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ऑफिसों में शौचालय साफ करने वाला बना था IAS अफसर, ऐसा है अनाथ आश्रम से जिला अधिकारी बनने तक का सफर
नई दिल्ली. होसले मजबूत हो तो मुश्किले भी रास्ता रोकती नहीं बल्कि नया रास्ता बना देती हैं। ऐसे ही एक गरीब लड़के ने अनाथ आश्रम में जिंदगी गुजारी, रोटी के लाल्हे पड़े लेकिन उसने खुद को दूसरों के लिए मिसाल बना डाला। ये कहानी है एक आईएएस अफसर की जिसकी मां गरीबी के कारण उसे अनाथ आश्रम छोड़ गई थी। मां मजबूर थी बच्चे को पाल नहीं सकती थी। इसलिए कलेजे के टुकड़े को दूसरों के हवाले छोड़ दिया पर उसे क्या पता था यही बच्चा जो आज बोझ लग रहा है एक दिन बड़ा होकर देश का अधिकारी बनकर नाम रोशन कर देगा।
| Published : Jan 26 2020, 02:14 PM IST / Updated: Jan 26 2020, 07:15 PM IST
ऑफिसों में शौचालय साफ करने वाला बना था IAS अफसर, ऐसा है अनाथ आश्रम से जिला अधिकारी बनने तक का सफर
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ये कहानी है अब्दुल नसर की। अब्दुल घर में छह भाई बहनों में सबसे छोटे थे। जब पांच साल के थे तो उनके पिता की मौत हो गई। गरीबी के कारण मां मंजूनम्मा ने उन्हें अनाथालय में छोड़ दिया। कुछ साल बाद मां की भी मौत हो गई। अब्दुल ने हौसला नहीं छोड़ा और जी जान से पढ़ाई में जुटे रहे।
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एक अनाथ बच्चा कैसे देश का बड़ा अधिकारी बना ये कहानी मार्मिक है। उसके सिर पर किसी का साया नहीं था लेकिन सपने थे। अब्दुल की बचपन में पढ़ाई अनाथालय के ही प्राइमरी स्कूल में हुई। पढ़ाई के बाद उन्होंने इंग्लिश से ग्रेजुएशन और फिर पोस्ट ग्रेजुएशन किया। अब्दुल इस दौरान खर्चा चलाने के लिए त्रिवेंद्रम और कोजीकोड में कई नौकरियां करने लगे।
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देश का बड़ा अफसर बनने से पहले ये गरीब अनाथ लड़का दूसरों की जूठन उठाता। अब्दुल ने एक इंटरव्यू में बताया कि उन्होंने होटल और दुकानों में बतौर डिलीवरी बॉय और क्लीनर नौकरी की। जब वह 16 साल के थे तो उन्होंने कैशियर, न्यूजपेपर डिस्ट्रीब्यूटर, एसटीडी बूथ ऑपरेटर और ट्यूशन टीचर तक का काम किया।
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ऐसे ही संघर्षों को पार करते हुए अब्दुल की जिंदगी में एक सुनहरा दिन भी आया। वे अब्दुल का चयन बतौर हेल्थ इंस्पेक्टर हो गया। अब्दुल ने हेल्थ इंस्पेक्टर की नौकरी के बावजूद उन्होंने सिविल सर्विस की परीक्षा नहीं छोड़ी।
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अब्दुल दूसरे कॉम्पिटेटिव परीक्षा की तैयारी करने लगे। साल 1994 में केरला पब्लिक सर्विस कमिशन ने डिप्टी कलेक्टर का नोटिफिकेशन निकाला तो उन्होंने इस परीक्षा में पास होने की ठानी।
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वह डिप्टी कलेक्टर के तौर पर सीधे भर्ती चाहते थे। उनका मानना था कि वह अगे चलकर प्रमोशन के जरिए आईएएस की रैंक हासिल कर सकते हैं। ऐसे में उनका कलेक्टर बनने का सपना पूरा हो सकता था। अब्दुल के दिमाग में सिर्फ आईएएस के लक्ष्य तक पहुंचना था।
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और आखिरकार अब्दुल का चयन साल 2006 में बतौर डिप्टी कलेक्टर हो गया था। केरला में 11 साल तक सेवा देने के बाद साल 2017 में वह आईएएस ऑफिसर के पद पर प्रमोट हो गए। वह केरल के कोल्लम जिले के कलैक्टर बन गए।