- Home
- Lifestyle
- Health
- अब बांझपन से मिलेगी मुक्ति, सरोगेसी या टेस्टट्यूब नहीं इन 5 तकनीकों से आप हो सकती है प्रेग्नेंट
अब बांझपन से मिलेगी मुक्ति, सरोगेसी या टेस्टट्यूब नहीं इन 5 तकनीकों से आप हो सकती है प्रेग्नेंट
- FB
- TW
- Linkdin
पीआरपी (platelets rich plasma) की मदद से इन्फर्टिलिटी का इलाज संभव हो पाया है। पीआरपी एक ऐसी तकनीक है, जिसमें मरीज के बॉडी से ब्लड निकाल कर उसे विशेष तकनीक की मदद से ब्लड कंपोनेंट को अलग किया गया, जिसमें प्लेटलेट्स रिच पदार्थ काफी मात्रा में होते हैं। इसमें ग्रोथ फैक्टर और हार्मोन में सुधार की क्षमता होती है। इससे रेसिस्टेंस में सुधार होता है और जिन महिलाओं को मां बनने में तकलीफ होती है, उन्हें इस तकनीक से फायदा मिलता है।
मां बनने के लिए IVF तकनीक बड़े काम की साबित हुई है। इसके जरिए लाखों नि:संतान दंपत्ति का पेरेंट्स बनने का सपना पूरा हुआ है। इसमें स्टिमुलेशन प्रोसेस के बाद डॉक्टर महिला के शरीर से एग्स निकालकर पुरुष के स्पर्म के साथ उसे लैब में इन्फ्यूज करते हैं। 5 से 6 दिन बाद तैयार भ्रूण को महिला के गर्भाशय में डाला जाता है। इसके दो हफ्ते बाद इसकी जांच होती है कि आईवीएफ सफल रहा या नहीं। ये एक टाइम टेकिंग प्रोसेस है, जो कई बार एक प्रयास में सफल नहीं होता है। लेकिन भारत में इसका चलन सबसे ज्यादा है।
इस प्रोसेस को आईवीएफ इम्प्लांट करने से पहले किया जाता है, ताकि एक हेल्दी बच्चा हो सकें। इसमें पहले पांच दिन भ्रूण को टाइम लैप्स इमेजिंग के साथ लगे इन्क्यूबेटर में डेवलेप करते हैं। इस तरह से टाइम लैप्स टेक्नोलॉजी (time lapse technology) की मदद से गर्भपात का खतरा कम होता है। साथ ही बच्चे में डाउन सिंड्रोम या अन्य आनुवांशिक समस्याओं के साथ पैदा होने का खतरा भी कम होता है।
कृत्रिम गर्भधारण (IUI) एक चिकित्सा प्रक्रिया है जो निःसंतानता का इलाज करने में मदद करती है। इसमें निषेचन (fertilization) को बढ़ावा देने के लिए एक पुरुष के स्पर्म को सीधे महिला के गर्भाशय (uterus) के अंदर रखा जाता है। यह हेल्दी स्पर्म की संख्या बढ़ाने का एक तरीका है जो फैलोपियन ट्यूब (fallopian tube) तक पहुंचता है। यह आईवीएफ की तुलना में, यह एक छोटी और सस्ती प्रक्रिया है।
ICI एक प्रकार का कृत्रिम गर्भधारण की प्रक्रिया है, जिसमें एक डोनर (जिसकी आइटेंडिटी गुप्त रखी जाती है) उसका स्पर्म महिला के गर्भाशय में डाला जाता है। इसके बाद महिला को 15 से 30 मिनट तक लेटने को कहा जाता है। यह आदर्श रूप से स्पर्म को गर्भाशय ग्रीवा से गर्भाशय में ऊपर जाने की अनुमति देता है। लगभग दो सप्ताह या उससे थोड़ा अधिक समय में, महिला अपना प्रेग्नेंसी टेस्ट करती है कि यह प्रक्रिया सफल रही या नहीं। सफल नहीं होने पर इस प्रोसेस को कई बार दोहराया जा सकता है।
सरोगेसी के जरिए शादीशुदा कपल बच्चा पैदा करने के लिए किसी और महिला की कोख किराए पर लेता है। वह महिला उनके बच्चे को जन्म देती है। इस प्रोसेस में पिता का स्पर्म सरोगेट मदर (surrogate mother) के एग्स से मैच करवाया जाता है और टेस्ट ट्यूब के जरिए यह सरोगेट मदर के यूट्रस में डाल दिया जाता है। हालांकि, ये सबसे महंगी प्रोसेस है, इसलिए कम ही लोग इसे करवाते हैं।
ये भी पढ़ें- Research: बच्चों के डेवलेपमेंट पर बुरा असर डालती है मां की 1 खराब आदात, आज ही बनाएं इससे दूरी