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बाइक, ट्रैक्टर क्या JCB तक चला लेती है IAS अफसर की पत्नी, दबंग मुखिया बन बदले गांव के हालात
पटना. दुनिया में अपने लिए काम करने वाले बहुत लोग मिल जाएंगे, लेकिन जो समाज के लिए काम करें ऐसे लोगों की संख्या बेहद कम है। आज हम आपको ऐसी ही एक महिला की कहानी बताने जा रहे हैं, जिन्होंने अपनी मेहनत और लगन के बल पर अपने पूरे गांव की तस्वीर ही बदलकर रख दी। हम बात कर रहे हैं, ऋतु जायसवाल की। आईएएस अरुण कुमार की पत्नी ऋतु जायसवाल शादी के बाद ससुराल आई तो वहां का पिछड़ापन देख काफी परेशान हो गईं। गांव में न बिजली थी और न सड़क।ऋतु से यह पिछड़ापन देखा न गया और उन्होंने गांव की हालत बदलने की ठान ली।
न सिर्फ सड़क, स्कूल बनवाने बल्कि बाढ़ पीड़ितों की मदद तक में उन्होंने जमीन पर उतरकर काम किया। आज वो इस गांव की मुखिया हैं और उन्होंने गांव में विकास के कई काम कराए, जिसके चलते गांव के बड़े उन्हें बेटी जैसा प्यार देने लगे। इस दबंग मुखिया के कार्यों की सराहना पूरा देश कर चुका है आइए आज हम उनके संघर्ष की कहानी जानते हैं....
न सिर्फ सड़क, स्कूल बनवाने बल्कि बाढ़ पीड़ितों की मदद तक में उन्होंने जमीन पर उतरकर काम किया। आज वो इस गांव की मुखिया हैं और उन्होंने गांव में विकास के कई काम कराए, जिसके चलते गांव के बड़े उन्हें बेटी जैसा प्यार देने लगे। इस दबंग मुखिया के कार्यों की सराहना पूरा देश कर चुका है आइए आज हम उनके संघर्ष की कहानी जानते हैं....
| Published : Apr 15 2020, 12:42 PM IST / Updated: Apr 15 2020, 01:32 PM IST
बाइक, ट्रैक्टर क्या JCB तक चला लेती है IAS अफसर की पत्नी, दबंग मुखिया बन बदले गांव के हालात
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ऋतु जायसवाल दिल्ली के IAS अरुण कुमार जायसवाल की पत्नी हैं। अब आप सोचिये जिस महिला का पति IAS अधिकारी हो उसका भला किसी सुविधाओं से रहित गांव से क्या वास्ता होगा, लेकिन बिहार का सिंहवाहिनी गांव उनका का ससुराल है। उन्होंने शादी के बाद इसी गांव में आने के बाद इसकी हालत बदलने की ठान ली।
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ऋतु ने जब अपने गांव की दुर्दशा देखी तो वो दिल्ली के चकाचौंध भरे सुविधायुक्त जीवन को अलविदा कह गांव की कायाकल्प बदलने का संकल्प लिया। वह सीतामढ़ी जिले के सोनबरसा प्रखंड की सिंहवाहिनी पंचायत की मुखिया है। ऋतु के सशक्त नेतृत्व में सिंहवाहिनी पंचायत विकास की नित नयी इबारत लिख रही हैं।
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अपने परिवार में दो छोटे बच्चों को छोड़कर अपने गांव की तरफ रुख करना ऋतु के लिए आसान नहीं था लेकिन गांव के कई परिवारों के विकास के लिए ऋतु ने आखिर यह फैसला लिया। एक बार गांव जाने के दौरान कुछ दूर पहले ही कार कीचड़ में फंस गई।
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कार निकालने की हर कोशिश बेकार थी उन्हें बैलगाड़ी पर सवार होकर आगे बढ़ना पड़ा। कुछ दूर जाते ही बैलगाड़ी भी कीचड़ में फंस गई। गांव की ऐसी जर्जर स्थिति देख ऋतु का मन व्यथित हो उठा। तभी उन्होंने फैसला लिया कि वह गांव की तकदीर बदलेंगी।
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ऋतु :- "मेरे पति और बेटी ने मेरे निर्णय का समर्थन किया, मेरी बेटी ने कहा मम्मी हम हॉस्टल में रह लेंगे और आप गांव जाकर वहां बहुत सारे बच्चों को पढ़ाइये। उसकी बातों ने मुझे हिम्मत दी और मैंने उनका दाखिला रेजिडेंसिअल स्कूल में करा दिया और निकल पड़ी अपनी ग्राम पंचायत के विकास के लिए।"
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साल 2016 में ऋतु ने सिंहवाहिनी पंचायत से मुखिया पद के लिए चुनाव लड़ा लेकिन उनके लिए जीत आसान नहीं थी। उनके आगे 32 और उम्मीदवार खड़े थे। ऋतु ने लोगों में जाती के आधार पर तथा रुपयों के लालच में अपने अमूल्य वोट को बेचने से रोकने के लिए जागरूकता फैलाई।
