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भारत की पहली महिला डॉक्टर थीं कादंबिनी गांगुली, कलकत्ता मेडिकल कॉलेज में लड़कियों का एडमिशन करवाया शुरू

नेशनल डेस्क। भारत में ऐसी कई महिलाएं हुईं, जिन्होंने समाज-सुधार, राष्ट्रीय आंदोलन और शिक्षा के क्षेत्र में ऐसे काम किए कि उनका नाम इतिहास में दर्ज हो चुका है। ऐसी ही महिलाओं में कांदबिनी गांगुली (Kadambini Ganguli) का नाम आता है, जो भारत की पहली महिला चिकित्सक थीं और जिनकी कोशिशों से कलकत्ता मेडिकल कॉलेज (Calcutta Medical Collgege) में महिलाओं का एडमिशन शुरू हुआ। कादंबिनी गांगुली को शिक्षा हासिल करने के लिए काफी संघर्ष के दौर से गुजरना पड़ा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उस जमाने में जब लड़कियों के घर से निकलने पर तक पाबंदी थी, कांदबिनी गांगुली ने देश में कॉलेज की शिक्षा पूरी करने के बाद विदेश से मेडिकल साइंस में डिग्री ली। इसके अलावा राष्ट्रीय आंदोलन में उनकी खास भूमिका रही। आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (International Women's Day 2021) हम आपको बताने जा रहे हैं उनके जीवन के बारे में कुछ खास बातें। (फाइल फोटो)     

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Asianet News Hindi
Published : Mar 08 2021, 04:08 PM IST| Updated : Mar 08 2021, 04:10 PM IST
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भारत की पहली महिला ग्रैजुएट और पहली महिला चिकित्सक कादंबिनी गांगुली को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में सबसे पहले भाषण देने वाली महिला होने का गौरव भी हासिल है। कादंबिनी गांगुली दक्षिण एशिया की ऐसी पहली महिला थीं, जिन्होंने यूरोपियन मेडिसिन में प्रशिक्षण हासिल किया। कादंबिनी गांगुली का जन्म 18 जुलाई, 1861 को हुआ था। उनके पिता का नाम बृजकिशोर बसु था। वे उदार विचारों के व्यक्ति थे। उन्होंने अपनी बेटी की शिक्षा पर पूरा ध्यान दिया। यही वजह थी कि कादंबिनी ने कई क्षेत्रों में पहली भारतीय महिला होने का गौरव हासिल किया। (फाइल फोटो)
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कादंबिनी गांगुली ने साल 1882 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से बी.ए. की परीक्षा पास की। यहीं से उन्होंने वर्ष 1886 में मेडिकल साइंस की डिग्री हासिल की और देश की पहली महिला डॉक्टर बन गईं। इसके बाद कादंबिनी गांगुली आगे की पढ़ाई के लिए विदेश चली गईं। ग्लासगो और एडिनबर्ग विश्वविद्यालय से मेडिकल साइंस में ऊंची डिग्रियां हासिल करने के बाद कादंबिनी गांगुली भारत लौट आईं। (फाइल फोटो)
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कादंबिनी गांगुली 19वीं सदी में ही भारत की पहली महिला डॉक्टर बन गई थीं। उन्होंने चिकित्सा के पेशे के अलावा कोयला खदानों में काम करने वाली महिलाओं के लिए भी काफी काम किया। कोयला खदानों में काम करने वाली महिलाओं की बदहाल स्थिति देखकर उन्‍हें काफी धक्‍का लगा। उन्‍होंने इन महिलाओं को आगे बढ़ाने के लिए बहुत काम किया। (फाइल फोटो)
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कादंबिनी गांगुली ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साल 1889 के मद्रास अधिवेशन में भाग लिया। कांग्रेस के इतिहास में वे किसी अधिवेशन में भाषण देने वाली पहली महिला थीं। साल 1906 के कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन के मौके पर आयोजित महिला सम्मेलन की अध्यक्षता भी कादंबिनी गांगुली ने ही की थी। उस समय के विख्यात अमेरिकी इतिहासकार डेविड ने लिखा है कि कादंबिनी गांगुली अपने समय की सबसे स्वतंत्र विचारों वाली महिला थीं। (फाइल फोटो)
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कादंबिनी गांगुली का मानना था कि रिश्ते आपसी प्रेम, संवेदनशीलता और समझ-बूझ के आधार पर बनते हैं। उस वक्त के लिए यह सामान्य बात नहीं थी। कांदबिनी गांगुली के संघर्ष में उनकी मदद ब्रह्म समाज के द्वारकानाथ गांगुली ने की। द्वारकानाथ गांगुली कादंबिनी गांगुली से 17 साल बड़े थे। वे स्त्री मुक्ति के बहुत बड़े समर्थक थे। उन्होंने कादंबिनी गांगुली और चंद्रमुखी का कलकत्ता यूनिवर्सिटी और उसके पहले बेथ्यून कॉलेज में नामांकन करवाने में बहुत मदद की। आगे चल कर कादंबिनी गांगुली ने द्वारकानाथ गांगुली से शादी कर ली, जो एक विधुर थे। उनकी शादी 1883 में हुई। उस समय द्वारकानाथ की उम्र 39 वर्ष थी। हिंदू समाज के अलावा ब्रह्म समाज के कुछ लोगों को भी इस विवाह पर आपत्ति थी, लेकिन दोनों ने इसकी कोई परवाह नहीं की। (फाइल फोटो)
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कलकत्ता मेडिकल कॉलेज में एडमिशन पाने के लिए कादंबिनी गांगुली को काफी संघर्ष करना पड़ा। कॉलेज प्रशासन महिलाओं को मेडिकल की शिक्षा देने के लिए तैयार नहीं था। लेकिन कादंबिनी गांगुली की कोशिशों के आगे उन्हें हार माननी पड़ी। कादंबिनी गांगुली ने मेडिकल की पहली छात्रा के रूप में पढ़ाई शुरू की। उन्होंने साल 1886 में अपनी मेडिकल की पढ़ाई पूरी की। ऐसा करने वाली भारत की पहली 2 महिला चिकित्सकों में से वे एक थीं। इसके बाद उन्होंने दूसरी लड़कियों के मेडिकल कॉलेज में एडमिशन के लिए भी संघर्ष किया। उनकी कोशिशों का ही नतीजा था कि कलकत्ता मेडिकल कॉलेज के दरवाजे लड़कियों के लिए खुल गए। (फाइल फोटो)
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कादंबिनी गांगुली 8 बच्चों की मां बनीं। सबकी देखभाल करते हुए और अपना चिकित्सा का काम करते हुए कादंबिनी गांगुली ने सामाजिक जिम्मेदारियों से भी कभी मुंह नहीं मोड़ा। उन्होंने घर और अपने काम के बीच संतुलन बनाया और सारी जिम्मेदारी भी निभाई। कादंबिनी गांगुली के प्रयासों से बेथ्यून कॉलेज में पहले फाइन आर्ट्स प्रोग्राम की शुरुआत की गई और फिर साल 1883 में स्नातक कार्यक्रम की। बता दें कि शुरुआती कक्षाओं में सिर्फ 2 ही छात्राएं होतीं थीं। कादंबिनी गांगुली और चंद्रमुखी बासु। बाद में यही दो लड़कियां एक साथ भारत की सबसे पहली ग्रैजुएट होने वाली महिलाएं बनीं। कादंबिनी गांगुली का निधन 63 वर्ष की उम्र में 3 अक्‍टूबर, 1923 को कलकत्ता में हुआ। (फाइल फोटो)

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