- Home
- Career
- Education
- हिंदी मीडियम से पढ़ IAS बना गांव का लड़का, फेल होने पर बोलता था इस बार नहीं तो अगली बार
हिंदी मीडियम से पढ़ IAS बना गांव का लड़का, फेल होने पर बोलता था इस बार नहीं तो अगली बार
राजस्थान. सिविल सर्विस का सपना भारत की युवा जनसंख्या के एक बड़े तबके में होता है, वैसा ही कुछ सपना राजस्थान के पश्चिमी रेगिस्तान के पिछड़े जिले बाड़मेर के एक गांव के लड़के का भी था। पर हिंदी मीडियम से पढ़ाई कर अफसर बन पाउंगा या नहीं इस बात को लेकर डर था। उसने गांव से प्रारंभिक स्कूली शिक्षा ग्रहण की। मन बना लिया कि अफसर बनना है लेकिन रास्ते और मंजिल का नहीं पता था। ऐसे में उसे बहुत सारी परेशानियां आईं। अच्छा स्टडी मैटेरियल इंग्लिश में होने के कारण इंग्लिश को भी अच्छे से सीखना हिंदी माध्यम के अभ्यर्थी के सामने एक चुनौती की तरह होता है, इस लड़के ने उसको भी पार किया। और एक दिन अफसर बनकर ही दम लिया।
आईएएस सक्सेज स्टोरी (IAS Success Story) में आज हम जानेंगे राजस्थान के रेगिस्तानी जिले बाड़मेर के एक गांव से हिन्दी मीडियम में पढ़ाई कर UPSC में परीक्षा में असफलताओं के बाद आख़िरकार IAS अधिकारी बनने वाले युवा, देव चौधरी की कहानी।
- FB
- TW
- Linkdin
देव के पिताजी अध्यापक थे और बेहतर शिक्षा के लिए गांव से शहर आ गए तथा आगे की स्कूली शिक्षा शहर में ही हुई। 11वीं से आगे फिर से सरकारी स्कूल और फिर बाड़मेर कॉलेज से ही बी.एस-सी. किया। यूँ तो सिविल सर्विस का सपना उनका बचपन से ही था, लेकिन उसके लिए तैयारी स्नातक पूर्ण होने के बाद ही प्रारंभ हुई।
शुरुआत में काफी कठिनाइयाँ आईं; जैसे क्या पढ़ना है, क्या नहीं? लेखन में कैसे सुधार करना है? साथ-साथ अच्छा स्टडी मैटेरियल इंग्लिश में होने के कारण इंग्लिश को भी अच्छे से सीखना हिंदी माध्यम के अभ्यर्थी के सामने एक चुनौती की तरह होता है, उसको भी पार किया। प्रथम प्रयास वर्ष 2012 में दिया और प्रीलिम्स पास कर लिया; लेकिन मेंस नहीं हुआ।
अपनी गलतियों को सुधारा और 2013 में पुनः प्रयास किया। उस समय प्रीलिम्स, मेंस दोनों पास हो गए, लेकिन अंतिम रूप से चयन नहीं हुआ। 2014 में अंतिम चयन भी हो गया, लेकिन सर्विस में आई.ए.एस. का जो सपना था, वह पूरा नहीं हुआ। 2015 में चौथे प्रयास में आई.ए.एस. बनने का सपना साकार हुआ। देव फ़िलहाल गुजरात कैडर में 2016 बैच के IAS अधिकारी हैं।
देव को शुरुआती असफलताओं ने निराश भी किया, लेकिन मन में कहीं-न-कहीं एक आशा हमेशा रही कि इस बार नहीं तो अगली बार। लेकिन लक्ष्य से पहले हार नहीं माननी है। वो बताते हैं कि, जब और लोग चयनित हो सकते हैं तो मैं क्यों नहीं? यद्यपि मुझे अन्य नौकरी जैसे विचार नहीं आए। पर यू.पी.एस.सी. की अनिश्चितताओं को देखते हुए अन्य नौकरी रखने का विचार भी खराब नहीं होता है।
अब समय के साथ यू.पी.एस.सी. अपनी परीक्षा प्रणाली में निरंतर बदलाव कर रही है। ऐसे में नए अभ्यर्थी भी समय के अनुरूप अपनी रणनीति में फेर-बदल करते रहे। रटने के बजाय समझने पर ज्यादा ध्यान देना और सामयिक घटनाओं पर पूरी जानकारी रखना ही सबसे महत्त्वपूर्ण है। जहां तक माध्यम की बात है, हिंदी में पाठ्य सामग्री कम उपलब्ध है। लेकिन निराश होने की बजाय इन चुनौतियों से पार पाया जा सकता है।
अब, जब एक पड़ाव पूरा हो गया है तो भविष्य के लिए भी खुद को तैयार करना जरूरी है। जैसा कि मेरा कहना है कि इस परीक्षा को पास करना तो महत्त्वपूर्ण है, लेकिन उससे ज्यादा महत्त्वपूर्ण इसके बाद मिलने वाली चुनौतियों, समाज और देश को अपना योगदान देने के अवसर हैं।
यह कोशिश हमेशा रहेगी कि मेहनत, ईमानदारी व संवेदनशीलता के साथ कार्य करते हुए देश और समाज को कुछ दे सकूँ। जो भी परिवर्तन आप समाज में देखना चाहते हैं, उसकी शुरुआत खुद से ही करें। नैतिकता के साथ हमेशा सकारात्मक बने रहें और आगे बढ़ें। आपका जो लक्ष्य है, वह आपको जरूर मिलेगा।