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एक कमरे में तपस्वी की तरह दिन रात पढ़ाई कर IAS बनी ये लड़की, न कोचिंग गई न रखा घर से बाहर कदम
नई दिल्ली. भारतीय सिविल सेवा परीक्षा में पास हो जाना ही बच्चों के लिए बहुत बड़ा सपना होता है। लाखों बच्चे सालभर इस परीक्षा की तैयारी करते हैं। पर इसी परीक्षा में एक लड़की ने टॉप करके लोगों के होश उड़ा दिए। ये लड़की हिंदी मीडियम से पढ़ाई करके बिना कोचिंग यूपीएससी टॉपर बन गई। आत्मविश्वास इतना कि आईएएस बनने की ठान ली और पहली ही बार में मंजिल तक पहुंच गईं। इसे कहते हैं मंजिल तक पहुंचने का संकल्प और मंजिल हो हासिल करने का जुनून। इस जुनूनी लड़की का नाम है वंदना। IAS सक्सेज स्टोरी में आज हम आपको हरियाणा की इस आईएएस अफसर के संघर्ष की कहानी सुनाएंगे।
| Published : Feb 29 2020, 10:48 AM IST / Updated: Feb 29 2020, 01:12 PM IST
एक कमरे में तपस्वी की तरह दिन रात पढ़ाई कर IAS बनी ये लड़की, न कोचिंग गई न रखा घर से बाहर कदम
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एक वो भी वक्त था जब वंदना के मां-पिता उन्हें ज्यादा पढ़ाना नहीं चाहते थे क्योंकि वो एक लड़की है, हरियाणा के रूढ़िवादी समाज में लड़कियों की जल्द से जल्दी शादी कर दी जाती है। पर वंदना ने बिना कोचिंग और बिना किसी गाइडेंस के आईएएस अफसर बन पूरे गांव के लोगों के होश उड़ा दिए।
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वंदना का जन्म 4 अप्रैल, 1989 को हरियाणा के नसरुल्लागढ़ गांव के एक बेहद पारंपरिक परिवार में हुआ। उनके घर में लड़कियों को पढ़ाने का चलन नहीं था। उनकी पहली पीढ़ी की कोई लड़की स्कूल नहीं गई थी। वंदना के पिता महिपाल सिंह चौहान कहते हैं, ‘‘गांव में स्कूल अच्छा नहीं था, इसलिए अपने बड़े लड़के को मैंने पढऩे के लिए बाहर भेजा। बस, उस दिन के बाद से वंदना की भी एक ही रट थी, मुझे कब भेजोगे पढने?’’
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महिपाल सिंह बताते हैं कि शुरू में तो मुझे भी यही लगता था कि लड़की है, इसे ज्यादा पढ़ाने की क्या जरूरत, लेकिन बिटिया काबिल थी और उसकी लगन और पढ़ाई के जज्बे ने उन्हें मजबूर कर दिया। वंदना ने एक दिन अपने पिता से गुस्से में कहा, ‘‘मैं लड़की हूं, इसीलिए मुझे पढऩे नहीं भेज रहे।’’ महिपाल सिंह कहते हैं, ‘‘बस, यही बात मेरे कलेजे में चुभ गई, मैंने सोच लिया कि मैं बिटिया को पढ़ने बाहर भेजूंगा।’’
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छठी क्लास के बाद वंदना मुरादाबाद के पास लड़कियों के एक गुरुकुल में पढऩे चली गई। वहां के नियम बड़े कठोर थे। कड़े अनुशासन में रहना पड़ता। खुद ही अपने कपड़े धोना, कमरे की सफाई करना और यहां तक कि महीने में दो बार खाना बनाने में भी मदद करनी पड़ती थी। हरियाणा के एक पिछड़े गांव से बेटी को बाहर पढऩे भेजने का फैसला महिपाल सिंह के लिए भी आसान नहीं था। वंदना के दादा, ताया, चाचा और परिवार के तमाम पुरुष इस फैसले के खिलाफ थे। वे कहते हैं, ‘‘मैंने सबका गुस्सा झेला, सबकी नजरों में बुरा बना, लेकिन अपना फैसला नहीं बदला।’’
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दसवीं के बाद ही वंदना की मंजिल तय हो चुकी थी। उस उम्र से ही वे कॉम्प्टीटिव मैग्जीन में टॉपर्स के इंटरव्यू पढ़तीं और उसकी कटिंग अपने पास रखतीं। किताबों की लिस्ट बनातीं। वंदना की ये यह पहली कोशिश थी जब उन्होंने यूपीएसससी का एग्जाम दिया। कोई कोचिंग नहीं, कोई गाइडेंस नहीं। कोई पढ़ाने, समझने, बताने वाला नहीं था। आइएएस की तैयारी कर रहा कोई दोस्त नहीं था। यहां तक कि वंदना कभी एक किताब खरीदने भी अपने घर से बाहर नहीं गईं। परीक्षा देने के लिए भी पिताजी साथ लेकर जाते थे। किसी तपस्वी साधु की तरह एक साल तक अपने कमरे में बंद होकर सिर्फ और सिर्फ पढ़ती रहीं। अर्जुन की तरह वंदना को सिर्फ चिड़िया की आंख मालूम है, वे कहती हैं, ‘‘बस, यही थी मेरी मंजिल।’’
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बारहवीं तक गुरुकुल में पढ़ने के बाद वंदना ने घर पर रहकर ही लॉ की पढ़ाई की। वंदना रोज तकरीबन 12-14 घंटे पढ़ाई करती। नींद आने लगती तो चलते-चलते पढ़ती थी, वंदना की मां मिथिलेश कहती हैं, ‘‘पूरी गर्मियां वंदना ने अपने कमरे में कूलर नहीं लगाने दिया, कहती थी, ठंडक और आराम में नींद आती है।’’वंदना गर्मी और पसीने में ही पढ़ती रहती ताकि नींद न आए। एक साल तक घर के लोगों को भी उसके होने का आभास नहीं था, मानो वह घर में मौजूद ही न हो। किसी को उसे डिस्टर्ब करने की इजाजत नहीं थी। (प्रतीकात्मक तस्वीर)
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वंदना ने यूपीएससी का पहली बार एग्जाम दिया। 2012 में जब रिजल्ट आया तो वो सफल रहीं। हिंदी माध्यम से पढ़ाई और इसके बाद हिंदी माध्यम से पहला स्थान पाने वाली 24 साल वंदना को खुद यकीन नहीं था कि वह यूपीएससी को पहली बार में क्लियर कर लेगी। (प्रतीकात्मक तस्वीर)
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जब उसने एग्जाम के बाद आईएएस का रिजल्ट देखने के लिए यूपीएससी की वेबसाइट देखी तो टॉपर्स की लिस्ट में वंदना का आठवें नंबर पर नाम था। वंदना ने आईएएस अफसर बन न सिर्फ माता-पिता बल्कि पूरे गांव का नाम रोशन किया था। उनका इंटरव्यू भी सफल रहा था। आज गांव के वही सारे लोग, जो कभी लड़की को पढ़ता देख ताने मारते थे। वंदना की सफलता पर गर्व करते हैं। कहते हैं ‘‘लड़कियों को जरूर पढ़ाना चाहिए, बिटिया पढ़ेगी तो नाम रौशन करेगी।’’ (प्रतीकात्मक तस्वीर)