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गांव के लोगों को ऋतु की बातें समझ आ गयी और उन्होंने भारी मतों से उन्हें विजयी बना दिया। अब उनके विकास की जिम्मेदारी ऋतु के कंधों पर थी। एक ऐसा गांव जहां न सड़कें थी, न आजादी के बाद से बिजली आई थी, न मोबाइल टावर था, न ही शिक्षा की व्यवस्था थी।
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ऋतु ने शपथ ग्रहण करने के अगले ही दिन बिना सरकारी फंड का इंतजार किये अपने निजी खर्च पर काम करना शुरू कर दिया। पहला काम था गांव में सड़क बनाना। शुरू में लोग सड़कों के लिए अपनी एक इंच जमीं भी देने को तैयार नही थे, ऋतु ने बताया गांव की मुख्य सड़क बनाने के लिए कई बार टेंडर हुआ। कुछ असामाजिक तत्व अड़ंगा लगाने लगे, जिससे टेंडर कैंसिल हो गया। अब फिर से काम शुरू हुआ है।
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इस दौरान गांव के लोग सड़क के लिए अपनी एक-एक इंच जमीन छोड़ने को तैयार न थे। लोगों को समझाने में कड़ी मेहनत करनी पड़ी। मैंने बताया कि अगर सड़क नहीं बनेगी तो गांव का कैसे विकास होगा। आप के बच्चे कैसे गांव से बाहर जाएंगे। आप खेती करते हैं। उसको बाजार में बेचेंगे तो अधिक पैसा मिलेगा। गांव के बीमार लोग जब गांव से बाहर नहीं जाएंगे तो कैसे इलाज होगा। इन बातों का असर लोगों पर हुआ और वे एक-एक कर जमीन देने को तैयार हुए।
कई चुनौतियों के बाद सड़क निर्माण का रास्ता साफ़ हुआ और गांव में पक्की सड़क आई। आज़ादी के बाद पहली बार गांव में बिजली आई। उसके बाद ऋतु के आगे लक्ष्य था गांव की शिक्षा को सुदृढ़ बनाना। इसके लिए उन्होंने गांव की एक डॉक्यूमेंट्री बनाई और उसे कुछ एन.जी.ओ को जाकर दिखाया।
कई चुनौतियों के बाद सड़क निर्माण का रास्ता साफ़ हुआ और गांव में पक्की सड़क आई। आज़ादी के बाद पहली बार गांव में बिजली आई। उसके बाद ऋतु के आगे लक्ष्य था गांव की शिक्षा को सुदृढ़ बनाना। इसके लिए उन्होंने गांव की एक डॉक्यूमेंट्री बनाई और उसे कुछ एन.जी.ओ को जाकर दिखाया।
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उसके बाद उन्होंने कई एन.जी.ओ की मदद से बच्चों के लिए ट्यूशन क्लास शुरू करवाई। इसका असर यह हुआ कि इस बेहद ही पिछड़े गांव की 12 बेटियों ने एक साथ मैट्रिक पास की। उसके बाद ऋतु ने स्वछता का मिशन आगे बढ़ाया 95 प्रतिशत लोग जिस पंचायत में खुले में शौच जाते थे, उसे खुले में शौच मुक्त बनाया वो भी मात्र 3 महीने में। इस मुखिया ने महिलाओँ के लिए सिलाई मशीन के केंद्र भी खुलवाए।
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ऋतु विकास के काम की खुद निगरानी करती हैं। इसके लिए वह कभी बाइक ड्राइव करती दिखती हैं तो कभी ट्रैक्टर और JCB पर सवार हो जाती हैं। आज के समय में सब सुख सुविधाओं को छोड़कर अपने गांव की तरक़्क़ी के लिए ऋतु ने जो किया है उसकी जितनी तारीफ़ की जाए कम है। ना जाने कितने ही विकास कार्यों को ऋतु ने अंजाम दिया है। शायद ऋतु जैसे लोगों का ही गांवो को इंतजार है जो उनकी तस्वीर को बदले और उन्हें आज के युग से जोड़ दे।
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ऋतु तो ख़ास से आम बन गयी और उनके प्रयासों से ग्राम पंचायत सिंहवाहिनी आम से खास बनती जा रही है। ऋतु को उच्च शिक्षित मुखिया का अवार्ड भी मिल चुका है। इसके साथ ही उन्हें पंचायत के विकास के लिए भी कई अवार्ड मिले हैं। सोनबरसा प्रखंड की सिंहवाहिनी पंचायत की मुखिया ऋतु को उनके विशिष्ट कार्यों के लिए इस साल का उच्च शिक्षित आदर्श युवा सरपंच (मुखिया) पुरस्कार मिल चुका है। ऋतु इस सम्मान को ग्रहण करने वाली बिहार की एकमात्र मुखिया हैं।