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- Round-Up 2021: कभी स्कूल नहीं गए, हौंसला ऐसा कि समाज के लिए बन गए प्रेरणा, 2021 में इन्हें मिला पद्मश्री
Round-Up 2021: कभी स्कूल नहीं गए, हौंसला ऐसा कि समाज के लिए बन गए प्रेरणा, 2021 में इन्हें मिला पद्मश्री
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भूरी बाई बरिया
जनजातीय परंपराओं को अपने चित्रकारी के जरिए उकरने वाली भूरी बाई को भी पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया जाएगा। भूरी बाई बरिया का जीवन गरीबी में बीता है। उन्होंने बताया था कि मेरे लिए बाहर जाना तो दूर की बात है, मुझे तो ठीक से हिंदी भी बोलनी नहीं आती है। भूरी बाई भी कभी स्कूल नहीं गईं।
दुलारी देवी
बिहार के मधुबनी जिले में रहने वाली दुलारी देवी को इस साल पद्मश्री से नवाजा गया है। 12 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई थी। घर-घर झाड़ू-पोछा किया करती थीं मगर कुछ वक्त बाद झाड़ू की जगह कूची ने ले ली। इसके बाद पेंटिंग बनाने का जो सिलसिला दुलारी ने शुरू किया वो आज तक नहीं रुका। वे अबतक सात हजार मिथिला पेंटिंग बना चुकी हैं। दुलारी कभी स्कूल नहीं गईं लेकिन उन्होंने अपने हौसले से ऐसा मुकाम बनाया कि वो लोगों के लिए प्रेरणा है।
तुलसी गौड़ा
कर्नाटक के होनाली गांव की रहने वाली हैं तुलसी गौड़ा कभी स्कूल नहीं गईं, लेकिन उन्हें पेड़-पौधों और जड़ी-बूटियों का उन्हें ऐसा ज्ञान है कि उन्हें 'इनसाइक्लोपीडिया ऑफ फॉरेस्ट' कहा जाता है। तुलसी गौड़ा पिछले 6 दशकों से पर्यावरण संरक्षण के काम में जुटी हुई हैं। पेड़-पौधों से तुलसी गौड़ा का रिश्ता दशकों पुराना है। उन्हें पद्म सम्मान से सम्मानित किया गया है।
हरेकाला हजाब्बा
कर्नाटक के रहने वाले हरेकाला हजाब्बा को इस साल पद्म पुरस्कारोंसे सम्मानित किया गया है। वे निरक्षर हैं। लेकिन शिक्षा का महत्व समझने वाले हरेकाला हजाब्बा ने अपनी जमा पूंजी से बेंगलुरू के पास अपने गांव में साल 2000 में एक स्कूल खोला था। इसी कारण उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। दक्षिण भारत के एक गरीब निरक्षर फल बेचने वाले हरेकाला हजाब्बा ने सीमित संसाधनों के साथ जो कर दिखाया है वो एक मिसाल है। हरेकाला हजाब्बा ने फल की अपनी छोटी-सी दुकान से हुई आमदनी से अपने गांव के बच्चों के लिए प्राथमिक और माध्यमिक स्कूल बनवाया है। साल 2000 तक इस गांव में एक भी स्कूल नहीं था, लेकिन 150 रुपए प्रतिदिन कमाने वाले हरेकाला हजाब्बा ने अपनी जमा पूंजी से गांव में पहला स्कूल बनवाया।
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