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अपने बॉडीगार्ड से वसूला जुर्माना...इनके तबादले पर रो पड़ा पूरा शहर, ईमानदारी की मिसाल है ये IAS

नई दिल्ली. देश में ज्यादा अफसर और नेता घूसखोरी में अपने पद को भूल जाते हैं। पर कुछ ऐसे भी अधिकारी होते हैं जो पूरी ईमानदारी से अपना काम करते हैं। इनकी वजह से लोगों का सिस्टम में विश्वास बना रहता है। आज हम आपको एक ऐसे ही ईमानदार अफसर की कहानी सुना रहे हैं। जिसने नियम तोड़ने वाले अपने बॉडीगार्ड तक से जुर्माना वसूल लिया था। IAS सक्सेज स्टोरी में पेश हैअधिकारी सौरभ जोरवाल के संघर्ष की कहानी। 

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Asianet News Hindi
Published : Apr 06 2020, 10:34 AM IST| Updated : Apr 06 2020, 10:51 AM IST
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2014 बैच के IAS अधिकारी सौरभ जोरवाल बताते हैं कि एक किताब की कहानी पढ़ने बाद उन्हें लगा कि देश में ज्यादा बदलाव नहीं आया है। जब वे बतौर एसडीओ सदर प्रशिक्षण के लिए बिहार के पूर्णिया जिले में पदास्थापित हुए तो उन्होनें 50 साल पहले लिखी कहानी और आज के समय में समानता ही देखी। इसलिए उन्होंने देश और समाज सेवा के लिए सिविल सर्विस को चुना था। 2014 में अफसर बन उन्होंने देश के हालात बदलने की कसम खाई थी।
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जयपुर में पले-बढ़े सौरभ ने अपने इंजीनियरिंग की पढ़ाई आईआईटी दिल्ली से पूरी की है। पूर्णिया जिले में पदास्थापित होने के बाद उन्होनें वहां की परिस्थितियों को बदलने की ठानी। बस उन्हें कुछ अनुभवों की कमी थी। जहां अनुभव की कमी बाधा बनती, सौरभ पुराने अधिकारियों से बिना किसी झिझक के मदद लेते और उनके द्वारा दिए गये सुझावों पर भी अमल करते।
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जब संघ लोक सेवा आयोग की तैयारी कर रहा था यह आईएएस तभी इसने फर्णीश्वर नाथ रेणु की रचित कहानी मैला आंचल पढ़ी थी। किस्मत शायद यही चाहती थी कि यह अधिकारी इस क्षेत्र की दशा और दिशा को बदले। उस वक्त के परिवेश में लिखी वह कहानी और इतने दशकों बाद आज के परिवेश में कुछ विशेष अन्तर नहीं पाते हुए इस अधिकारी ने हालात बदलने के लिए हर कोशिश करने की प्रतिज्ञा ली और साल काफी हद तक सफलता भी पाई।
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पूर्णिया पोस्टिंग के बाद सौरभ जोरवाल का स्थांतरण बिहार के ही सहरसा जिले में हुआ। यहां अतिक्रमण की समस्या इतनी जटिल थी कि पिछले 33 सालों से इससे निजात नहीं पाया जा पा रहा था। सब्जी मण्डी में साइकिल रखने तक की जगह नहीं थी। बात करने पर लोगों ने जाम की बात स्वीकार की परंतु वे अपनी दुकान के लिए जगह चाहते थे। सौरभ ने डी.एम. और जिला प्रशासन की मदद से वहां सुपर मार्केंट बनवाया और फिर दुकानदार खुशी-खुशी वहां शिफ्ट कर गये। वहां के लोगों की माने तो सौरभ ने सहरसा की तस्वीर बदल दी। डी.बी. रोड, थाना चौक, शंकर मार्केट से अतिक्रमण हटवा दिया। 33 सालों बाद बिना किसी हल्ला हंगामें के अतिक्रमण हट जाने से वहां के निवासी बहुत खुश हैं और सौरभ जोरवाल की खूब प्रसंशा करते रहे।
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सौरभ अपने काम में तकनीक का भी सहारा लेतें हैं। सहरसा शहर में पानी निकासी की समस्या हो रही थी। इस संबंध में में उन्होंने डी.एम. से भी बातचीत की लेकिन समस्या का कोई सामाधान नहीं निकल पाया। इसके बाद उन्होनें गूगल मैप का सहारा लिया और पानी के निकासी की समस्या दूर कर दी। सहरसा के लोंगों को इस तेजतर्रार IAS अधिकारी का काम बहुत भाया। जोरवाल ने सरकारी सेवा में अपनी काबिलियत से खूब सुर्खियां बटोरीं। चाहे़ वह विधि व्यवस्था की स्थापना हो या जुर्माना वसूलना, कानून व्यवस्था सब के लिए एक है। अपने बॉडीगार्ड से भी वाहन चेकिंग के दौरान उन्होंने 300 रूपये वसूला क्योंकि गार्ड बिना हैलमेट और जूते के बाइक पर सवार थे।
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सौरभ जोरवाल इलाके में शिक्षा के क्षेत्र में भी काम करना चाहते हैं। उनके अनुसार इलाके में शिक्षा के विकास की असीम संभावना है। लेकिन उनका तबादला हो गया जो सहरसा वालों के लिए किसी झटके से कम नहीं था। उन्हें लगता है कि माफियाओं ने उनका तबादला करा दिया है। इस अफसर के जाने की खबर सुन पूरा शहर उदास हो गया लोग रो पड़े। लोग कहते थे वे काश एक साल और रह लेते तो शहरवासियों को कई समस्याओं से छुटकारा मिल जाता। सोशल मीडिया पर लगातार उनका तबादला रोके जाने के कैंपेन चलाए गए थे।
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वो कहते हैं अधिकारी और आम लोगों के बीच जो गैप है उसे पाटने की जरुरत है। विधि व्यवस्था, आपूर्ति व्यवस्था, जल निकासी आदि पर विशेष रुप से काम करने वाले सौरभ तकनीक के इस्तेमाल के लिए आई.आई.टी की कार्य ऐंजिसियों से भी मदद ले रहे हैं। कहा जाता है कि यदि अधिकारी अपने अधिकार की बारिकियों को जानता हो तो उसे सरजमी तक उतारने में परेशानी नहीं होती। एक तटस्थ और कर्मठी अधिकारी शहर और वहाँ के लोगों के जीवन की तस्वीर बदल सकता है।

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