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शाकाहार की ओर अफ्रीका, कभी यहां मांस के बिना खाने के बारे में भी सोच नहीं पाते थे लोग
| Published : Feb 17 2020, 02:15 PM IST / Updated: Feb 17 2020, 02:20 PM IST
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यह जगह रोज आने वाले कस्टमर्स से भरी हुई रहती है। यहां आने वाले कस्टमर रेस्तरां की मालकिन क्रिस्टीन टेप्सोबा को शुभकामनाएं देते हैं। लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था। क्रिस्टीन कहती हैं, "शुरुआत में यह आसान नहीं था। लोगों को यह अजीब ही लगा। उन्हें पता नहीं था कि हम मांस का उपयोग किए बिना भोजन कैसे बना सकते हैं।" वह कहती हैं कि कुछ दिनों तक हम रेस्तरां खोल कर बैठे रहे और कुछ भी नहीं बेच पाए।" नासा नाम का यह वेज रेस्तरां साल 2004 में खुला। इसके बाद से ही ग्राहक तेजी से बढ़े हैं। शुरू में उन्हें लोकप्रिय बारबेक्यूड टोफू स्केवर्स के के जरिए यहां तक लाया गया। यह काफी पॉपुलर फूड आइटम है।
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पूरे अफ्रीका में स्वास्थ्य और पर्यावरण की चुनौतियों को देखते हुए तपसोबा के नक्शे-कदम पर प्लान्ट-बेस्ड रेस्तरां की संख्या बढ़ रही है। हैप्पी काऊ नाम के एक ऐप के जरिए अफ्रीका में शाकाहारी फूड मुहैया कराने वाले 900 से अधिक रेस्तरां को सूचीबद्ध किया गया है। इनमें से आधे से अधिक पिछले दो वर्षों में लिस्ट में जोड़े गए हैं। 2018 की शुरुआत में 30 पूरी तरह से शाकाहारी रेस्तरां सूचीबद्ध किए गए हैं। हैप्पी काऊ ऐप बनाने वाले एरिक ब्रेंट कहते हैं कि ज्यादातर प्रमुख शहरों में वेज फूड की मांग बढ़ी है। यह उन लोगों के लिए बहुत अच्छा है, जो प्लान्ट बेस्ड खाना पसंद करते हैं। उनका कहना है कि शाकाहार को बढ़ावा देने वाली डॉक्युमेंट्री फिल्में भी बनाई जा रही हैं, जिन्हें यूट्यूबर्स अपने चैनलों पर चलाते हैं। इससे शाकाहार को लोकप्रिय बनाने में मदद मिल रही है।
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साउथ अफ्रीका के केपटाउन और जोहान्सबर्ग शहरों में वेज रेस्तरां काफी पॉपुलर हो रहे हैं। केन्या में नैरोबी और घाना के अक्रा जैसे शहरों में आज एक दर्जन से अधिक मीट फ्री रेस्तरां हैं। यहां सिर्फ वेज फूड ही मिलते हैं। सेनेगल की राजधानी डकार के अप मार्केट समुद्र तटीय रेस्तरां में सलाद और वेज सैंडविच को मेनू में शामिल किया जा रहा है, जबकि पहले वहां सिर्फ मीट और मछली के व्यंजन ही मिलते थे। अफ्रीका अभी कुछ उन चुनौतियों से सबसे ज्यादा जूझ रहा है, जिनका सफलतापूर्वक सामना शाकाहार अपनाने से ही संभव है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, अफ्रीका में हृदय रोग और कैंसर जैसी बीमारियां अब हैजा और खसरा जैसी संक्रामक बीमारियों से आगे निकल गई हैं। इससे अफ्रीका की अर्थव्यवस्था पर बोझ बढ़ रहा है। अफ्रीका पहले से ही जलवायु संकट के प्रभावों का सामना कर रहा है। वहां सूखा और बाढ़ जैसी समस्याएं किसानों के लिए कहर बरपाती हैं। मांस का उपभोग कम करने से इसका दूरगामी असर इन समस्याओं में भी सकारत्मक होगा।
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हालांकि, शाकाहार के समर्थकों का कहना है कि अफ्रीका में शाकाहार कोई नया चलन नहीं है, बल्कि यह पारंपरिक अफ्रीकी आहार की वापसी है। दक्षिण अफ्रीका और जिम्बाब्वे में काम करने वाली शेफ निकोला कागोरो कहती हैं, "मैं विशेष रूप से पूरे अफ्रीका में शाकाहार का प्रचार करना महत्वपूर्ण समझती हूं, क्योंकि इसकी शुरुआत अफ्रीका में ही हुई थी।" उनका कहना है कि हमारे पूर्वजों ने ज्यादा मांस नहीं खाया था। पश्चिमी देशों का उपनिवेश बनने के बाद अफ्रीकी देशों में मांसाहार का प्रचलन बढ़ गया। कागोरो ने अफ्रीकी वेगन की स्थापना एक बजट आंदोलन के तौर पर की थी, जिसमें दिखाया गया था कि अफ्रीकियों के लिए शाकाहारी आहार सस्ते और पौष्टिक हो सकते हैं। वह महिला शाकाहारी सशस्त्र रेंजरों के समूह 'अकशिंगा' के लिए खाना बनाती हैं, जो जिम्बाब्वे में हाथियों का अवैध शिकार करने वालों से संघर्ष करता है।
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साल 2015 में लैंसेट में प्रकाशित दुनिया के सबसे स्वास्थ्यवर्धक आहारों पर शोध में पश्चिमी अफ्रीकी देशों जैसे माली, चाड, सेनेगल और सिएरा लियोन ने फलों, सब्जियों और साबुत अनाज से भरपूर आहार का इस्तेमाल करने में शीर्ष स्थान हासिल किया। इथियोपियाई भोजन प्लान्ट बेस्ड खाद्य पदार्थों पर आधारित है, जैसे खट्टे फ्लैटब्रेड, दाल और बीन्स। साथ ही, देश के ऑर्थोडॉक्स ईसाई नियमित तौर पर होने वाले उपवास और प्रार्थनाओं में भाग लेते हैं, जिस दौरान उन्हें शाकाहारी भोजन परोसा जाता है। फिर भी, अभी शाकाहार की तरफ रुझान धीमा है। शेफ कोला के नाम से पहचानी जाने वाली कागोरो कहती हैं, "अफ्रीका में शाकाहारी भोजन की प्रथा को फैलाना थोड़ा मुश्किल है, क्योंकि अफ्रीकी मांसाहार को पसंद करते हैं।" उनका कहना है कि अफ्रीकी मांस खाने को समृद्धि से भी जोड़ कर देखते हैं। बहरहाल, उनका कहना है कि शाकाहार को बढ़ावा देने के लिए हर प्रयास किए जा रहे हैं और लोगों को शाकाहार के फायदे बात कर उन्हें जागरूक किया जा रहा है।