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'भगवान' के आगे सिस्टम ने टेके घुटने, तीन अस्पतालों में मां को लेकर भटकती रही बेटी, कलेक्टरी भी फेल
भोपाल, मध्य प्रदेश. 'भगवान' होना कोई आसान नहीं! डॉक्टरों को भगवान का दर्जा दिया जाता है, क्योंकि वे लोगों की जान बचाते हैं। लेकिन हर डॉक्टर भगवान नहीं होता और हर अस्पताल जान बचाने वाला मंदिर नहीं! इस बेटी की पीड़ा सुनकर कथित भगवानों के आगे घुटने टेक चुकी सरकार की शर्मनाक तस्वीर सामने आती है। यहां के कोलार स्थित सर्वधर्म कालोनी की रहने वालीं 43 साल की संतोष रजक इसी अराजक सिस्टम का शिकार हो गईं। उनकी बेटी प्रियंका और बेटा हर्ष बीमार मां को लेकर तीन अस्पतालों में भटकता रहा। एक ने एक दिन भर्ती करके मोटी रकम वसूल ली और अगले दिन कोविड (Corona infection) आईसीयू बेड नहीं होने पर सरकारी अस्पताल (government hospital) भेज दिया। वहां बेड न होने पर तीसरे प्राइवेट अस्पताल रवाना किया। यहां इलाज के नाम पर 5 दिनों के लिए 50000 रुपए जमा करा लिए। इसके बावजूद सिर्फ खानापूर्ति की। कलेक्टर के आदेश पर मरीज को फिर सरकारी अस्पताल में बेड मिला, लेकिन बचाया नहीं जा सका। आगे पढ़ें बेबस बेटी की कहानी...
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12 सितंबर की शाम करीब 6 बजे संतोष रजक को सांस में तकलीफ होने पर उनका बेटा हर्ष सिद्धांता अस्पताल ले गया। वहां हार्ट अटैक के लक्षण बताकर रात 10 बजे बसंल अस्पताल शिफ्ट कर दिया। यहां उनका कोरोना का सैंपल पॉजिटिव निकला। यहां कोविड आईसीयू में बेड नहीं होने पर उन्हें सरकारी जेपी अस्पताल रेफर कर दिया गया। इससे पहले एक रात का बिल 41 हजार रुपए जमा करा लिया गया। जेके अस्पताल में बेड खाली नहीं होने का कहकर भर्ती करने से मना कर दिया। इसके बाद प्रियंका और हर्ष मां को लेकर पीपुल्स हॉस्पिटल पहुंचे। यहां पांच दिन के 50 हजार रु. जमा करा गए। जब यहां भी मरीज का ठीक से इलाज नहीं हुआ, तो बेटी ने कलेक्टर को फोन लगाया। कलेक्टर के निर्देश पर मरीज को जेपी अस्पताल के आईसीयू में भर्ती किया गया। लेकिन बचाया नहीं जा सका। यही नहीं, महिला की मौत के बाद स्टाफ ने पीपीई किट देकर कहा कि इसे पहन लो और एक लाश को पहनाकर ले जाओ। अब सिविल सर्जन डॉ. आरके तिवारी तर्क दे रहे हैं कि मरीज के इलाज में कोई लापरवाही नहीं हुई। आगे पढ़ें ऐसी ही शर्मनाक घटनाएं...
पेंड्रा, छत्तीसगढ़. यह हैं गौरेला जनपद के ग्राम पडवनिया की रहने वालीं पुनिया बाई पत्नी श्रवण। प्रसव पीड़ा होने पर इन्हें जिला अस्पताल लाया गया था। लेकिन यहां स्टाफ ने गर्भ में ही बच्चे की मौत होने का बताकर बिलासपुर सिम्स (Chhattisgarh Institute of Medical Sciences) रेफर कर दिया। वहां कोरोना के बहाने उसे भर्ती करने से मना कर दिया गया। अपनी पत्नी की जान खतरे में देखकर पति घबरा गया और वो उसे एम्बुलेंस से गौरेला के एक प्राइवेट अस्पताल ले गया। वहां 20000 रुपए खर्च करने पड़े।
आगे पढ़ें...सारी रिसर्च एक तरफ... यह नर्स, उसका फ्रेंड और इनकी कोरोना वैक्सीन सबसे अलग, जानिए कैसे किया फ्रॉड
रायपुर, छत्तीसगढ़. यह मामला कोरोना वैक्सीन (COVID-19 vaccine) के बहाने एक परिवार को ठगने की कोशिश करने का है। सिविल लाइंस थाना क्षेत्र की एक महिला की रिपोर्ट कुछ समय पहले पॉजिटिव आई थी। वो होम आइसोलेशन में थी। इसी दौरान अंबेडकर अस्पताल की नर्स ने उसके परिजनों को कॉल किया कि उसकी टीम घर पर आकर इलाज कर सकती है। इसके बाद शुरू हुआ धोखाधड़ी का खेल। नर्स दीपा दास और उसका सहयोगी राकेश चंद्र सिंह महिला के घर पहुंचे। उन्होंने इलाज का खर्चा 3 हजार बताया। हालांकि वे महिला मरीज को वही दवाएं लाकर दे गए, जो स्वास्थ्य विभाग अन्य मरीजों को मुफ्त दे रहा है। नर्स दीपा ने महिला मरीज को दो इंजेक्शन लगाए। इन्हें नर्स ने कोरोना वैक्सीन बताया। जब महिला ठीक हो गई, तो राकेश उसके घर पहुंचकर 10000 रुपए मांगने लगा। वो इस बात पर अड़ गया कि जो इंजेक्शन लगाया गया था, वो महंगा था। मामला बिगड़ा, तो पुलिस बुला ली गई।
