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एक डर की वजह से कादर खान को काबुल से मुंबई ले आई थी मां, गरीबी इतनी कि मस्जिद के सामने मांगते थे भीख
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कादर खान से पहले उनकी मां के तीन बेटे हुए थे लेकिन सभी की 8 साल की उम्र पूरी होते-होते मौत हो जाती थी। कादर के जन्म के बाद उनकी मां बेहद डर गई थीं, जिसके चलते उन्होंने भारत आने का फैसला किया और मुंबई आ गई थीं।
कादर खान जब एक साल के थे तभी उनके माता-पिता का तलाक हो गया था। कुछ बड़े होने पर कादर खान मुंबई के डोंगरी इलाके में बनी एक मस्जिद के बाहर भीख मांगते थे। दिन-भर में बमुश्किल एक-दो रुपए मिलते थे, उससे उनके घर का चूल्हा जलता था।
बेहद कम उम्र में जब कादर खान पहली बार काम पर जाने वाले थे, तब उनकी मां ने उनसे कहा था कि ये तीन-चार पैसे कमाने से कुछ नहीं होगा। अभी वो बहुत छोटे हैं तो सिर्फ अपनी पढ़ाई पर ध्यान दें, बाकी सारी मुसीबत उनकी मां झेल लेगी।
कादर खान बचपन में रात के वक्त कब्रिस्तान जाया करते थे। मुंबई में कादर खान रोज रात को अपने घर के पास वाले कब्रिस्तान जाते थे और वहां जाकर रियाज करते थे। ऐसे ही एक दिन वे वहां रियाज कर रहे थे तभी अचानक एक टॉर्च की लाइट उनके चेहरे पर आई। टॉर्च की रोशनी करने वाले आदमी ने कादर खान से पूछा कब्रिस्तान में क्या कर रहे हो।
इसके जवाब में कादर खान ने कहा- रियाज कर रहा हूं। मैं दिनभर में जो कुछ भी अच्छा पढ़ता हूं, रात में उसका यहां आकर रियाज करता हूं। कादर की बात सुन वो शख्स उनसे काफी प्रभावित हुआ और उन्हें नाटकों में काम करने की सलाह दी। इसके बाद कादर खान ने नाटकों में काम करना शुरू कर दिया। उस टॉर्च वाले शख्स का नाम था अशरफ खान।
बता दें कि कादर खान ने जब साल 1977 में फिल्म 'मुकद्दर का सिकंदर' लिखी तो ये वाकया उस फिल्म का एक अहम सीन बना। फिल्म में जब बच्चा कब्रिस्तान में जा कर रोता है तभी उसकी मुलाकात एक फकीर से होती है। हालांकि, ये बात बाद में कादर खान के एक इंटरव्यू से पता लगी कि ये किस्सा उनके खुद की जिंदगी से जुड़ा था।
रिपोर्ट्स की मानें तो कादर खान ने प्लानिंग की थी कि वे अमिताभ बच्चन के साथ फिल्म बनाएंगे। लेकिन फिल्म 'कुली' (1982) के सेट पर अमिताभ बुरी तरह घायल हो गए। वे कई महीने अस्पताल में रहे। इस बीच कादर भी दूसरे प्रोजेक्ट्स में बिजी हो गए और 'जाहिल' बनाने का प्लान आया-गया हो गया।
बाद में जब बिग बी ठीक हुए, तब एक बार फिर कादर खान के मन में अपनी ख्वाहिश पूरी करने का विचार आया। लेकिन तब अमिताभ ने राजनीति में आने का फैसला लिया और कादर खान की फिल्म नहीं बन सकी। राजनीति में आने की वजह से कादर खान और अमिताभ के रिश्ते भी खराब हो गए थे।
कादर खान का सिनेमा से नाता करीब 44 साल का रहा। उन्होंने इतने सालों में सैकड़ों फिल्मों में काम किया। उन्होंने कई फिल्में लिखी और कई के लिए डायलॉग भी लिखे। उनके निभाए किरदारों को लोग आज भी याद करते हैं। कभी उन्होंने दर्शकों को अपने काम से गुदगुदाया तो कभी गंभीर और निगेटिव रोल करके उन्हें बांधे भी रखा।
कादर खान ने करियर की शुरुआत 1973 में आई फिल्म 'दाग' से की थी। इसके अलावा उन्होंने 'अदालत' (1976), 'परवरिश' (1977), 'दो और दो पांच' (1980), 'याराना' (1981), 'खून का कर्ज' (1991), 'दिल ही तो है' (1992), 'कुली नं. 1' (1995), 'तेरा जादू चल गया' (2000), 'किल दिल' (2014) सहित कई फिल्मों में काम किया है। वे आखिरी बार 2015 में आई फिल्म 'हो गया दिमाग का दही' में नजर आए थे।
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