- Home
- States
- Madhya Pradesh
- 62 के हुए CM शिवराज: टीचर से लेकर चाचा ने की पिटाई, 9 साल की उम्र में परिवार के खिलाफ कर दिया था आंदोलन
62 के हुए CM शिवराज: टीचर से लेकर चाचा ने की पिटाई, 9 साल की उम्र में परिवार के खिलाफ कर दिया था आंदोलन
भोपाल. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का 5 मार्च को जन्मदिन है। वह अपना 62वां जन्मदिन मना रहे हैं। हालांकि सीएम ने एक दिन पहले ही अपने चाहने वालों से अपील करते हुए कहा कि मेरे जन्मदिन पर फूलों के हार, स्वागत द्वार, जय जयकार की कोई जरूरत नहीं है। अगर कुछ देना चाहते हो तो एक पेड़ लगा दो। चौथी बार एमपी के मुख्यमंत्री बने शिवराज सिंह चौहान की छवि एक सरल नेता और कॉमन मैन की है। बचपन से ही उन्होंने नेतृत्व क्षमता थी, स्कूल के दिनों में ही सीएम में लीडरशिप देखने को मिली थी। आइए जानते हैं कैसे एक किसान का बेटा बन गय सीएम शिवराज...
- FB
- TW
- Linkdin
शिवराज सिंह चौहान का जन्म 5 मार्च 1959 में मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के एक छोटे से गांव जैत में किसान परिवार में हुआ है। उनके पिता प्रेम सिंह चौहान किसान थे, जबकि मां सुंदर बाई चौहान गृहणी थीं। लेकिन उनका बेटा शिवराज बचपन से ही गरीबों के हक के लिए लड़ने का हुनर था। तभी तो उन्होंने 9 साल की उम्र में अपने परिवार के खिलाफ जाकर मजदूरों के हक में पहला आंदोलन किया था। वह घरवालों से कहते थे कि मजदूरों को हम लोग कम पैसा दे रहे हैं, इसलिए उनको ज्यादा पैसा मिलना चाहिए। जब उनकी बात नहीं सुनी गी तो उन्होंने अपने घरवालों के खिलाफ जाकर विद्रोह कर दिया। इस बात पर सीएम के चाचा बेहद गुस्सा हुए और शिवराज सिंह चौहान की जमकर पिटाई लगा दी। लेकिन इसके बावजूद भी वह रुके नहीं और गरीबों की मदद करते रहे।
घरवालों ने उनका एडमिशन भोपाल के टीटी नगर स्थित मॉडल स्कूल में करा दिया, लेकिन यहां भी वह पढ़ाई के साथ-साथ छात्रों की हक की आवाज उठाने लगे। आलम यह हुआ कि लीडरशिप क्वालिटी के चलते वह 1975 में हायर सेकंडरी में स्टूडेंट्स यूनियन के अध्यक्ष बन गए। यहीं से उनकी राजनीतिक सफर शरू हुआ जो कि बढ़ता ही चला गया। इसके साथ-साथ वह 1972 में 13 साल की उम्र में RSS में शामिल हो चुके थे।
एक इंटरव्यू के दौरान मॉडल स्कूल में शिवराज के शिक्षक और प्रिंसिपल रह चुके केसी जैन ने उनके बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान में नेतृत्व क्षमता, लीडरशिप क्वालिटी स्कूल के दिनों में ही देखने को मिली थी। यहीं से उन्होंने राजनीतिक जीवन की सीढ़ियां चढ़ना शुरू कर दिया था। वह स्कूल टाइम से ही सबके लोकप्रिय रहे हैं, तभी तो सभी छात्रों ने मिलकर छात्र संघ चुनाव में उनका नाम आगे बढ़ाया था। लोकप्रियता के चलते शिवराज स्कूल में छात्र संघ के अध्यक्ष का चुनाव बड़ी आसानी से जीत लिया था।
सीएम के टीचर केसी जैन ने बताया कि शिवराज जी नेतागिरी के साथ साथ बहुत शरारती भी थे। एक वाक्या बताते हुए उन्होंने बताया कि एक समय स्कूल ट्रिप गोवा गया था, उस दौरान स्टूडेंट काफी शरारत कर रहे थे। बोलने के बाद भी मस्ती बंद नहीं हुई, बात में पता चला कि यह शिवराज ने ही करवाया था। जिसके चलते उनको पहले तो जमकर डांट पड़ी। फिर फिर दो-तीन चांटे भी लगाए गए थे।
सीएम शिवराज ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता के जरिए ही राजनीति में आए हैं। वह इमरजेंसी के वक्त जेल भी जा चुके हैं, भारतीय जनता पार्टी को सत्ता में लाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी के कम समय में सबसे प्रिय नेता बन गए थे। शिवराज सिंह चौहान पहली बार विधायक 1990 में बुधनी से हुए उपचुनाव में जीतकर विधायक बने थे। 1989 में पहली बार विदिशा से सांसद बने। वे मध्य प्रदेश की विदिशा लोकसभा सीट से पांच बार सांसद रह चुके हैं। अब वह चौथी बार राज्य में सत्ता की कमान संभाले हुए हैं।
बताया जाता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ने के बाद शिवराज सिंह चौहान ने जीवन भर शादी नहीं करने का सोच लिया था। लेकिन छोटे भाई-बहनों की शादी होने के बाद परिवार वालों के दबाव में वह किसी तरह एक बार साधना सिंह से मिलने के लिए राजी हुए। शिवराज ने साधना सिंह को देखा, वे उन्हें अपना दिल दे बैठे। वह कई बार कह भी चुके हैं कि साधना की सादगी मुझे पसंद आई और मैंने उनसे शादी कर ली। बताया तो यह भी जाता है कि शिवराज उनसे छिप-छिप कर मिलने लगे। उन्होंने खुद बताया था कि उन्होंने चिट्ठी लिख कर साधना सिंह से अपने प्रेम का इजहार किया था।
शिवराज सिंह अपने देसी अंदाज के लिए जाने जाते हैं। वह खुद कहते हैं कि वह अपने गांव अपनी माटी को कभी नहीं भूल सकते हैं। होली हो या दिवाली वह अपनी परिवार के साथ इन त्यौहारों को एक दम देसी ठाठ में मनाते हैं। होली पर तो वह कई बार गांव में जाकर फाग गीत गा चुके हैं। शिवराज सिंह चौंथी तक की पढ़ाई अपने गांव में की हुई है। उसके बाद वह अपने चाचा के पास भोपाल आ गए। लेकिन उनका गांव के प्रति लगाव बहुत था जिस कारण मौका मिलने पर वह बार-बार गांव जाते थे। गांव शिवराज के लिए नेतागीरी की पहली पाठशाला था। शिवराज बचपन से ही गांव में नुक्कड़ सभाएं लगाया करते थे।