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रेखा ने 14 की उम्र में की थी जिंदगी ख़त्म करने की कोशिश, बच गईं तो मां ने दिए थे 3 ऑफर
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यह 1968 की बात है। रेखा ने एक सुसाइड नोट छोड़ा, जिसमें उन्होंने लिखा था कि वे फिर से अपनी परीक्षा में फेल हो गई हैं और अब जीना नहीं चाहती हैं। किताब में इस बात का जिक्र तो नहीं है कि रेखा ने ख़ुदकुशी की कोशिश कैसे की थी। लेकिन यह जरूर बताया गया है कि डॉक्टर्स की कई घंटों की कोशिश के बाद उन्हें बचा लिया गया था।
जब रेखा ने अस्पताल में अपनी आंखें खोलीं तो उन्होंने देखा कि उनकी मां पुष्पावली की आंखों में आंसू भरे हुए थे। वे उनकी दाईं ओर बैठी थीं। पुष्पावली ने रेखा को दोबारा हिम्मत जुटाने में मदद की। दोनों के बीच बात हुई और पुष्पावाली ने रेखा से पूछा कि वे अपनी जिंदगी में क्या करना चाहती हैं?
पुष्पावली ने उनके सामने तीन ऑफर रखे। उन्होंने कहा कि वे शादी कर लें या फिर वे उनकी फिल्मों में एंट्री में मदद कर सकती हैं, क्योंकि वे ट्रेंड डांसर थीं या फिर वे अपनी पढ़ाई पूरी कर सकती हैं। रेखा के पास तीन विकल्प थे फिल्म, शादी या पढ़ाई।
रेखा के दिमाग में दूर-दूर तक फिल्मों में आने का विचार नहीं था। क्योंकि उन्होंने ग्लैमर इंडस्ट्री के काले पहलू को बेहद करीब से देखा था लेकिन उनकी किस्मत में हीरोइन बनना ही लिखा था। वे घर चलाने के लिए मां पुष्पावली की उम्मीद थीं। उन्हें ना चाहते हुए भी फ़िल्मी दुनिया में आना पड़ा।
बकौल रेखा, "मुझे 9वीं कक्षा से निकालकर 14 की उम्र में काम पर लगा दिया गया। उस वक्त इन सब बातों का कोई मतलब नहीं था। मैं परिवार की लाड़ली बच्ची थी। मुझे हमेशा वह सबकुछ दिया गया, जो मैं चाहती थी।"
रेखा ने आगे कहा था, "मुझे ऐसा लग रहा था कि हम खुश हैं और संपन्न हैं। मैं नहीं जानती थी कि मेरी मां कितने कर्ज में डूबी हुई है। इसलिए फिल्मों में काम करने का विचार मुझे बिल्कुल भी रास नहीं आया।मैं सेट पर जाने से मना कर देती थी और कभी-कभी मेरा भाई मुझे पीट भी देता था।"
रेखा ने फिल्मों एंट्री के लिए कड़ा संघर्ष किया। साउथ इंडियन सिनेमा के सुपरस्टार जैमिनी गणेशन की बेटी होने के बावजूद उन्हें स्टूडियोज के बाहर लाइन में लगकर अपनी बारी का इंतजार करना पड़ा। चिलचिलाती गर्मी से जूझीं। कन्नड़ और तमिल फिल्मों में छोटे-मोटे रोल मिले, लेकिन फीस बेहद कम मिली।
बाद में रेखा मुंबई आ गईं और उन्हें पहली फिल्म मिली 'अनजाना सफ़र', जिसका नाम बाद में 'दो शिकारी' कर दिया गया था। 1969 में रेखा को मुंबई आए एक महीना ही हुआ था और उनके हाथ में चार फ़िल्में थीं। 'दो शिकारी', 'मेहमान', 'हसीनों का देवता' और 'सावन भादों'। इसके बाद रेखा ने कभी पीछे पलटकर नहीं देखा।
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