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'तू अफसर बनेगा कहते-कहते पिता ने तोड़ दिया दम'...अकेले मां-बहनों को पाल IAS बना किसान का बेटा
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गौरव सिंह सोगरवाल राजस्थान के भरतपुर जिले के गांव जघीना के रहने वाले हैं। गौरव खेती-किसानी के परिवेश में पले-बढ़े। उनके पिता किसान हैं लेकिन उन्होंने दिन-रात खेतों में पसीना बहाकर बेटे को पढ़ाया। वे चाहते थे कि बेटा बड़ा आदमी बनकर नाम रोशन करे। गौरव का जीवन खेती-किसानी के देहाती परिवेश में मेरा बचपन बीता।
गौरव अपनी कहानी खुद की जुबानी बताते हैं, मेरी पारिवारिक पृष्ठभूमि एक निम्न-मध्यवर्गीय ग्रामीण परिवार से जुड़ी हुई है। बचपन से ही कृषि एवं अन्य गतिविधियों में मेरा प्रत्यक्ष अनुभव रहा है। पिताजी अध्यापक थे और माताजी गृहिणी। हम तीन भाई-बहन हैं। बड़ी बहन ने जीव-विज्ञान में पी.जी. किया है और छोटा भाई एम.बी.ए. के बाद बेंगलुरु में एक मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत है। सिविल सेवा में जाने का सपना मेरे साथ मेरे पिताजी का भी था।
बचपन से ही पिताजी ने सिविल सेवा के प्रति आकर्षण पैदा किया। ग्रामीण पृष्ठभूमि के कारण सिविल सेवा के प्रति मेरा आकर्षण निरंतर बढ़ता रहा। आमजन की समस्याओं के समाधान एवं राष्ट्र-निर्माण के रूप में सिविल सेवा मेरे लिए एक मिशन बन गया था। पर एक सड़क दुर्घटना में पिताजी के मौत के बाद दुनिया काफी बदल गई। मेरे पिता मेरे सपने को पूरा होते देखे बिना ही छोड़कर चले गए।
परिवार एवं आर्थिक संघर्ष के रूप में जीवन के कई सारे उतार-चढ़ावों को देखा। परंतु सिविल सेवा में जाने का सपना अब और भी ज्यादा दृढ़ हो गया। पुणे से इंजीनियरिंग करने के बाद अपने आर्थिक हालातों को सुधारने के लिए लगभग तीन साल तक प्राइवेट नौकरी की। साल 2013 में दिल्ली आ गया था।
रोडवेज अधिकारियों ने बताया कि बसों में बैठने के पहले इन छात्रों स्क्रीनिंग टेस्ट होगा। उसके बाद उन्हें बसों में बैठाया जाएगा। बस में उन्हें मास्क, सैनिटाइजर, नाश्ते का पैकेट व पानी की बोतल उपलब्ध करवाई जाएंगी।
(Demo Pic)
संघर्ष के दिनों में अपनी पढ़ाई और परिवार की जरूरतों को पूरा करने का बैलेंस करना मुश्किल होता था। पहले प्रयास में मेरा प्रारंभिक परीक्षा में 1 अंक से चयन रुक गया, तो वहीं दूसरे प्रयास में 1 अंक से मुख्य परीक्षा में चयनित नहीं हो पाया। इन असफलताओं ने मुझे काफी विचलित किया। परंतु अपने संघर्ष के दिनों की याद करके और आध्यात्मिकता का सहारा लेकर मैंने दृढ़ संकल्पित हो फिर से तैयारी की।
इस दौरान मेरा चयन असिस्टेंट कमांडेंट के रूप में BSF में हो चुका था, इसलिए रोजगार की चिंता अब ज्यादा नहीं रही। अपने तीसरे प्रयास में मैंने मुख्य परीक्षा के लिए उत्तर लेखन-शैली पर ध्यान दिया और अपनी कमजोरियों को दूर करने का प्रयास किया।
(Demo Pic)
मेरी रणनीति में समाचार-पत्र एक महत्त्वपूर्ण स्थान निभाते हैं। मैंने आसपास घटने वाली घटनाओं पर बारीकी से अपनी समझ विकसित करने की कोशिश की तथा अपनी पृष्ठभूमि और अपने अनुभवों को भी अपने उत्तर में सम्मिलित किया, जिसके परिणामस्वरूप मुझे सामान्य अध्ययन मुख्य परीक्षा में बेहतर अंक मिले। निबंध के लिए समय प्रबंधन व लेखन-शैली में भी सुधार किया।
(Demo Pic)
आख़िर मुझे IAS में उत्तर प्रदेश कैडर मिला। आज गौरव उत्तर प्रदेश में IAS अधिकारी हैं और फ़िलहाल गोरखपुर में SDM हैं। कोरोना संकट के दौरान राहत कार्यों में पूर्ण निष्ठा से जुटे गौरव और उनकी IAS पत्नी की कार्यशैली की चारों ओर प्रशंसा हो रही है। देश को इस सकंट से बचाने के लिए वो कई तरह के कार्यक्रम चला रहे हैं।
बहुत से गरीब बच्चे सिविल सर्विस में जाने के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं। पर अगर मेहनत और सही लगन से तैयारी की जाए तो मंजिल जरूर मिलती है। इसमें आपकी गरीबी और आर्थिक हालात आड़े नहीं आते। इसिलए लॉकडाउन के समय में भी निराश न हो और अपनी तैयारी लगातार जारी रखें एक दिन आपको सफलता जरूर मिलेगी।
(Demo Pic)