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सिस्टम ने ली पिता की जान, गैरों ने किया अंतिम संस्कार..बेटी ने कहा-जो हम पर गुजरी वो किसी और पर न गुजरे
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दरअसल, यह दुखद घटना राजधानी भोपाल के नोकिया परिवार के साथ घटी। जहां घर के मुखिया वीरेंद्र नेकिया सरकारी अव्यवस्था के चलते अपनी जिंदगी हार गया। यह फैमिली दिल्ली के मयूर विहार रहती थी, जहां कुछ दिन पहले वीरेंद्र को बुखार आया था। जब घरवाले उसको एक सरकारी अस्पताल गए। जहां डॉक्टरों के लापरवाह रवैये अपनाया। उसको चार फीट दूर से डॉक्टरों ने देखा और सामान्य बुखार की दवाई देकर वापस भेज दिया। इतना ही नहीं पीड़ित परिवार ने कई अस्पतालों के चक्कर लगाए, लेकिन कहीं भी उसका ठीक से इलाज नहीं किया। आखिर में दुखी होकर पीड़ित अपने बेटे के कहने पर इलाज कराने के लिए शनिवार को भोपाल आ गया। अगले ही दिन रविवार को उसकी मौत हो गई।
इस घटना के बाद परिवार में स्वस्थ बची बेटी निहारिका दिल्ली के घर में अकेली रह रही है। अपने पिता को खो चुकी यह बेटी हर वक्त डरी सहमी से रहती है, उसको पड़ोस के लोग खाना पहुंचा रहे हैं। उसका कहना है कि जो मेरे परिवार के साथ हुआ, भगवान करे वैसा किसी ओर के साथ ना हो। मैं पापा के लिए कई अस्पताल लेकर गई, लेकिन यहां के डॉक्टरों ने उनका सही से इलाज नहीं किया। जिसके कारण उनकी मौत हो गई। यदि वक्त पर जांच हो जाती तो मेरे पापा आज जिंदा होते।
बता दें कि मृतक की पत्नी दिल्ली में ही है। जैसे ही उसने पति की मौत की खबर सुनी तो उसको अस्थमा अटैक आ गया। जहां उसकी 15 साल की बेटी ने मां को अस्पताल में भर्ती कराया। वहीं वीरेंद्र का बेटा पहले से भोपाल के चिरायु अस्पताल में क्वारेंटाइन है। ऐसे हालत में हमीदिया अस्पताल ने अपने स्टाफ से वीरेंद्र का अंतिम संस्कार कराया।
वहीं हमीदिया अस्पताल के अधीक्षक डॉ एके श्रीवास्तव का कहा मृतक दिल्ली से बेहद गंभीर हालत में भोपाल आए हुआ थे। उनकी ऑक्सीजन थेरेपी मरीज पर काम नहीं कर रही थी। हमने उनको बचाने की पूरी कोशिश की, लेकिन वह नहीं बच पाए। अगर पहले ही समय रहते इलाल मिल जाता तो शायद यह नहीं होता।
जब मध्य प्रदेश शासन ने दिल्ली प्रशासन को वीरेंद्र की कोरोना से मौत की जानकारी दी तो आनन-फानन में बेटी और पत्नी के सैंपल लिए गए। वहीं राज्य के गृह, लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने वीरेंद्र की मृत्यु पर दुख जताया। उन्होंने कहा कि दिल्ली-मुंबई की सरकार सिर्फ बातें कर रही हैं। यदि वे काम कर रही होती तो इस प्रकार वीरेंद्र को 5 दिन भटकना नहीं पड़ता और आज वह जिंदा होता।