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पिता की हत्या के बाद डरा सहमा रहता था परिवार, बेटे ने IPS अफसर बन कर दुश्मनों को ऐसे दिया जवाब
नई दिल्ली. राजधानी के उत्तर पूर्वी इलाके में फैली हिंसा में अब तक 42 लोगों की मौत हो गई है। इन दंगों में एक पुलिस अधिकारियों ने अपनी जान को दांव पर लगाकर कई परिवारों की जान बचाई है। पुलिस अधिकारी नीरज जादौन दिल्ली हिंसा में हीरो बनकर छा गए हैं। उन्होंने उपद्रवियों से कई परिवारों की जान बचा ली। इतना ही नहीं नीरज ने इस दौरान प्रोटोकॉल का भी ध्यान नहीं रखा। नीरज कुमार जादौन 2015 बैच के आईपीएस अफसर हैं। वे एंटी रोमियो स्क्वॉड के प्रभारी रहे हैं। जादौन के संघर्ष की बात की जाए तो उनका सिविल सेवा में आने का सफर भी काफी प्रेरणात्मक रहा है। किसान पिता की हत्या के बाद वो इतने गुस्से में थे कि पुलिसवाला बनने की ठान ली थी। IAS- IPS सक्सेज स्टोरी में हम आपको दिल्ली हिंसा में सुपरहीरो बनकर सुर्खियों में छाए नीरज जादौन के संघर्ष की कहानी सुना रहे हैं......
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दिल्ली हिंसा में एसपी नीरज सुपरहीरो बनकर सामने आए हैं। चौतरफा उनके जज्बे और हिम्मत की चर्चा हो रही है। दंगे में बौखलाई भीड़ के सामने वो प्रोटोकॉल तोड़कर लोगों की जान बचाने कूद पड़े। इसके बाद वे सोशल मीडिया पर छाए हुए हैं। यूपी के जालौन जनपद के नौरेजपुर गांव के रहने वाले नीरज कुमार एक मामूली किसान के बेटे हैं।
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उनके पिता सिर्फ 12वीं तक पढ़े थे, जबकि उनकी मां आशा देवी 8वीं तक। 5 भाई-बहनों में सबसे बड़े नीरज की स्कूलिंग कानपुर में हुई। नीरज ने बीएचयू से साल 2005 में बीटेक की डिग्री पूरी की थी। उसके तुरंत बाद उनकी नौकरी नोएडा की एक कंपनी में लग गई, जहां उन्होंने एक साल तक काम किया।
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नीरज ने एक इंटरव्यू में मीडिया को बताया, "6 दिसंबर 2008 का वो काला दिन कभी नहीं भूल सकता, जब खेत के विवाद में मेरे पिता की गोली मारकर हत्या कर दी गई। मैं तब 26 साल का था।" 2008 में जब पिता का मर्डर हुआ तो वे बुरी तरह टूट गए थे। पिता की हत्या के बाद इनकी मां, बहन उपासना और भाई पंकज, रोहित व राहुल दादा कम्मोद सिंह जादौन के पास रहने लगे था।
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तब नीरज ब्रिटिश टेलिकॉम कंपनी की बेंगलुरु ब्रांच में 22 लाख के पैकेज पर जॉब कर रहे थे। इस कंपनी में वे 2013 तक रहे। वो अपने पिता को इंसाफ दिलाने के लिए केस लड़ रहे थे। उनकी मां डरती थीं कि कहीं बदमाश बेटे को पिता की तरह न मार दें, इसलिए उन्होंने बेटे की जल्दी ही शादी करवा दी।
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नीरज अपने पिताजी के मर्डर केस को लेकर कोर्ट-कचहरी की भाग-दौड़ करते रहे। मर्डर केस में पुलिस का जो रवैया था उस पर उनके दिल-दिमाग में गुस्सा भरा था। तभी उन्होने IPS बनने की ठान ली थी। नीरज ने बताया, "मैं जॉब करते हुए केस लड़ रहा था। एक तरफ तो मेरे पास बेहतरीन जॉब थी, लेकिन पिताजी को इंसाफ दिलाने के लिए पुलिस प्रशासन के आगे गिड़गिड़ाना पड़ रहा था। मेरा परिवार कानपुर में रह रहा था। उन्हें भी आरोपी लगातार धमकियां दे रहे थे। सभी डर के माहौल में रह रहे थे।"
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सबसे छोटे भाई पंकज की नौकरी 2010 में लगी और वहीं से इन्होंने सिविल सर्विसेज की तैयारी शूरू कर दी। 2011 में किए पहले अटैम्प्ट में इंटरव्यू तक पहुंचे, लेकिन वहां फेल हो गए। नीरज ने बताया, "2012 में मुझे 546वीं रैंक के साथ इंडियन पोस्ट एंड टेलीकम्युनिकेशन अकाउंट्स एंड फाइनेंस सर्विसेज में पोस्ट मिली, लेकिन मैं पुलिस सर्विसेज में ही जाना चाहता था। उम्र अधिक होने की वजह से 2013 का एग्जाम नहीं दे पाया। 2014 में एज रिलैक्सेशन मिला और मैंने 140वीं रैंक हासिल की।
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वे बताते हैं कि, "इस पूरी लड़ाई में मेरे दादाजी मेरा सबसे बड़ा सपोर्ट रहे। पिताजी के बाद उन्होंने हमारी फैमिली को संभाला। 2014 में मेरा इंटरव्यू था। वो बहुत खुश थे, लेकिन इंटरव्यू से ठीक 25 दिन पहले उनका निधन हो गया था।"
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आईपीएस में सिलेक्शन के बाद इनकी फैमिली को धमकियां मिलनी बंद हो गईं। आज ये अपने गांव जाते हैं, खेत संभालते हैं और कोई कुछ नहीं बोलता। एसपी नीरज आज लोगों की भलाई में बहुत से कामों से जुड़े हुए हैं। साथ ही वे बुजुर्गों के लिए ऑपरेशन आशीर्वाद भी चला रहे हैं।
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अपने तेज-तर्रा काम करने के अंदाज के कारण उनपर जानलेवा हमले भी होते रहे हैं। जादौन बदमाशों के निशाने पर रहे हैं। यही कारण है कि उन पर छह बार हमला हो चुका है। एक निडर और जाबांज पुलिसवाले के तौर पर जादौन लोगों की सेवा के अपने फर्ज को निभा रहे हैं।
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