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अटल टनल के साथ देखिए भारत के इन अनूठे पुल की तस्वीरें, जहां है इंजीनियरिंग का चमत्कार
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1. मुंबई का बांद्रा-वर्ली सी लिंक: यह भारत का तीसरा सबसे लंबा पुल है, जो महाराष्ट्र के मुंबई के दो क्षेत्र बांद्रा और वर्ली को आपस में जोड़ता है। इस पुल की लंबाई 5.57 किलोमीटर है और चौड़ाई करीब 66 फीट है। शाम में सूर्यास्त के समय यहां का नजारा बेहद खूबसूरत होता है। यह जगह मुंबई शहर के सबसे आकर्षक स्थलों में से एक है। 2009 में इसे जनता के लिए खोला गया था। इस पुल को बनाने में करीब 16 अरब रुपए खर्च हुए थे।
2. रामेश्वरम में पंबन ब्रिज: यह पुल करीब 100 साल पुराना है। इसकी लंबाई 2 किमी है। इसको 1914 में खोला गया था। यहां इंजीनियरिंग कारनामे के चलते न केवल सीस्केप और आसपास के द्वीपों के शानदार दृश्य प्रस्तुत करता है, बल्कि समय-समय पर जहाजों, कार्गो वाहक, मछली पकड़ने के जहाजों और तेल टैंकरों को ले जाने के लिए खुलता है। ब्रिज देश का पहला समुद्री पुल था।
3. सोनितपुर में कोलिया भमोरा ब्रिज: इस पुल का नाम प्रसिद्ध अहोम जनरल कोलिया भोमोरा फुक्कन के नाम पर रखा गया है। ब्रह्मपुत्र नदी पर बने इस पुल को भी भारत की टूरिस्ट अट्रैक्शन में से एक माना जाता है। जिसकी लंबाई करीब 3 किलोमीटर है। ये पुल उत्तरी तट पर सोनितपुर को दक्षिण तट पर नागांव जिले को जोड़ता है। रात को यहां का नजारा बेहद खूबसूरत होता है।
5. कोलकाता हावड़ा ब्रिज: बंगाल की खाड़ी के पानी पर बना कोलकाता का यह ब्रिज सबसे पुराने पुलों में से एक है। यह पुल हावडा और कोलकाता को जोड़ता है इसलिए इसका नाम हावड़ा ब्रिज है। इसका दूसरा नाम रवीन्द्र सेतु भी है। कोलकाता का एक ऐतिहासिक पुल को बनाने में 2590 टन लोहा लगा है। जो 1500 फुट लंबा और 71 फुट चौडा है। इस पुल पर हर दिन 100,000 से अधिक वाहन और 150,000 से ज्यादा पैदल लोग आराम से गुजर सकते हैं।
4. राजमुंदरी का गोदावरी ब्रिज: यह ब्रिज एशिया का तीसरा सबसे लंबा रोड़ व रेल ब्रिज है। गोदावरी नदी पर बना यह ब्रिज 4.2 कि.मी. लंबा है। दक्षिण भारत की सबसे बड़ी नदी गोदावरी पर बने तीन पुलों में से एक गोदावरी ब्रिज है।
6. पीर पंजाल रेलवे टनल : जम्मू कश्मीर के 'पीर पंजाल पर्वत श्रृंखला' को काटकर 11 किलोमीटर लंबी 'पीर पंजाल रेलवे टनल' बनाई गई है। अटल टनल से पहले यह एशिया में दूसरा सबसे लंबा टनल है।
अटल टनलः रोहतांग में अटल टनल की लंबाई 9.02 किमी है। इसे बनाने में 10 साल का वक्त लगा। मनाली और लेह के बीच की दूरी 46 किलोमीटर कम हो जाएगी और चार घंटे की बचत होगी। इसका नाम पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर रखा गया है।