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गरीबी झेली-दिए की रोशनी में की घंटों पढ़ाई, छोटे से गांव से निकल IAS बन गया यह शख्स
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आशुतोष के माता-पिता का बाल विवाह हुआ था। पिताजी पढ़ने में अच्छे थे और माता जी करीब-करीब अनपढ़ थीं पर शिक्षा के महत्व को भली-भांति समझती थी। आशुतोष के पिताजी ने अपनी बाकी पढ़ाई बहुत संघर्ष के साथ शादी और बच्चों के बाद पूरी की जिसमें उनकी माता जी का पूरा साथ था। अपने पैरेंट्स के जीवन के इन संघर्षों को आशुतोष जानते थे और हमेशा इनसे प्रेरणा लेते थे।
आशुतोष को लगता था कि उनके मां-बाप की मेहनत के आगे उनकी मेहनत कुछ नहीं। इस प्रकार आशुतोष को घंटों साइकिल चलाकर गांव के छोटे से स्कूल आना-जाना और बगैर लाइट के लालटेन या दिए में पढ़ना साधारण सी बात लगती थी।
उनका माध्यम हमेशा हिंदी रहा पर इस बात का उन्हें कभी दुख नहीं था। वे एक कांफिडेंट स्टूडेंट थे जो मानता था कि अपने साथियों की तुलना में उन्होंने जिस स्थिति में पढ़ाई की है, वे उनसे कहीं बेहतर हैं।
आशुतोष ने पहली बार उच्च शिक्षा के लिए कानपुर में कदम रखा। यहां HBTI से उन्होंने बीटेक किया और नौकरी करने लगे। इस समय उनका आईएएस बनने का सपना कहीं पीछे छिप गया था।
‘कलेक्टर’ शब्द की तरफ था हमेशा से झुकाव –
बचपन से ही आशुतोष कलेक्टर शब्द के प्रति आकर्षित थे क्योंकि गांव में सामान्यतः पढ़ाई में अच्छे बच्चे को बात-बात पर कलेक्टर बनने की दुआ या आशीर्वाद ही दिया जाता है। तब से उन्हें लगता था कि ये कोई बड़ी चीज होती है। उसके बाद उनके बड़े भाई भी आईएएस ही बनना चाहते थे जो साक्षात्कार तक पहुंचे पर इसके आगे उनका सेलेक्शन नहीं हुआ। आशुतोष ही उनका रिजल्ट देखने गए थे। उस समय अपने भाई को निराश देख आशुतोष ने सोचा कि भैया का सपना वे पूरा करेंगे।
इन सब घटनाओं के अलावा एक घटना ने आशुतोष का जीवन बदल दिया जब एक गांव की औरत ने उनसे कुछ काम कहा और अंत में यह जोड़ दिया कि अगर आपसे न हो तो आप कलेक्टर साहब से कह दीजिएगा, वे जरूर करा देंगे।
उस समय आशुतोष को लगा कि अभी भी आम आदमी को नेता, नौकर, सरकार किसी पर भरोसा नहीं है जो कलेक्टर पर है। बस उसी दिन के बाद आशुतोष ने नौकरी छोड़ी और लग गए सिविल सर्विसेस की तैयारी में। अब उनके पास इस क्षेत्र में आने के बहुत से कारण थे।
कभी नहीं मानी हार –
दूसरे कैंडिडेट्स से अलग आशुतोष कभी यह नहीं मानते थे कि यूपीएससी बहुत मुश्किल है बल्कि उनका मानना है कि यह तो एक ऐसा सफर है जो आपको कहीं न कहीं जरूर ले जाता है। वे कहते हैं, ‘यूपीएससी एक तपस्या है, इसमें अगर आपको वरदान नहीं भी मिलता, फिर भी आप सिद्धि प्राप्त कर लेते हैं।’
अपने पहले दो प्रयासों में सफल न होने पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपनी गलतियों को ढूंढ़कर दूर किया। तीसरी बार में उनका सेलेक्शन हो गया आईपीएस में पर उन्हें आईएएस ही बनना था इसलिए उन्होंने फिर परीक्षा दी और साल 2017 में अपने चौथे अटेम्पट में 70वीं रैंक के साथ परीक्षा पास कर ली। इस दौरान उनकी शादी भी हो गयी थी। उनकी पत्नी ने उनको काफी सपोर्ट किया अपना सफलता का श्रेय इसलिए वो अपनी पत्नी और परिवार को देते हैं।
अंत में आशुतोष दूसरे कैंडिडेट्स को यही सलाह देते हैं कि कभी अपने बैकग्राउंड, अपनी भाषा को लेकर मन में हीन-भावना न लाएं। यहां ये सब महत्व नहीं रखता बल्कि आपकी ईमानदारी, आपकी मेहनत महत्व रखती है।