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बच्चों को ट्यूशन पढ़ा पढ़ाकर बेटी बनी IAS अफसर, गरीब पिता पर नहीं डाला लाखों रु. फीस का बोझ
नई दिल्ली. कहते हैं जिस घर में बेटी पैदा होती है वो घर मंगल हो जाता है। बेटी के पैदा होने पर कहावत है कि घर में लक्ष्मी आई है। महिला सशक्तिकरण और महिलाओं को प्रोतस्हान के लिए 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2020 (International Women's Day) मनाया जाता है। इस मौके पर हम आपको बहादुर बेटियों और जाबांज महिलाओं की कहानी सुना रहे हैं। बेटियां पिता के करीब होती है। बेटी अगर चाहे तो पिता को कोई आंच न आने दे। ऐसे ही एक बेटी पढ़-लिखकर अफसर बनना चाहती थी लेकिन पिता बेहद गरीब थे। बेबस पिता को देख बेटी ने फीस के पैसे नहीं मांगे और खुद ही मुसीबतों से लड़ने उतर गई। बच्चों को ट्यूशन पढ़ाया और अपने दम पर अफसर बनी। IAS सक्सेज स्टोरी में हम आपको महिला अधिकारी अराधना पाल के संघर्ष की कहानी सुना रहे हैं....
| Published : Mar 04 2020, 05:46 PM IST
बच्चों को ट्यूशन पढ़ा पढ़ाकर बेटी बनी IAS अफसर, गरीब पिता पर नहीं डाला लाखों रु. फीस का बोझ
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अनुराधा पाल जिला हरिद्वार के एक छोटे से गांव की रहने वाली हैं। वो एक बेहद साधारण परिवार में जन्मी लड़की हैं। अनुराधा अपने अफसर बनने के सफर की कहानी खुद सुानाती हैं। उन्होंने मीडिया को बताया कि, गांव से होने की वजह से सुविधाओं की कमी रही। थे। उनकी जिंदगी काफी उतार-चढ़ाव वाली रही।"
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अनुराधा ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी। वो बताती हैं कि, मैंने जी.बी.पंत विश्वविद्यालय से बी.टेक. (इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन) किया था। स्नातक के फाइनल इयर में मेरा चयन आई. टी. क्षेत्र की एक प्रमुख कम्पनी टेक-महिंद्रा में हुआ था। करियर की शुरूआत मैंने कॉलेज आफ टेक्नोलोज़ी, रुड़की में टीचर के पद पर काम किया। यहां मेरा कार्यकाल तीन साल का था।
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अनुराधा के दिमाग में सिविल सर्विस को लेकर शुरू से ही एक जुनून था। वो अफसर बनना चाहती थीं। पर घर की माली हालत उन्हें नौकरी करने को मजबूर करती रही। शुरुआत में उन्हें पैसों की कमी का सामना करना पड़ा। ऐसे में उन्होंने पर सेल्फ स्ट्डी कर दो बार एग्जाम दिए लेकिन सफलता नहीं मिली। उन्होंने समझ लिया कि ये एक बड़ी तैयारी है जो बिना गाइडेंस के पूरी नहीं हो सकती।
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इसलिए उन्होंने कोचिंग ज्वाइन करने की ठान ली लेकिन कोचिंग में लाखों रुपये की फीस दी जानी थी। ऐसे में इनुराधा ने दिल्ली शिफ्ट करने का फैसला किया और निर्वाणा आई.ए.एस. अकादमी में दाखिला लिया।
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अनुराधा की कोचिंग की फीस वो अफोर्ड नहीं कर पा रही थीं इसलिए उन्होंने कोचिंग-क्लास के खर्च को उठाने के लिए बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया था।" दिल्ली में रहते हुए इस बाहदुर बेटी ने कभी पिता पर पैसों का बोझ नहीं डाला।
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साल 2012 में अनुराधा ने सिविल सर्विस परीक्षा पास कर ली लेकिन उन्हें आई.आर.एस. का पद मिला। सी.एस.ई. में पाल ने 451 रैंक हासिल की थी। पर उन्हें IAS ही बनना था। वो इनकम टैक्स में नहीं जाना चाहती थीं। अनुराधा ने सर्विस में होने के बावजूद एक बार फिर सिविल सेवा परीक्षा दी और साल 2015 में इस प्रयास में कामयाब रही।
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सिविल सेवा परीक्षा 2015 में हिंदी माध्यम के साथ टॉपर बनकर अनुराधा सुर्खियों में आई थीं। मैरिट-लिस्ट में 62 वां रैंक प्राप्त किया था। आखिरकार अनुराधा अपने मेहनत के दम पर आईएएस अधिकारी बन ही गई थीं।