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Sidhu Moose Wala की तरह ही हुई थी पंजाब के इस 28 साल के सिंगर की हत्या, उम्र, वजह, तरीका, सब एक जैसा
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घटना 8 मार्च 1988 को दोपहर के करीब 2 बजे पंजाब के मेहसानपुर जिले के स्लीपी गांव में घटी थी। अमर सिंह चमकीला पत्नी अमरजोत कौर और अपने ट्रूप के साथ एक कार में सवार होकर कहीं जा रहे थे। अचानक एक आदमी ने उन पर गोलियां बरसानी शुरू कर दीं, जिससे उनकी, अमरजोत और ट्रूप के अन्य दो लोगों की मौके पर ही मौत हो गई।
घटना के वक्त अमर सिंह चमकीला के साथ कार में मौजूद रहे ढोल बजाने वाले लाल चंद ने एक इंटरव्यू में बताया था, "मैं कार से बाहर आया और अपना ढोल लेकर चलने लगा। मेरे पीछे एक 6 फीट लंबा आदमी AK-47 लिए अपनी कार से बाहर आया और गोलियां बरसानी शुरू कर दीं।"
लाल चंद के मुताबिक़, इस दौरान उन्होंने अपना ढोल वहीं छोड़ा और खेतों की ओर दौड़ लगा दी। उन्होंने यह भी देखा कि जब अमरजोत ने हत्या करने वाले शख्स को पकड़ने की कोशिश की तो उनके सीने में गोली मार दी गई।
लाल चंद बताते हैं, "उन्होंने (हत्यारों) हरिजीत सिंह गिल नाम के संगीतकार को भागने के लिए कहा और बोले कि अगर उसने पलटकर देखा तो उसे गोली मार दी जाएगी। वह रोने लगा और जिंदगी की भीख मांगने लगा। लेकिन हत्यारों का दिल नहीं पसीजा, उन्होंने उसके सीने में भी गोली उतार दी।
जिस वक्त अमर सिंह चमकीला को गोली मारी गई, उस वक्त वे महज 28 साल के थे और पंजाबी म्यूजिक इंडस्ट्री के चमकते सितारे थे। उनके गानों में हीर-रांझा, मिर्जा-साहिबा जैसे एपिक कहानियों की झलक मिलती थी।
अमर सिंह चमकीला के गानों का दूसरा पहलू यह था कि उनमें डबल मीनिंग शब्द मिलते थे, जिनमें एक्स्ट्रामैरिटल अफेयर्स, शराब , ड्रग्स एब्यूज जैसे टॉपिक को भी कवर किया जाता था। यूथ के बीच उन्हें 'एल्विस ऑफ़ पंजाब' के नाम से जाना जाता था।
नोट: एल्विस प्रेसली अमेरिका के मशहूर सिंगर रहे हैं, 1950 से 1970 के दशक तक एक्टिव रहे।
चमकीला के उत्तेजक गीतों ने जितने प्रशंसक बनाए थे, उतने ही अपने खिलाफ विरोधी भी इकट्ठे कर लिए थे। बताया जाता है कि हत्या से पहले उन्हें भी सिद्धू मूसेवाला की तरह जान से मारने की धमकी मिल रही थी।
चमकीला हत्याकांड की गुत्थी अब भी अनसुलझी है। इस मामले में कभी किसी बंदूकधारी को गिरफ्तार नहीं किया गया। पंजाब में आज भी यह विषय चर्चा में रहता है कि चमकीला की हत्या किसी खालिस्तान समर्थक ने की थी या फिर घटना को अंजाम देने वाला उनका ही कोई प्रतिद्वंद्वी था। क्योंकि उस वक्त पंजाब में खालिस्तान विद्रोह ज़ोरों पर था और राज्य से आए दिन हत्याओं और बम विस्फोटों की ख़बरें आ रही थीं।
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