फ बच्चे ही जीवित बचे थे।
(फाइल फोटो)
रणवीर सेना के इस नरसंहार का बदला दूसरे निजी सेनाओं के लड़ाकों ने 10 जनवरी 1998 को लिया था, जिन्होंने रणवीर सेना के 10 समर्थकों की निर्मम हत्या कर दी थी। लेकिन, फिर, 25 जनवरी 1999 की रात बिहार के जहानाबाद जिले में हुए शंकर बिगहा नरसंहार में 22 दलितों की हत्या कर दी गई थी।
(फाइल फोटो)
18 मार्च, 1999 की रात जहानाबाद जिले के सेनारी गांव में एक खास अगड़ी जाति के 34 लोगों की गला रेत कर हत्या कर दी गई थी। उस समय इस नरसंहार में प्रतिबंधित संगठन माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी) को शामिल माना गया था। इसी तरह औरंगाबाद जिले के मियांपुर में 16 जून 2000 को 35 दलित लोगों की हत्या कर दी गई थी
(फाइल फोटो)
बिहार विभाजन, झारखंड गठन, पुलिस सुरक्षा, चुनाव सुधार और सरकार की नीतियों की वजह से इन निजी सेनाओं का आतंक धीरे-धीरे खत्म हो गया। इसका मुख्य चुनाव आयुक्त रहे टीएन शेषन को भी जाता है, जिन्होंने चुनाव में कड़ाई कराना शुरू किया तो इन सेनाओं की भूमिका कम होती गई और सामाजिक सुधार को बल मिला।
(फाइल फोटो)