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जिस लड़के को अछूत कह समाज ने दुत्कारा, UPSC में टॉप करके बना IAS, कर दिया पूरे समाज का सिर ऊंचा

नई दिल्ली.  यानी संघ लोक सेवा आयोग (Union Public Service Commission) के लिए हर साल लगभग 10 लाख आवेदन किए जाते हैं। जिसमें से लगभग1 हजार सेलेक्ट होते हैं। यूनियन पब्लिक सर्विस के सिविल सर्विस एग्जाम की तैयारी करना तपस्या जैसा है। इसके लिए पूरी लगन और ईमानदारी से समय दिया जाए तो सफल होते हैं। इस एग्जाम की तीन स्टेज होती हैं। पहली स्टेज में Preliminary एग्जाम होता है। दूसरी स्टेज Main एग्जाम है, इस एग्जाम में नौ पेपर होते हैं। एग्जाम की तीसरी स्टेज Personality Test (इंटरव्यू) है। आज हम आपको बताने वाले हैं देश में कब से यूपीएससी सिविल सर्विस एग्जाम शुरू हुआ और देश का पहला SC-ST IAS ऑफिसर कौन बन पाया था। वो भी उस समय जब देश में जातिवाद अपने चरम पर था। हालांकि आज भी दलित समुदाय के लोगों को नफरत की नजर से देखा जाता है। लोग उनके शिक्षा लेने और अफसर बनने पर पीठ पीछे गालियां ही देते हैं। पुराने जमाने में तो दलित समुदाय के लोगों को अछूत ही माना जाता था। उनको पढ़ने-लिखने की मनाही थी। ऐसे समय में एक दलित कड़े संघर्ष के बावजूद अफसर बनकर ही माना था।  आज की आईएएस सक्सेज स्टोरी (IAS Success Story)  हम आपको बताएंगे कौन था देश का पहला SC-ST IAS ऑफिसर- 

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Asianet News Hindi
Published : May 18 2020, 10:18 AM IST| Updated : May 18 2020, 11:16 AM IST
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आजादी के बाद जब नौकरशाही के लिए परीक्षाएं हुईं तो दलित समुदाय से भी लोगों ने नौकरी पाने और बड़े पद पर बैठ देश सेवा के लिए आवेदन किए। ये वो लोग थे जिन्हें स्कूल में अंदर घुसने तक की मनाही थी। पर अकेले के दम पर इस शख्स ने देश के पहले दलित समुदाय वाला अफसर बनकर इतिहास रच दिया था। 

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आज के दौर में UPSC की परीक्षा पास करना बड़ी सफलता माना जाता है माता पिता का सपना होता है कि उनका बच्चा बड़ा होकर आईएएस ऑफिसर बने। लेकिन इस सपने को साकार करने के लिए छात्रों को कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। इस परीक्षा के लिए हर साल करीब 10 लाख आवेदन प्राप्त होते हैं, जिनमें से मात्र 1 हजार छात्रों का सलेक्शन होता है।

 

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छात्रों को अपनी मेहनत और लगन से दिन रात एक करना पड़ता है तब जाकर सफलता हासिल हो पाती है। हालांकि जब संघ लोक सेवा आयोग ने सिविल सर्विस के एग्जाम की शुरुआत की थी, तब इस परीक्षा के लिए न तो इतने आवेदन प्राप्त होते थे और न इतनी मुश्किल परीक्षा होती थी। उस समय शिक्षा को लेकर लोग अधिकतर जागरूक भी नहीं थे। 

 

 

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देश को आजादी मिलने के बाद जब 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ। इसी साल संघ लोक सेवा आयोग ने सिविल सर्विस की पहली परीक्षा शुरु की। पहली बार इस परीक्षा में 3,647 छात्रों ने हिस्सा लिया था। उस वक्त UPSC की रिपोर्ट में SC-ST कैंडीडेट्स की संख्या का खुलासा नहीं किया जाता था लेकिन परिणाम आने के बाद देश के पहले SC आईएएस के बारे में जरूर बताया गया था। उनकी सफलता और जज्बे को देख लोग हैरान रह गए थे। साथ ही उनके समुदाय के लोगों में जश्न मनाया गया था। 

 

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दलित समुदाय से अफसर बनने वाले इस शख्स का नाम अचूतानंद दास था। ये देश के पहले SC आईएएस ऑफिसर बने थे। उन्होंने लिखित परीक्षा में टॉप किया था। कहते हैं अचूतानंद दास को SC होने की वजह से इंटरव्यू में सबसे कम नंबर मिले थे। अगर ऐसा न होता तो भारत का पहला IAS टॉपर बनने का तमगा भी उन्हीं के नाम होता।

 

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वेस्ट बंगाल से आने वाले अचूतानंद दास ने सिविल सर्विस की लिखित परीक्षा में 1050 में से 609 नंबर यानि 58% अंक हासिल किए। जबकि मद्रास के एन कृष्नन को 602 नंबर यानि 57.33% अंक मिले। कृष्नन को इंटरव्यू में इन्हें 300 में से 260 नंबर मिले जबकि अचूतानंद को इसके आधे नंबर ही हासिल हो पाए।

 

वहीं वेस्ट बंगाल के एक और कैंडीडेट अनिरुद्ध दासगुप्ता ने इंटरव्यू में शानदार प्रदर्शन किया था। तीनों कैंडीडेट्स में से कृष्नन ने टॉप किया था। अनिरूद्ध दासगुप्ता को 22 वीं और अचूतानंद को 48 वीं रैंक हासिल हुई थी। सिविल सर्विस की पहली परीक्षा के इन परिणामों ने सभी को चौंका दिया था।

 

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पहली यूपीएससी परीक्षा में 3,647 छात्रों ने हिस्सा लिया था जिसमें अचूतानंद को लिखित में सबसे ज्यादा अंक हासिल हुए थे, लेकिन उन्हें इंटरव्यू में अच्छे नंबर नहीं मिल सके और मद्रास के एन कृष्नन देश के पहले IAS टॉपर बने।

 

अचूतानंद ने अपनी काबिलियत और सफलता से समाज में, स्कूल और यहां तक की हर स्टेज पर नीची जाति से होने के कारण दुत्कारे जाने को तमाचा मारा था। अपने समुदाय का सिर ऊंचा करने पर उनका नाम इतिहास में दर्ज है। इतिहास में उनका नाम जरूर दर्ज है लेकिन कोई तस्वीर नहीं। 

 

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