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स्कूल में नहीं देख पाता था ब्लैकबोर्ड बड़े होकर वो लड़का बना IAS, टॉप अधिकारियों में नाम शामिल
नई दिल्ली. शारीरिक अपंगता के कारण लोगों को मजबूर, बेसहारा और बेकार समझ जाता है। खासतौर पर शारीरिक रूप से दिव्यांग और दृष्टिहीन लोगों के लिए समस्याएं और बढ़ जाती हैं। रोजमर्रा की जिंदगी में वे हर काम के लिए दूसरों पर निर्भर रहते हैं। पर आपने बहुत से ऐसे लोग भी देखे होंगे जो दिव्यांग होने पर भी हैरान कर देने वाले कारनामे कर जाते हैं। ऐसे ही एक दृष्टिहीन शख्स ने आईएएस बनकर लोगों के होश उड़ा दिए। ये शख्स है IAS अमन गुप्ता जो एक लाइलाज मेडिकल कंडिशन के शिकार हैं। वो 90 फीसदी दृष्टिहीन हैं बावजूद इसके उन्होंने हार नहीं मानी और सिविल सेवा परीक्षा पास करके झंडे गाड़ दिए। IAS सक्सेज स्टोरी में आज हम आपको अमन के संघर्ष की कहानी सुना रहे हैं।
| Published : Mar 15 2020, 07:43 PM IST / Updated: Mar 16 2020, 09:49 AM IST
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आंखों से भले ने देख पाते हों लेकिन अमन ने अपने मन की आंखों में शानदार जिंदगी के सपने सजाए। उन्होंने देश सेवा की इच्छा भी दिल में जगाई और लोगों की मदद के लिए वो सिविल सर्विस में रहकर काम कर रहे हैं। अमन गुप्ता आईआईएम ग्रैजुएट हैं।
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अमन गुप्ता AGMUT(अरुणाचल प्रदेश-गोवा-मिजोरम- केंद्रशासित प्रदेश) कैडर से 2013 बैच के आईएएस अधिकारी हैं। अमेरिकी विडियो मैग्निफायर की मदद से काम करते हैं। इसकी मदद से वह पढ़ पाते हैं। अमन ने सैकड़ों कर्मचारियों के प्रमोशन की राह आसान बनाई है। वो लोगों के लिए मसीहा कहे जाते हैं। उन्होंने स्वच्छता सर्वेक्षण 2018 में दिक्षिणी दिल्ली नगर निगम (SDMC) की रैंकिंग में सुधार में बेहतरीन काम किए हैं। पर अमन खुद एक लाइलाज बीमारी से जूझ रहे हैं।
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अमन जिस मेडिकल कंडिशन से गुजर रहे हैं, उसे जूवेनाइल मैकुलर डीजेनरेशन कहा जाता है, जिसका कोई इलाज नहीं है। अमन की नजर अब इतनी कमजोर हो चुकी है कि वह फीचर्स के आधार पर लोगों को पहचान नहीं पाते। पर अपनी बड़ी-सी मुस्कान से वो दर्द को छिपा लेते हैं। (प्रतीकात्मक तस्वीर)
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अमन जब क्लास 12 में थे तब वह बाइक चलाया करते थे। शुरुआत में उन्हें कंप्यूटर का कर्सर दिखना बंद हुआ, उसके बाद उन्हें हवा में क्रिकेट बॉल दिखना बंद हो गई और कुछ ही दिनों बाद से क्लास के ब्लैकबोर्ड पर लिखे शब्दों को पढ़ पाना उनके लिए मुश्किल होता गया। साल 2002 में AIIMS ने बताया कि उन्हें जूवेनाइल मैकुलर डीजेनरेशन है, जिसके कारण कुछ ही वर्षों में उन्हें 90 फीसदी तक दिखाई देना बंद हो गया।
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पर अमन दूसरों के लिए एक मिसाल हैं। उन्होंने जीवन को एक चुनौती समझा और सबके लिए एक उदाहरण पेश किया। अमन कहते हैं, 'मैं 2012 की यूपीएससी की परीक्षा पास नहीं कर पाया, जिसके लिए मैंने ऑडियो बुक्स के जरिए तैयारी की थी। अगली बार मैंने और समय देना शुरू किया और जनरल कैटिगरी में मुझे 57वीं ऑल इंडिया रैंकिंग मिली।' अमन ने डायरेक्टर (पर्सनेल), अडिश्नल डायरेक्टर (एजुकेशन) और एसडीएमसी कमिश्नर का सचिव पद पर काम किया है। वह डेप्युटी कमिश्नर (वेस्ट जोन) भी रहे हैं। वह दिल्ली सरकार में चाणक्यपुरी के एसडीएम के पद पर कार्यरत रहे हैं।
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कुछ अधिकारियों ने बताया कि अमन गुप्ता के साथ चालाकी करना महंगा पड़ जाता है। उन्होंने बताया कि जब अमन वेस्ट जोन में थे तब कई अधिकारी जानबूझकर मीटिंग हॉल से बाहर निकल जाते थे, लेकिन जब उन्हें पता चलता तो उनके खिलाफ कारण बताओ नोटिस जारी हो जाता। अमन अपने काम में एक परसेंट की भी गलती नहीं करते हैं और लोगों की मदद को हमेशा तैयार रहते हैं। (प्रतीकात्मक तस्वीर)
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अमन विडियो मैग्निफायर की मदद से पढ़ते हैं, जिसमें 200% ज्यादा समय लगता है। फिर भी उनकी टेबल पर पेंडिंग काम कम दिखता है। कई बार उन्हें पानी का गिलास मंगाने के लिए बेल तक नजर नहीं आती, कभी वह पेन ढूंढते दिखते हैं, कभी मोबाइल फोन। इन सब परेशानियों के बावजूद वह टॉप अधिकारियों में से रहे हैं। उनके संघर्ष की कहानी सिविल सर्विस में जाने वाले स्टूडेंट्स के लिए एक प्रेरणा है। (प्रतीकात्मक तस्वीर)