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शाहीन बाग से हनुमान चालीसा तक, क्या अपने ही जाल में फंस गए दिल्ली के सीएम केजरीवाल?
| Published : Feb 07 2020, 10:30 AM IST
शाहीन बाग से हनुमान चालीसा तक, क्या अपने ही जाल में फंस गए दिल्ली के सीएम केजरीवाल?
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मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सत्ता की हैट्रिक लगाने के लिए अपने प्रत्याशियों को जिताने के लिए दिन रात एक कर दिया। दिल्ली की अलग-अलग सीटों पर वो जाकर रोड शो और चुनावी सभाओं के जरिए अपने प्रत्याशियों के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की। केजरीवाल खुद भी ज्यादा से ज्यादा रोड शो करके मतदाताओं से सीधे संवाद करने किया, लेकिन मुस्लिम बहुल सीटों पर न तो रोड शो किया और न ही कोई रैली।
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दिल्ली में करीब 12 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं। दिल्ली की कुल 70 में से 8 विधानसभा सीटें मुस्लिम बहुल माना जाती हैं। केजरीवाल ने दिल्ली की बल्लीमारान, सीलमपुर, ओखला, मुस्तफाबाद, और मटिया महल सीट पर मुस्लिम कैंडिडेट उतारे हैं। इन सीटों पर 45 से 60 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं और यहां आम आदमी पार्टी की कांग्रेस से सीधी टक्कर मानी जा रही है।
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दिलचस्प बात यह है कि केजरीवाल ने मुस्लिम बहुल सीटों से सटी सीटों में प्रचार करने गए। उदाहारण के तौर पर बदरपुर और जंगपुरा सीट पर रोड शो करने के बावजूद केजरीवाल ओखला विधानसभा क्षेत्र नहीं गए। चांदनी चौक में चुनावी सभा की, लेकिन मटियामहल और बल्लीमारान सीट की तरफ रुख नहीं किया। केजरीवाल बावरपुर व करावल नगर गए, पर सीलमपुर व मुस्तफाबाद विधानसभा सीट पर जाने से परहेज रखा।
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दिल्ली के तकरीबन सभी मुस्लिम इलाकों में सीएए-एनआरसी के लेकर विरोध प्रदर्शन जारी हैं। ओखला विधानसभा क्षेत्र के तहत आने वाले शाहीन बाग और जामिया में तो पिछले एक ड़ेढ़ महीने से ज्यादा से विरोध प्रदर्शन चल रहे हैं। महिलाएं रात-दिन धरने पर बैठी हैं। साथ ही सीलमपुर, जाफराबाद और मुस्तफाबाद इलाके में भी कई दिनों से विरोध प्रदर्शन चल रहा है।
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दिल्ली में बीजेपी ने एक भी मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में नहीं उतारा है और शाहीन बाग के मुद्दे को लेकर मोर्चा खोले हुए हैं। इतना ही नहीं बीजेपी के नेता केजरीवाल पर सीएए के खिलाफ चल रहे आंदोलनों का चलाने का लगातार आरोप लगा रही है, लेकिन आम आदमी पार्टी अपने आपकों इस दूर रख रही है ताकि उस पर मुस्लिम परस्ती का आरोप न लग सके।
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बीजेपी ने जिस तरह से दिल्ली चुनाव में ध्रुवीकरण की कोशिश की है, उससे केजरीवाल के मुस्लिम बहुल सीटों पर प्रचार करने के जाने से आम आदमी पार्टी के लिए सियासी तौर पर सत्ता खिसकने का डर सता था। इसी का नतीजा रहा केजरीवाल ने पूरे चुनाव के दौरान किसी भी मुस्लिम मुद्दे पर न तो बोले और न ही उन्होंने प्रचार करने उतरे। उन्होंने अपने मुस्लिम कैंडिडेटों उन्हीं के भरोसे छोड़ दिया था।
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हालांकि केजरीवाल के मुस्लिम बहुल सीटों पर प्रचार नहीं करने के बाद भी दिल्ली की सियासी फिजा बदली हुई नजर आ रही है। 2015 में क्लीन स्वीप करने वाली आम आदमी पार्टी का किला दिल्ली में दरकता हुआ नजर आ रहा है। बीजेपी ने दिल्ली में एक के बाद मास्टर स्ट्रोक चला है, उससे केजरीवाल का दिन का चैन औऱ रातों की नींद उड़ गई है। ऐसे में देखना है कि दिल्ली की सिहांसन पर कौन विराजमान हो पाता है।