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लॉकडाउन का असर, लेडी एथलीट इन दिनों सिर पर टोकरी रखकर पुकारती है-टमाटर ले लो टमाटर..
रांची, झारखंड. झारखंड में खिलाड़ियों के बुरे हाल हैं। उन्हें घर-परिवार चलाने सब्जियों की दुकानें लगानी पड़ी रहीं। वहीं, घर-परिवार की दिक्कतों में ही पूरा दिन उलझे रहना पड़ रहा है। यह हैं गीता। ये पूर्वी क्षेत्र जूनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप आदि में मेडल जीतकर झारखंड का मान बढ़ा चुकी हैं। लेकिन इन दिनों ये आर्थिक तंगी से गुजर रही हैं। इन्हें इन दिनों सब्जियां बेचकर अपने परिवार के कामकाज में हाथ बंटाना पड़ रहा है। बेस्ट बोकारो की गीता पैदल चाल और क्रॉस कंट्री में कई मेडल जीत चुकी हैं। गीता के पिता इंद्रदेव प्रजापति और मां बुधनी बताती हैं कि उनका पूरा परिवार फुटपाथ पर सब्जियां बेचता है, ताकि घर का खर्चा चल सके। गीता ने नेशनलिस्ट जोन एथलेटिक्स चैंपियनशिप में कई मेडल जीते। वे 2012 में टाटा स्टील वेस्ट बोकारो एथलेटिक्स ट्रेनिंग सेंटर से जुड़ी थीं। उन्हें राजीव रंजन सिंह ने ट्रेंड किया है। गीता ने 3, 5, 10 और 20 किलोमीटर में नेशनलिस्ट जोन ईस्ट प्रतियोगिता में भी झारखंड का नाम रोशन किया। गीता का चयन झारखंड टीम में हुआ था, लेकिन पारिवारिक समस्या के कारण वे इसमें शामिल नहीं हो सकीं। आगे भी जानिए गीता की कहानी..
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आर्थिक परेशानियों से जूझने के बावजूद गीता अपने खेल पर बराबर ध्यान दे रही हैं। वे नियमित अभ्यास करती हैं। गीता अपने परिवार में सबसे छोटी हैं। उनकी दो बहनों की शादी हो चुकी है। गीता ने 10 किलोमीटर क्रॉस कंट्री में भी कई मेडल जीते हैं। गीता पुलिस में जाकर समाज की सेवा करना चाहती हैं। आगे पढ़िए गीता की ही कहानी..
गीता को मदद का इंतजार है, ताकि वे अपने खेल पर पूरा ध्यान दे सकें। वे जोश से कहती हैं कि लॉकडाउन में काम-धंधों पर बुरा असर पड़ा है। इसलिए उन्हें अपने परिवार के कामकाज में हाथ बंटाना पड़ रहा है। आगे पढ़िए नेशनल तीरंदाज सोनी खातून की कहानी..
यह हैं झारखंड की पहचान नेशनल तीरंदाज सोनी खातून। इनके घर में कई पदक रखे हुए हैं, लेकिन अब ये सड़क पर सब्जी की दुकान चलाते देखी जा सकती हैं। 23 साल की सोनी झारिया ब्लॉक के जियलगोरा गांव में रहती हैं। इनके पिता घरों में रंगाई-पुताई का काम करते हैं। लेकिन इन दिनों काम बंद है। लिहाजा, बेटी को रोजी-रोटी की जुगाड़ करने दुकान चलानी पड़ रही है। बता दें कि सोनी ने 2011 में पुणे में आयोजित 56वीं राष्ट्रीय विद्यालय तीरंदाजी प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीता था। सोनी ने खेलमंत्री से लेकर कई अफसरों से मदद मांगी। लेकिन जब कहीं से कोई उम्मीद नहीं दिखी, तो खेल को किनारे रख..सड़क किनारे सब्जी की दुकान लगा ली। आगे पढ़ें नेशनल तीरंदाज अनिल लोहार की कहानी...
यह हैं नेशनल तीरंदाज अनिल लोहार। ये सरायकेला के गम्हरिया प्रखंड के पिण्ड्राबेड़ा गांव में रहते हैं। उनके घर में पानी की सुविधा नहीं है। वे गांव के प्राइमरी स्कूल में लगे हैंडपंप से पानी भरकर लाते हैं। लेकिन इस समय स्कूल बंद है, लिहाजा उन्हें सीढ़ियों के सहारे दीवार फांदकर आना-जाना पड़ रहा है। आगे पढ़िए अनिल के बारे में में ही..
बता दें कि नेशनल तीरंदाज अनिल लोहार लॉकडाउन के चलते दाने-दाने को मोहताज हो गए। तीरंदाजी एकेडमी सरायकेला के मुख्य कोच बीएस राव ने बताया कि हालांकि अब स्टाईपेंड के 75 हजार जारी करने के लिए सरकार की अनुमति मिल गई है। (घर में कुआं खोदते अनिल लोहार)
अनिल लोहार ने बताया कि दीवार फांदते समय गिरने का डर बना रहता था। इसलिए उन्होंने घर में कुआं खोदने की ठानी। अब वे और उनकी पत्नी रोज 4 घंटे कुआं खोद रहे हैं। करीब 20 फीट गहरा कुआं हो चुका है। लेकिन अभी पानी नहीं निकला है। आगे पढ़िए अनिल के बारे में में ही..
अनिल ने बताया कि पहले वे प्राइवेट जॉब करते थे। उन्हें लगा कि पूरा फोकस खेल पर देना चाहिए, तो जॉब छोड़ दी। लेकिन लॉकडाउन में आर्थिक स्थिति इतनी बिगड़ गई कि मुर्गे बेचकर घर चलाना पड़ रहा है। आगे पढ़िए अनिल के बारे में में ही..
उनकी पत्नी चांदमनी कहती हैं कि घर किसी तरह चल रहा है। कभी-कभार वे अपने मायके से मदद ले लेती हैं। बता दें कि अनिल लोहार ने पिछले साल मार्च में ओडिशा में हुई नेशनल तीरंदाजी प्रतियोगिता में इंडियन राउंड के टीम इवेंट में गोल्ड मेडल जीता था। अनिल ने सरायकेला के रतनपुरा स्थित तीरंदाजी एकेडमी में अपने खेल की शुरुआत की थी।