आगे पढ़ें-कफन हटाते ही खड़ा हो गया हंगामा, एक चूहे ने खोल दी सरकारी व्यवस्थाओं की सारी पोल
इंदौर, मध्य प्रदेश. यह शर्मनाक तस्वीर इंदौर के यूनिक अस्पताल की है। यहां अस्पताल के स्टाफ की लापरवाही से 87 वर्षीय नवीनचंद्र जैन की लाश को चूहे कुतर गए। कोरोना से इनकी मौत हुई थी। अस्पताल में मर्च्यूरी नहीं है। लिहाजा, लाश को बेसमेंट में रख दिया गया। रात को चूहे लाश की आंख और पैरों की उंगुलियां कुतर गए। मामला रविवार रात का है। सोमवार सुबह जब परिजन लाश लेने पहुंचे और कफन उठाया, तो हंगामा खड़ा हो गया। इस घटना का वीडियो वायरल होने के बाद प्रशासन ने मजिस्ट्रियल जांच के आदेश दिए हैं।
आगे पढ़ें...9 दिन पहले मर चुका था पिता, बेटे को लगा कि अस्पताल में उसका डॉक्टर अच्छे से ख्याल रख रहे हैं
इंदौर, मध्य प्रदेश. यहां के एमवाय अस्पताल (Indore MY Hospital) में 54 वर्षीय शख्स की लाश 9 दिन तक मर्च्यूरी में पड़ी रही। उसका बेटा यही समझता रहा कि अस्पताल में उसके पिता का बेहतर इलाज चल रहा है। बता दें कि बोर्ड कॉलोनी, पीथमपुर निवासी तानाजी पिता केशव को कोरोना पॉजिटिव होने पर 6 सितंबर को शाम 4.30 अस्पताल में भर्ती कराया गया था। 9 सितंबर को उनकी मौत हो गई। लेकिन कर्मचारियों ने शव को पॉलिथीन में लपेटकर मर्च्यूरी में रख दिया। 18 सितंबर को परिजनों को इसकी जानकारी दी गई। आगे पढ़ें...बेड रखे-रखे सड़ गई लाश...
यह मामला भी कुछ दिन पहले इंदौर के ही एमवाय अस्पताल में सामने आया था। यहां मर्च्युरी रूम में 20 दिन शव पड़ा-पड़ा सड़ गया, लेकिन प्रबंधन ने उसके अंतिम संस्कार की सुध नहीं ली। मामला सामने आने के बाद हड़कंप मचा..तब प्रबंधन जागा। आगे पढ़ें...पति की मौत का सदमा: उन्हें तीन दिन से खाना नहीं दिया और न ही कोई इलाज किया
इंदौर, मध्य प्रदेश. इंदौर के एमटीएच अस्पताल में कुलकर्णी का भट्टा निवासी 32 वर्षीय संदीप कामले की मौत के बाद उनकी पत्नी ने अस्पताल प्रबंधन पर लापरवाही का आरोप लगाया है। पत्नी ने कहा कि अस्पताल ने उनसे साढ़े 15 हजार रुपए के तीन इंजेक्शन मंगवाए, लेकिन उन्हें लगाया तक नहीं। मृतक के दोस्त राजेश ने मीडिया को बताया कि इस बारे में पूछने पर डॉक्टरों ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया।
आगे पढें...मृतक की पत्नी ने वायरल किया वीडियो...
जबलपुर, मध्य प्रदेश. यहां 10 दिन पहले एक शख्स की कोरोना से मौत हो गई थी। उसकी पत्नी ने एक वीडियो वायरल करके अस्पताल की लापरवाही उजागर की है। महिला ने पति की मौत के लिए डॉक्टरों को जिम्मेदार ठहराया है। वीडियो में रोते हुए पत्नी ने स्वास्थ्य सुविधाओं और सरकार के दावों पर कई सवाल खड़े कर दिए। कोरोना के कारण अपनी जान गंवाने वाले आशीष तिवारी की पत्नी ने वीडियो में कहा कि वो पति की मौत के 10 दिन बाद हिम्मत जुटाकर अपनी बात कह रही है। नेहा तिवारी ने बताया कि उनके पति को नॉर्मल फ्लू था। लेकिन समय पर उन्हें ऑक्सीजन नहीं मिली। नेहा ने कहा कि वो अब डॉक्टरों पर केस करना चाहती हैं।
आगे पढ़ें..पापा दरवाजा पीट रहे थे, लेकिन कोई डॉक्टर उन्हें देखने नहीं पहुंचा और वो तड़प-तड़पकर मर गए
रायपुर, छत्तीसगढ़. अपने पिता की मौत के बाद एक शख्स ने वीडियो वायरल करके एम्स के स्टाफ पर गंभीर आरोप लगाए। अजय जॉन के पिता को तबीयत बिगड़ने पर 9 सितंबर को एम्स में भर्ती कराया गया था। जांच के बाद उन्हें आइसोलेशन (isolation) वार्ड में रखा गया था। बेटे ने कहा कि उनका कमरा बाहर से बंद रखा गया था। जब उनकी तबीयत फिर बिगड़ी, तो वो दरवाजा पीटते रहे, लेकिन किसी ने उनकी सुध नहीं ली। बेटे ने कहा कि उनके पिता ने सोमवार तड़के 4 बजे कॉल किया था। उन्होंने बताया था कि यहां मरीजों को देखने वाला कोई नहीं है। अजय के अनुसार, यह सुनकर वो खुद एम्स पहुंचे। इसके बाद नर्सिंग स्टाफ उनके पिता को देखने पहुंचा। तब उनकी हार्ट रेट बढ़ी हुई थी। ऑक्सीजन लेवल भी बहुत कम था। इसके बावजूद उन्हें आईसीयू में भर्ती नहीं किया गया।