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दुश्मन बरसा रहे थे गोलियां... खून से लथपथ इस जवान ने रेंगते हुए उड़ा दिए थे 4 पाकिस्तानी बंकर
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कैप्टन मनोज कुमार पांडे का जन्म 25 जून 1975 में उत्तर प्रदेश के सीतापुर में हुआ था। मनोज 3 जुलाई को शहीद हो गए थे। शहीद होने से पहले करगिल युद्ध में पांडे ने 'खालुबार टॉप' पर तिरंगा फहराया था।
पांडे गोरखा राइफल का 1997 में हिस्सा बने थे। उन्होंने कुछ ही समय में पहाड़ों पर चढ़ने, और घात लगाकर दुश्मन पर हमला करने की महारथ हासिल कर ली थी। पांडे सियाचिन में तैनात थे। अचानक उनकी बटालियन को करगिल में बुला लिया गया। यहां पाकिस्तान घुसपैठ कर चुका था।
मनोज ने आगे बढ़ कर अपनी बटालियन का नेतृत्व किया। दो महीने में उन्होंने कुकरथांग, जबूरटॉप जैसी चोटियों पर दोबारा कब्जा कर लिया। इसके बाद उन्हें खोलाबार चोटी पर कब्जा करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। मिशन का नेतृत्व कर्नल ललित राय कर रहे थे।
खोलाबार सबसे मुश्किल लक्ष्य था। इस पर चारों तरफ से पाकिस्तान का कब्जा था। पाकिस्तानी ऊंचाई पर तैनात थे। यह चोटी इसलिए अहम थी, क्यों कि यह दुश्मन का कम्युनिकेशन हब था। इसपर कब्जा करने का मतलब था, कि पाकिस्तानी सैनिकों तक रसद और अन्य मदद में कटौती होना। इससे लड़ाई को अपने हक में किया जा सकता था।
जब भारतीय सैनिकों ने इस पर चढ़ाई करना शुरू की तो पाकिस्तानियों ने गोलियां बरसानी शुरू कर दीं। इससे भारतीय जवान तितर बितर हो गए। इतना ही नहीं, पाकिस्तानियों ने तोप से गोले और लॉन्चर भी बरसाए।
कमांडिंग अफसर के निर्देश के मुताबिक, दो टुकड़ियों ने रात में ही चढ़ाई करने की योजना बनाई। एक बटालियन मनोज पांडे को दी गई। मनोज को चोटी पर बने चार बंकर उड़ाने का आदेश दिया गया। जब मनोज ऊपर पहुंचे तो उन्होंने बताया कि ऊपर चोटी पर 6 बंकर हैं। हर बंकर में 2-2 मशीन गनें तैनात थीं। ये लगातार गोलियां बरसा रहीं थीं।
मनोज पांडे जब एक बंकर में घुस रहे थे तो उनके पैर में गोली लगी, इसके बावजूद वे आगे बढ़े और हैंड-टू-हैंड कॉम्बैट में दो दुश्मनों को मार गिराया। यहां उन्होंने पहला बंकर नष्ट कर दिया। इसके बाद दुश्मनों ने धावा बोल दिया। लहूलुहान होने के बावजूद मनोज पांडे रेंगते हुए आगे बढ़े उन्होंने दो और बंकरों को तबाह कर दिया।
इसके बाद एक और बंकर बचा था, जिसे नष्ट करने का उन्हें आदेश मिला था। जैसे ही मनोज पांडे उसे नष्ट करने के लिए आगे बढ़े, दुश्मन की ओर से उन्हें चार गोलियां लगीं। लेकिन उन्होंने इसके बावजूद उस बंकर को भी उड़ा दिया।
कुछ पाकिस्तानी सैनिक वहां से भागने लगे, तो उनके मुंह से आखिरी शब्द निकला, 'ना छोड़नूं' (किसी को छोड़ना नहीं)। इसके बाद भारतीय जवानों ने उन्हें भी ढेर कर दिया। कैप्टन पांडे की बटालियन ने खालूबार पर कब्जा कर लिया।
इस अदम्य साहस के लिए उन्हें मरणोपरांत सेना का सर्वोच्च मेडल परम वीर चक्र दिया गया। उन्हें 'हीरो ऑफ बटालिक' भी कहा जाता है।