- Home
- National News
- बचपन में भूख ने तड़पाया...इसलिए अब रोजाना 150 लोगों को भरपेट खाना खिलाती हैं 'पराठे वाली आंटी'
बचपन में भूख ने तड़पाया...इसलिए अब रोजाना 150 लोगों को भरपेट खाना खिलाती हैं 'पराठे वाली आंटी'
| Published : Feb 07 2020, 03:39 PM IST / Updated: Feb 07 2020, 03:50 PM IST
बचपन में भूख ने तड़पाया...इसलिए अब रोजाना 150 लोगों को भरपेट खाना खिलाती हैं 'पराठे वाली आंटी'
Share this Photo Gallery
- FB
- TW
- Linkdin
110
65 साल की दलबीर कौर दिल्ली नगर निगम के बार-बार उनके स्टॉल को हटा देने पर भी एक बड़ी सी मुस्कुरहाट लेकर वापस ठेला लगा लेती हैं। आंटी यहां करमपुरा इलाके में मिलन सिनेमा रोड पर एक ढाबा चलाती हैं जो 'परांठे वाली आंटी' के नाम से प्रसिद्ध। कौर सुबह 11 बजे छोटी से आधी रात तक लोगों को अपने हाथ के लाजवाब स्वादिष्ट परांठे खिलाती हैं। जब जब दिल्ली नगर निगम ने उनका ढेला हटाया है वो उतनी ही बेशर्मी से वापस उसे लगाकार परांठे बेचने लगती हैं। वे कहती हैं कि, मैं क्या करूं? अगर मैं काम नहीं करूंगी तो मैं बीमार पड़ जाऊंगी। ” (दलबीर कौर)
210
सुनकर आपको हैरानी होगी लेकिन लेकिन एक ठेला चलाने के पीछे उनका ये जुनून ही है। साथ ही वे अपने रेगुलर कस्टमर के लिए खाना बनाने दौड़ पड़ती हैं। परांठे वाली आंटी को लोग इसलिए पसंद करते हैं क्योंकि सड़क के किनारे ढेला लगाकार भी वो पूरी साफ-सफाई के साथ खाना बनाती हैं। हाईजीन का पूरा ख्याल रखने के कारण उनके कस्टमर उनसे काफी इप्रेस रहते हैं।
310
दलबीर का जन्म गुरदासपुर के अठवाल गांव में हुआ था। उनके पिता एक राजमिस्त्री थे। उनके कंधे पर 11 लोगों के पेट भरने की जिम्मेदारी थी। परिवार में उनकी पत्नी, माता-पिता और 7 बच्चे थे। गरीबी के कारण परिवार को दो वक्त की रोटी मिलना भी मुश्किल होता था। ऐसे में बच्चों को स्कूल भेजने का कोई सवाल ही नहीं था। दलबीर भी कभी स्कूल नहीं गई थीं। ऐसे में अपने पिता को सपोर्ट करने के लिए वे बचपन से ही घरेलू कामों में लग गईं जैसे जानवरों को पालना, खेतों में काम। दलबीर बताती हैं कि, “हमारे पास 3-4 भैंसें थीं। मैं उन्हें चराने ले जाती और घर में चार पैसे आएं इसके लिए उनका दूध बेचती थी। ” (प्रतीकात्मक तस्वीर)
410
वे बड़ी हुईं तो उनकी शादी कर दी गई जिसके बाद वे 1974 में दिल्ली चली आईं। उनके पति एक बढ़ई थे और दोनों एक संयुक्त परिवार का हिस्सा थे। यहां भी दलबीर ने पति और ससुराल में मदद करने के लिए कपड़े सिलने जैसे काम करना शुरू कर दिए। वक्त गुजर गया और दलबीर ने अपने बच्चों की भी शादी कर दी। जैसे-तैसे जिंदगी गुजर रही थी। दलबीर चाहती थीं वो घर बैठ आराम फरमा सकती थीं लेकिन नहीं। वे एकदम हंसमुख महिला हैं। अपने मजाकिया अंदाज में वो कहती हैं कि, इस उम्र में या तो लोग बिस्तर पकड़ लेते हैं या बिस्तर उन्हें पकड़ लेता है। ऐसा कहते हुए वे जोर का ठहाका लगाती हैं। (प्रतीकात्मक तस्वीर)
510
दलबीर बताती हैं कि “मैं साल में एक बार पंजाब में अपने मां-बाप से मिलने जरूर जाती हूं। एक दिन ट्रेन या बस से सफर करते हुए मैंने देखा कि सफर के दौरान लोगों को अच्छा खाना मिलना मुश्किल होता है। रेस्टोरेंट और ढाबे आदि पर भी खाना महंगा होता है। ऐसे में मैंने सोचा कि मुझे खाना बनाना पसंद है तो मुझे ऐसे लोगों की मदद करनी चाहिए। दिल्ली में बहुत सारे छात्र हैं जो घर से दूर रहते हैं। मैंने सोचा कि किसी को उनके लिए भी खाना बनाना चाहिए। ”
