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- 'गांव में शराब बेचती थी मां'..खुद मूंगफली बेचकर खरीदी किताबें से पढ़ IAS बना ये आदिवासी लड़का
'गांव में शराब बेचती थी मां'..खुद मूंगफली बेचकर खरीदी किताबें से पढ़ IAS बना ये आदिवासी लड़का
नई दिल्ली. प्रतिभा संसाधनों की मोहताज नहीं होती यह पंक्ति एक जिला कलेक्टर पर सटीक बैठती है। गर्भ में था तब पिता की मौत हो गयी थी। पिता को शक्ल से नहीं पहचानता क्योंकि तस्वीर खिचवाने के लिए कभी पैसे नहीं रहे। परिवार चलाने के लिए मां ने मजदूरी के साथ ही देशी शराब बेचना शुरू कर दिया। 10 लोगो का परिवार घासफूस की झोपड़ी में रहता था। महाराष्ट्र के धुले के रहने वाले IAS अधिकारी डॉ. राजेंद्र भारुड़ आदिवासी भील समुदाय से आते है। आदिवासी भील समाज से आईएएस बनने वाले वो पहले ऐसे युवा हैं, जिनकी सफलता यह साबित करती है कि गरीबी से लड़कर किस तरह जिंदगी की शानदार जंग जीती जा सकती है।
आईएएस सक्सेज स्टोरी (IAS Success Story) में हम आपको राजेंद्र भारुड़ के संघर्ष की कहानी सुना रहे हैं।
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डॉ. राजेंद्र भारुड़ का आदिवासी भील समुदाय अज्ञान, अंधविश्वास, गरीबी, बेरोजगारी और भांति-भांति के व्यसनों के दंश से ग्रसित है। पढ़ना उस समुदाय के बच्चों के लिए किसी सपने के हकीकत में बदलने जैसा है। डॉ. राजेंद्र भारुड़ का परिवार गन्ने से निकाली गयी खरपतवार से बने झोपड़ीनुमा घर में रहता था।
मां-पिता मेहनत मजदूरी कर परिवार चला रहे थे। जब वो गर्भ में थे तब उनके पिता की मृत्यु हो गयी। समाज एवं परिवार के लोगो ने मां को गर्भपात की सलाह दी लेकिन उन्होंने साफ़ मना कर दिया।
घर के 10 सदस्यों की जिम्मेदारी उनकी मां के कंधो पर आ गयी। वो मजदूरी करती लेकिन सिर्फ 10 रुपये ही दिन के कमा पाती थी। इसके बाद उनकी मां ने देशी शराब बना कर बेचना शुरू किया और अपने परिवार को चलाने लगी. कई ऐसे दिन होते थे जब परिवार को एक समय का खाना भी नसीब नहीं होता था।
इन परिस्थितियों में राजेंद्र ने भी मूंगफली और नमकीन बेचने का काम शुरू किया। मां की मदद के साथ ही कमाए हुए पैसों से वो किताबे खरीदते थे।
संसाधन के नाम पर फटी-पुरानी किताबे और घर का चबूतरा था। चबूतरे पर बैठ कर जा वो पढ़ते तो शराबी उन्हें गाली-गलौज देते लेकिन उनकी मां कहती थी कि मेरा बेटा एक दिन जरूर डॉक्टर या अफसर बनेगा। घर में परिस्थितियां अनुकूल नहीं थी लेकिन सरकारी स्कूल में उनका मुफ्त में एडमिशन मिल गया।
पढ़ने में राजेंद्र शुरू से ही तेज थे और दसवीं में 95% अंक जबकि 12वी में 90% अंक अर्जित किए। इसके बाद उन्होंने मेडिकल प्रवेश परीक्षा दी और सरकारी कोटे से MBBS की सीट हासिल की।
मेरिट के तहत उन्हें मुंबई के प्रतिष्ठित सेठ जीएस मेडिकल कॉलेज में दाखिला मिला। पढ़ने में तेज राजेंद्र कॉलेज में भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाते रहे और 2011 में कॉलेज के बेस्ट स्टूडेंट के रूप में चयनित हुए। डॉक्टर बनकर उन्होंने अपनी मां का एक सपना तो पूरा कर दिया लेकिन अफसर बनना अभी बाकी था।
उस समय डॉ. राजेंद्र के पास दो विकल्प थे या तो वो डॉक्टर बनकर काम शुरू करे या फिर मां का सपना पूरा करने के लिए UPSC की परीक्षा दे। उन्होंने दूसरा विकल्प चुना और यूपीएससी का फॉर्म भरा। इतने कठिन जीवन के बाद भी उनकी मां ने उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित किया और हर सुविधा देने की कोशिश की। पढ़ने में तेज थे तो पहले मेडिकल कॉलेज में चयन हुआ और फिर UPSC की परीक्षा पास कर कलेक्टर बने।
एक गहरा दंश, उनके जिंदगीनामा में इस तरह भी दर्ज है कि उनकी मां जब बचपन देसी शराब बेचती थीं। कलेक्टर बनने के बाद भी उनकी मां को पहले कुछ पता नहीं चला। जब गांव के लोग, अफसर, नेता बधाई देने आने लगे तब उन्हें पता चला कि राजू (दुलार से) कलेक्टर की परीक्षा में पास हो गया है। उनकी आंखों में सिर्फ आंसू थे और अपने बेटे के सपने पूरे होने की ख़ुशी।
डॉ. राजेंद्र भारुड़ अभी महाराष्ट्र कैडर से ही IAS अफसर है और राज्य के विभिन्न जिलों में अपनी सेवाए दे चुके है। उन्हें हमेशा शिक्षा एवं साहित्य से लगाव रहा है. उन्होंने मराठी भाषा में अपने जीवन सफर को एक किताब का रूप दिया जो काफी लोकप्रिय है। डॉ राजेंद्र कहते है कि मैं इतना जरूर मानता हूं कि आज मैं जो कुछ भी हूं, मां के विश्वास की बदौलत ही हूं।