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दिव्यांग लड़की को मिली दर-दर की ठोकर, ट्रेन से धक्के मारकर निकाला, चिढ़ाया भी; आज है मिसाल
मुंबई. दिव्यांग लोगों की जिंदगी आसान नहीं होती है। अभावों में जी रहे दिव्यांगों को बहुत बार समाज में ताने और टॉर्चर का सामना करना पड़ता है। ऐसी ही मुंबई की एक लड़की को दिव्यांग होने के नाते भयानक प्रताड़नाओं को झेलना पड़ा लेकिन वह टूटी नहीं और मजबूत होकरी उभरी और आज एक मिसाल बन गई है।
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हम बात कर रहे हैं मुंबई की रहने वाली नीति पुथुरन की। नीति ने अपनी दर्दनाक कहानी सोशल मीडिया पर शेयर की है। उनके जीवन की समस्याओं और हादसों को सुनकर किसी की भी रूह कांप जाए। नीति बताती हैं कि, जब मैं पैदा हुई थी तो मेरे मां बाप ने मुझे बताया था कि मुझे सेरेब्रल पैल्सी नामक कोई सिड्रोम है जिसमें इंसान के कुछ अंग कभी बढ़ते नहीं हैं। इसलिए मेरे बाएं हाथ और दाएं पैर की ग्रोथ एक समय बाद रूक गई। हालांकि डॉक्टर्स ने एक कृत्रिम पैर तो मेरे शरीर में फिट कर दिया लेकिन बायां हाथ कोहनी से आगे बढ़ ही नहीं पाया और ऐसी कोई सर्जरी नहीं थी जो मेरा हाथ भी पूरा कर पाती।
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मैं बढ़ी हुई तो मम्मी-पापा चाहते थे मैं नॉर्मल बच्चों तकी तरह जियूं इसलिए उन्होंने रेगुलर स्कूल में मेरा एडमिशन करवाया। स्कूल में मुझे कभी हंसी का पात्र नहीं बनाया गया, टीचर मुझे सपोर्ट करते थे लेकिन दुनिया का असली चेहरा मेरे सामने कॉलेज जाने के बाद आया। कॉलेज में मुझे तानों को सामना करना पड़ा, लोग मुझे घूरते और हंसते थे। मुझसे दूर भाग जाते थे, मुझे लगा दुनिया में हम जैसे लोग अनवांटेड हैं। एक खौफनाक घटना मुझे याद आती है जिसमें मेरी जान भी जा सकती थी।
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मैं लोकल ट्रेन से ट्रैवल कर रही थी तो एक महिला ने मुझे कोच से बाहर धक्का दे दिया, वह मुझपर चिल्लाई कि विक्लांग कोच में जाओ। भगवान की कृपा है कि ट्रेन प्लैटफॉर्म पर खड़ी थी तो मैं नीचे गिरी लेकिन चोट नहीं आई। इस घटना ने मुझे अंदर तक हिला दिया था फिर एक अनजान शख्स मेरे पास से ये कहकर गुजर गया कि मुझे कोई अभिशाप लगा है, मैं शापित हूं। अपने लिए ऐसा सुनकर मैं बहुत दुखी हुई, कई दिन लग गए इससे उबरने में।
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पर मेरे मां-बाप ने हमेशा मुझे दुनिया की बातों को भूल जिंदगी में आगे बढ़ने की सलाह दी। उनके समझाने से मुझमें हिम्मत भर जाती और मैं नॉर्मल जिंदगी जीने लगती। इसलिए मैंने एक एनजीओ ज्वाइन कर लिया जो मेरे जैसे लोगों की नौकरी दिलवाने और दूसरी चीजों में मदद करता है। इसमें मैंने खुद को वॉलेंटियर के तौर पर जोड़ा, यहां मुझे अच्छा लगता है, मैं अकेली नहीं हूं और भी लोग हैं और अब मैं दिव्यांग लोगों की मदद करती हूं। मेरी शादी एक बेगद अच्छे इंसान से हुई है।
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अब लोग मेरे पास आते हैं गले लगाते हैं कि मैं समाज में कितना अच्छा काम कर रही हूं। मुझे हद से ज्यादा प्यार करने वाला जीवनसाथी मिला है तो अब नफरत की कहीं जगह नहीं है, दुनिया बदल जाती है जब आप खुद को बदलने निकलते हैं।
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