610
इसी सोच के साथ दलबीर परांठे वाली आंटी बन गई और अपना खुद का ठेला शुरू कर दिया। हालांकि उनकी बेटी का तलाक होना भी एक वजह थी जो वो दोबारा काम करने लगी थीं। बेटी घर वापस लौट आई तो परिवार का पेट भरने को आंटी ने रोजगार शुरू किया। वहीं दो साल पहले दलबीर के पति को दौरा पड़ा और वह लकवाग्रस्त हो गया। उनके लिए ये एक बड़ा झटका था ऐसे में अब वो अकेली पूरे परिवार को पाल रही हैं। वो बताती हैं कि, “मेरी बेटी और नातिन की पूरी ज़िम्मेदारी मुझ पर आ पड़ी। मेरे पास बहुत कुछ नहीं था, लेकिन यह भी जानता था कि मैं किसी पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। इसलिए, मैंने अपने जुनून कुकिंग के रास्ते पैसा कमाने का फैसला किया।
710
दलबीर ने 2016 में, 'पंजाबी पराठा कॉर्नर' नाम से मिलन सिनेमा रोड के कोने पर एक ढाबा खोला था। हालांकि, एमसीडी द्वारा साइनबोर्ड को हटा दिया गया और दलबीर को उस जगह को छोड़ने के लिए कहा गया। उन्होंने फिर एक किराए की दुकान ली और वहां अपना ढाबा शुरू किया। लेकिन दुकान के मालिक ने दुकान वापस ले ली। दलबीर ने हार नहीं मानी और खुले आसमान के नीचे सड़क किनारे ढाबा लगा दिया। बिना नाम के बोर्ड वाले इस ढाबे से ही वो दिनभर में करीब 150 भूखे लोगों को रोजाना खाना खिलाती हैं। (प्रतीकात्मक तस्वीर)
810
वे बताती हैं कि, “मैं खुद सब्जियां काटती हूं और इस बात का खासतौर पर ध्यान रखती हूं कि उन्हें हाइजीनिक (साफ-सफाई) तरीके से पकाया जाए। यह जगह बहुत फैंसी नहीं हो सकती है, लेकिन हम ग्राहकों को ताजा और पौष्टिक भोजन परोसने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। ”दलबीर ने 70 रुपये में एक प्लेट खाना देती हैं जिसमें 2 सब्ज़ियां, दाल, पापड़, अचार, रायता और 4 पराठे होते हैं। हालांकि 40 रुपये का उनका आलू परांठा काफी सुप्रसिद्ध है। (प्रतीकात्मक तस्वीर)
910
परांठे वाली आंटी सिर्फ खाना ही नहीं खिलाती बल्कि उनका दिल भी बहुत बड़ा है। वे महंगाई के जमाने में अपने ग्राहकों की जेब पर वजन नहीं डालना चाहतीं। दलबीर बताती हैं कि “वो मात्र 30 रुपये में परांठा बेचती थीं लेकिन ग्राहकों के कहने पर ही उन्होंने पैसे बढ़ाए हैं मेरे ग्राहकों ने जोर देकर कहा कि मैं 40 कर दूं। मुझे पता है कि सब कुछ महंगा हो गया है इसलिए मैं ज्यादा दाम नहीं बढ़ाती हूं। मैं उन्हें और ज्यादा परेशान क्यों करूं? मैं जो पैसा कमाता हूं वह मेरे परिवार के लिए काफी है और मैं एक दिन में तीन बार खाना खाती हूं और थोड़ा बचत करती हूं। मुझे और क्या चाहिए? ”
1010
दलबीर के पराठों की एक खासयित ये है कि वे तवे पर नहीं कढ़ाही में बने होते हैं। सुनने में ये अजीब है लेकिन मजबूरी में किया गया उनका ये प्रयोग सफल रहा है। बे बताती हैं कि, “मुझे वह दिन बहुत अच्छी तरह से याद है, घर पर कई भूखे मेहमान आए थे, और मैंने सभी के लिए पराठे बनाने की सोची, लेकिन केवल एक ही तवा था। इसलिए, मैंने उन्हें जल्दी और ज्यादा पराठें के लिए अपनी कड़ाही का उपयोग किया, और ये तरकीब काम कर गई। मैंने देखा कि कढ़ाही में पराठे बनाने से धुआं कम होता है और पराठा भी ठीक तरह पकता है। इसलिए, मुझे ढाबे के मेनू में कढाई परांठे शामिल करने थे! यही कारण है कि यहां परांठे वाली आंटी के नाम से जाना जाता है। वाकई दिल्ली की ये परांठे वाली अपने जज्बे और सेवा भाव के कारण दूसरों के लिए एक प्रेरणा हैं। (प्रतीकात्मक तस्वीर)