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Dexamethasone : भारत सरकार ने कोरोना की इस दवा को दी मंजूरी, अब 30 पैसे में होगा वायरस का खात्मा
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कोरोना वायरस के लिए इस दवा को काफी अहम माना जा रहा है। भारत में इस दवा का भंडार है। यहां करीब 60 सालों से इसका इस्तेमाल हो रहा है। भारत से इस दवा का निर्यात 107 देशों में किया जाता है। दवा के निर्यात से भारत को करीब 116.78 करोड़ की कमाई होती है।
यह दवा भारत में 20 कंपनियां बनाती हैं। यह यहां से 107 देशों में निर्यात की जाती है। इस दवा की 10 गोलियां सिर्फ 3 रुपए में आती हैं। हाल ही में ब्रिटेन में इस दवा के इस्तेमाल के काफी अच्छे नतीजे देखने को मिले हैं।
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने ब्रिटेन में 2104 कोरोना मरीजों पर दवा का ट्रायल किया था। ये उन मरीजों को दी गई जो वेंटिलेटर पर थे। इस दवा से मरीजों की मौत एक तिहाई तक कम हो गई।
कैसे काम करती है दवा?
ऑक्सफोर्ड की रिसर्च में यह बात सामने आई है कि कोरोना मरीजों के अंदर साइटोकाइन स्टॉर्म की स्थिति बनती है। इससे शरीर को बचाने वाला इम्यून सिस्टम भी शरीर के खिलाफ काम करने लगता है। इससे फेफड़ों को नुकसान पहुंचता है। यह दवा साइटोकाइन स्टॉर्म को रोकने की कोशिश करती है। डैमेज कोशिकाओं से शरीर में नुकसान पहुंचाने वाले तत्वों को कम कर फेफड़ों की सूजन कम कर देती है।
इस दवा का इस्तेमाल डॉक्टर की देखरेख में एलर्जी, दमा, दांत और आंखों की सूजन, त्वचा संबंधी बीमारियों के लिए किया जाता है।
डेक्सामेथासोन 1957 में बनाई गई थी। लेकिन इसे 1961 में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली। इस दवा से सूजन, जलन, खुजली, एलर्जी, लाल धब्बे खत्म हो जाते हैं।
भारत में इस दवा का निर्माण जाइडस कैडिला, वॉकहॉर्ट, कैडिला फार्मास्यूटिकल्स, जीएलएस फार्मा समेत 20 कंपनियां करती हैं। जायडस कैडिला हर साल सिर्फ इस दवा से 100 करोड़ रुपए का टर्नओवर करती है।
अच्छी बात ये है कि ये दवा बेहद सस्ती है। इसकी दस गोलियां मात्र 3 रुपये में आती हैं। इस दवा से 10 दिन इलाज का खर्चा 477 रुपए यानि सिर्फ 48 रुपए प्रतिदिन आता है।
डेक्सामेथासोन को WHO ने भी मान्यता दी है। यह दवा भारत से 107 देशों में भेजी जाती है।
अमेरिका, नाइजीरिया, कनाडा, रूस और युगांडा डेक्सामेथासोन के सबसे बड़े खरीददार हैं। ये भारत के कुल निर्यात का 64.54% हिस्सा खरीदते हैं।
इस दवा का असर कोरोना के हल्के लक्षणों वाले मरीजों में नहीं दिखा। हालांकि, डेक्सामेथासोन के कारण मरीजों में लक्षण 15 दिन की जगह 11 दिन में दिखना कम हुए।