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सिंधिया के चहेते नेता: एक महाराजा का लेफ्ट तो दूसरा राइट हैंड..जिन्हें पार्षद से बना दिया मंत्री तक
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सिंधिया के बेहद करीबी हैं दोनों नेता
बता दें कि दोनों नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए थे। इस कारण कांग्रेस की कमलनाथ सरकार गिर गई थी। इतना ही नहीं जब कमलनाथ सरकार गिरने के बाद शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। इस दौरान सिंधिया ने अपने इन दो चहेते विधायक तुलसी सिलावट और गोविंद सिंह राजपूत को मंत्री पद की शपथ दिलाई थी।
सिंधिया के स्वागत में जुट जाते हैं दोनों नेता
राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया का जब कभी भी दिल्ली से भोपाल दौरा होता है तो उनके दोनों चहेते नेतातुलसी सिलावट और गोविंद सिंह राजपूत उनके स्वागत के लिए आतुर दिखाई देते हैं। दोनों मंत्री अपने विजी समय से टाइम निकालकर भी महाराज से मिलने के लिए दिल्ली तक पहुंच जाते हैं।
पार्षद से विधायक और फिर बने मंत्री बने सिलावट
बता दें कि इंदौर की सावेर सीट से विधायक तुलसी सिलावट ज्योतिरादित्य सिंधिया के सबसे करीब और भरोसेमंद विधायक हैं। उन्होंने महाराजा के लिए कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा देकर ही बीजेपी ज्वॉइन की है। सिलावट छात्र जीवन से ही राजनीति में आए हैं। वह इंदौर के शासकीय आर्ट एवं कॉमर्स कॉलेज और देवी अहिल्याबाई विश्वविद्यालय के छात्रसंघ अध्यक्ष भी रह चुके हैं। इसके बाद 1982 में इंदौर नगर निगम में पार्षद बने। उन्होंने पार्षद बनने के तीन साल बाद 1985 में पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीत भी हासिल की। वह कई बार कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा का चुनाव जीत चुके हैं। वह इससे पहले कमलनाथ सरकार में भी मंत्री रह चुके हैं।
8 साल पहले राजपूत ने जीता था विधायक का चुनाव
बता दें कि गोविंद सिंह राजपूत 10 मार्च 2020 को विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल हुए थे। जहां राज्य में शिवराज सरकार बनने के बाद उन्हें खाद्य और सहकारिता मंत्री बनाया गया। राजपूत कांग्रेस में प्रदेश युवक कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर रह चुके हैं। वह साल 2002 से मार्च 2020 तक प्रदेश कांग्रेस के महासचिव और उपाध्यक्ष के पद पर रहे। करीब 18 साल पहले 2003 में राजपूत ने पहली बार विधानसभा का चुनाव जीता था।
सिलावट सिंधिया के लिए छोड़ सकते हैं राजनीति
मंत्री तुलसीराम सिलावट कई बार इंटरव्यू में कह चुके हैं हैं कि वह सिंधिया जी बदौलत ही आज इस मुकाम पर हैं। वह उनके इतने बड़े समर्थक हैं कि उन्होंने कह दिया है किया है वो महाराजा के लिए राजनीति से भी संन्यास ले सकते हैं।