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आखिर क्यों फूलकर गुप्पा हो जाता है गले का एक भाग, जानें इस गंभीर बीमारी के बारे में
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मेडिकल की भाषा में घेंघा को गलगंड रोग या Goiter कहा जाता है, जो थायराइड ग्रंथि का आकार बढ़ने के कारण होता है। इस बीमारी में वैसे तो मरीज को दर्द नहीं होता है, लेकिन इससे खांसी, निगलने व सांस लेने में दिक्कत आती है।
अमूमन गलगंड रोग 4 प्रकार का होता है। जिसमें साधारण घेंघा रोग, डिफ्यूज टॉक्सिक गोइटर, नॉनटॉक्सिक गोइटर और टॉक्सिक नोड्यूलर गोइटर शामिल है।
साधारण घेंघा रोग में आयोडीन की कमी से थायराइड ग्रंथि बढ़ने लगती है, लेकिन कोई ट्यूमर नहीं बनता। इसके अलावा डिफ्यूज टॉक्सिक गोइटर में थायराइड ग्रंथि बढ़ती है और डिप्रेशन और दिल की समस्या भी हो सकती है। नॉनटॉक्सिक गोइटर में सूजन के साथ-साथ थायराइड ग्रंथि का विकास होता है। चौथे और आखिरी टॉक्सिक नोड्यूलर गोइटर ज्यादातर 55 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को होता है, इसमें थायराइड ग्रंथि बढ़ने के साथ ही गांठ बनने लगती है।
गलगंड रोग के लक्षण में अधिक मात्रा में पसीना आना, ज्यादा भूख लगना, गर्मी सहन न कर पाना, थकान या कमजोरी महसूस करना, गले में दर्द महसूस करना, खांसी होना, सांस लेने में दिक्कत महसूस करना या सांस लेते वक्त आवाज महसूस करना शामिल है।
घेंघा रोग उन क्षेत्रों के लोगों को होता है, जहां पानी में आयोडीन नहीं रहता। कई मामलों में ज्यादा धूम्रपान करने के कारण भी गलगंड हो जाता है। इसके अलावा थायराइड हॉर्मोन ना बनने के कारण या गर्भावस्था के दौरान ह्यूमन कोरियोनिक गोनाडोट्रोपिन हार्मोन बनने कारण भी थायराइड ग्रंथि बढ़ने लगती है।
गलगंड रोग से बचने के लिए आयोडीनयुक्त नमक का उपयोग करने की सलाह दी जाती है। हर इंसान को रोज लगभग 150 माइक्रोग्राम आयोडीन लेना चाहिए। इसके अलावा अपनी डाइट में मछली, कॉर्न, सूखी आलू बुखारा, सेब का जूस, मटर, अंडा, दूध, दही, चीज, सेब, केला आदि को शामिल करना चाहिए। घेंघा से बचने के लिए आपको धूम्रपान के सेवन से भी बचना चाहिए।
एक्सपर्ट्स का मानना है कि परिवार में पहले किसी को घेंघा रोग होने से भी आपको यह रोग होने का खतरा बढ़ सकता है। हालांकि, ये कम केसेज में होता है।
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