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कोरोना से रिकवरी के बाद स्मोकिंग से रहें दूर, तंबाकू प्रोडेक्ट से 25 तरह की बीमारियों का खतरा
हेल्थ डेस्क. कोरोना से सक्रमण के बाद फेफड़ों पर घाव बन जाते हैं। कोरोना रिपोर्ट निगेटिव होने के बाद भी फेफड़ों पर बनें जख्मों को ठीक होने में कम से कम छह माह से ज्यादा का समय लगता है। रिकवरी के तुरंत बाद जो लोग स्मोकिंग करते हैं तो फेफड़ों को अधिक नुकसान होता है। साथ ही फेफड़ों की रिककरी का समय भी बढ़ जाता है। ऐसे में तंबाकू छोड़ने की कोशिश करें।
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स्मोकिंग से कैसे खतरा
कोरोना कायरस शरीर में ACE-2 रिम्पेटर्स से शरीर के अंदर पहुंचाता है। यह एक ऐमा एंजाइम है, जिससे नाक के स्पाइक प्रोटीन से वायरस जुड़ जाता है और वायरस के फैलने में मदद करता है। स्मोकर्स में एसीई-2 की संख्या ज्यादा होने से कोरोना का खतरा बढ़ जाता है।
बार-बार मुंह को टच करते हैं
तंबाकू और स्मोकिंग करने वाले लोग बार-बार थूकते रहते हैं। इससे आसपास के लोगों में संक्रमण का डर रहता है। ऐसे लोग बार-बार अपने मुंह को टच करते हैं। ये लोग बार-बार सिगरेट को शेयर करके पीते हैं ऐसे में संक्रमण का खतरा बढ़ने का डर रहता है।
अभी तंबाकू छोड़ना ज्यादा आसान
कोरोना के बढ़ते मामलों के कारण ज्यादातर राज्यों में अभी लॉकडाउन लगा है। लॉकडाउन के कारण लाखों लोगों ने तंबाकू छोड़ दी है। एक्शन ऑन स्मोकिंग एंड हेल्थ संस्था के अनुसार, इस दौरान 10 लाख लोगों ने स्मोंकिग छोड़ दी है। 5.5 लाख लोग इसे छोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। 24 लाख लोगों ने नशे की मात्रा कम की है। जो लोग तंबाकू छोड़ना चाहते हैं उनके लिए ये सही समय है।
ऐसे छोड़ें तंबाकू
तंबाकू छोड़ने की इच्छा अपने दोस्तों और फैमली को बताएं। एक बार में नहीं छोड़ पाते हैं तो धीरे-धीरे इसकी मात्रा कम करें। अपनी आदत और शौक को बढ़वा दें जिसमें आप व्यस्त रहेंगे। जब इसकी तलब लगे तब अपने आप को किसी काम में बिजी कर लें। टहलना शुरू कर दें ऐसे दोस्तों से दूरी बना लें जो इसका सेवन करते हैं। अगर फिर भी नहीं छोड़ पा रहे हैं तो इसकी कांउलिंग करवाएं।
कई तरह की बीमारियों का खतरा
देश में करीब 27 करोड़ लोग तंबाकू और स्मोकिंग के आदी हैं। इनमें से 12 करोड़ लोग स्मोकिंग करते हैं। इसके कारण हर साल करीब 12 लाख लोगों की मौत होती है तंबाकू से करीब 40 तरह के कैंसर और 25 तरह की बीमारियां होती हैं। इसमें से 500 तरह की हानिकार गैंसें औऱ 7 हजार से अधिक रसायन होते हैं। स्मोकिंग का धुंआ 30 फीसदी फेफड़ों को और 70 फीसदी वातावरण को प्रभावित करता है।