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बंद होने होने वाला था स्कूल, मैडम के एक आइडिया ने बदल दी तस्वीर, बैतूल की इस टीचर को सैल्यूट कर रहे लोग

बैतूल. मध्यप्रदेश के बैतूल जिले में एक महिला टीचर के काम को लेकर वहां से लोग सैल्यूट कर रहे हैं। इस टीचर को लोग स्कूटी वाली मैडम कहकर पुकारते हैं। ये मैडम 17 बच्चों को रोज अपनी स्कूटी में बैठाकर बारी-बारी स्कूल पहुंचाती हैं और फिर इन बच्चों को वापस घर लेकर आती है। दरअसल, मामला बैतूल जिले के भैंसदेही का है। यहां से स्कूल की दूरी महज 2 किमी है। मासूम बच्चों को पैदल स्कूल जाना पड़ता था जिस कारण से बहुत से छात्रों ने स्कूल जाना बंद कर दिया। ऐसे में लगा कि स्कूल बंद हो जाएगा। यह देखकर मैडम अरुणा महाले ने बच्चों को स्कूल पहुंचाने का बीड़ा उठाया। आइए जानते हैं अरुणा की कहानी। 

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Pawan Tiwari
Published : Aug 06 2022, 09:11 AM IST
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जो बच्चे स्कूल छोड़ चुके उन्हें शुरू किया स्कूल ले जाना
अरुणा ने उन बच्चों को अपनी स्कूटी में स्कूल पहुंचाना शुरू किया जो बच्चे स्कूल छोड़ चुके थे। धीरे-धीरे स्कूल छोड़ चुके बच्चों में एक बार फिर से पढ़ाई की इच्छा जागी और अब स्कूल आने लगे हैं। इसके बाद भी अरुणा अभी भी 17 बच्चों को स्कूल अपनी स्कूटी से छोड़ती हैं। ये सिलसिला बीते 7 सालों से चल रहा है। 
 

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बच्चों की पढ़ाई में विशेष ध्यान 
अरुणा महाले भैंसदेही के धुड़िया गांव की स्कूल में टीचर हैं। 7 साल पहले जब उनकी ज्वाइनिंग हुई थी तक उस स्कूल में केवल 10 बच्चे पढ़ाई के लिए आते थे। जब कम बच्चों के आने का कारण जाना तो पता चला कि स्कूल दूर होने के कारण बच्चों ने पढ़ाई छोड़ दी है। जिस कारण स्कूल में छात्रों की संख्या कम है। 

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बच्चों को स्कूटी में लाना शुरू किया
जब उन्हें इस बात की जानकारी हुई तो उन्होंने बच्चों को वापस स्कूल लाने के लिए फैसला किया। उन्होंने उन बच्चों को स्कूल लाने का मन बनाया जो स्कूल छोड़ चुके थे। इशके लिए उन्होंने स्कूटी से बच्चों को लेकर आना और छोड़ना शुरू किया। 
 

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तीन से 4 चक्कर में छोड़ती हैं स्कूल
उन्होंने बताया कि एक बार में करीब 3 से 4 बच्चे मेरी स्कूटी में बैठ जाते हैं। मैं तीन से चार चक्कर में बच्चों को स्कूल लेकर आती हूं। गांव से स्कूल की दूरी केवल 2 किमी है जिस कारण से इस काम में मुझे केवल 1 घंटे का समय लगता है। 
 

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परिजन बच्चों को छोड़ने लगे स्कूल
उन्होंने बताया कि ऐसा करते मुझे देख कुछ बच्चे भी प्रेरित हुए। उन्होंने धीरे-धीरे अपने बच्चों को स्कूल लेकर आना शुरू कर दिया। अब स्कूल में बच्चों की संख्या बढ़कर 85 हो गई है। 

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अपने पैसे से देती हैं सामग्री
अरुणा अपने खर्च से बच्चों को पढ़ने के लिए आवश्यक सामग्री भी देती हैं। ग्रामीणों के अनुसार, उन्होंने अपनी सैलरी से एक अतिथि शिक्षक भी रखा है। उनके पढ़ाने का तरीका भी बच्चों और उनके परिजनों को पसंद है। अरुणा की कोई संतान नहीं है जिस कारण से वो स्कूल के इन बच्चों को ही अपनी संतान मानती हैं।

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About the Author

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Pawan Tiwari
BHU से मॉस कम्युनिकेशन की डिग्री लेने के बाद सात सालों से डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारिता के फील्ड में हूं। 2020 में पत्रिका ग्रुप द्वारा डिजिटल पत्रकारिता में श्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए सम्मानित हो चुका हूं। धार्मिक-राजनैतिक किताबें पढ़ने की आदत है।

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