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आखिर वसंत पंचमी पर क्यों बनाए जाते हैं पीले रंग के पकवान? इन पकवानों के भोग से खुश हो जाती हैं विद्या की देवी
फ़ूड डेस्क: भारत में वसंत पंचमी की तैयारियां जोरों पर है। हर तरह माता सरस्वती के स्वागत की तैयारी चल रही है। पंडाल बनना शुरू हो गया है और मूर्तिकार माता सरस्वती की मूर्तियों को आखिरी रूप दे रहा है। इस साल 16 फरवरी को वसंत पंचमी मनाया जाएगा। वसंत पंचमी में पीले रंग का काफी महत्व होता है। ना सिर्फ इस दिन लोग पीले रंग के कपड़े पहनते हैं, बल्कि पीले रंग के ही फूल और यहां तक की प्रसाद भी पीले ही चढ़ाए जाते हैं। लेकिन क्या आपको इसके पीछे की वजह पता है? अगर नहीं तो आइये आपको बताते हैं क्यों माता सरस्वती को चढ़ाया जाता है पीले रंग का भोग। साथ ही आप माता को प्रसाद में क्या चढ़ा कर कर सकते हैं खुश...
| Published : Feb 15 2021, 01:28 PM IST
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वसंत पंचमी में पीले रंग का काफी महत्व होता है। पीले रंग को प्रकृति की प्रतिभा और जीवन की जीवंतता का प्रतीक माना जाता है। जिस समय वसंत पंचमी पड़ती है, प्रकृति अपने चरम पर नए जीवन का स्वागत कर रही होती है। पेड़ों में जहां नए पत्ते आते हैं वहीं सर्दियाँ भी विदा होने लगती है।
वसंत पंचमी पर पीले रंग के कपड़ों में माता सरस्वती की पूजा की जाती है। साथ ही उन्हें पीले रंग की चीजों से ही भोग लगाया जाता है। बात अगर फलों की करें, तो माता सरस्वती को केले, बेर चढ़ाए जाते हैं।
माता को भोग लगाने के लिए पीले रंग की मिठाइयों का ही चयन किया जाता है। इस दौरान घर पर स्वादिष्ट पकवान बनाए जाते हैं, जिसमें पीले रंग की चीजों का काफी इस्तेमाल किया जाता है। अगर पकवान का रंग नेचुरल पीला नहीं है, तो उसमें केसर मिला दिया जाता है।
माता सरस्वती को कई जगह केसरी हलवा और मीठे चावल का भोग लगता है। इसमें हलवे और चावल दोनों में केसर का इस्तेमाल कर उसका रंग पीला कर दिया जाता है। ऐसा नार्थ इंडिया में ज्यादा किया जाता है।
बिहार और उत्तर प्रदेश में माता सरस्वती को मालपुआ चढ़ाया जाता है। इसमें केसर मिला दिया जाता है, जिससे इसका रंग पीला हो जाता है। वहीं मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में बूंदी के लड्डू और खिचड़ी का भोग लगता है।
बंगाल, असम में भी माता सरस्वती को खिचड़ी, लांबड़ा और खीर का भोग लगता है। इन सभी में केसर का इस्तेमाल किया जाता है। ताकि उसका रंग पीला हो जाए।