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जन्म के बाद मां ने कचरे के ढेर में फेंका, NGO की मदद से हुई पढ़ाई-लिखाई, दर्दनाक है इस शख्स की कहानी
| Published : Nov 08 2019, 12:21 PM IST / Updated: Nov 08 2019, 12:39 PM IST
जन्म के बाद मां ने कचरे के ढेर में फेंका, NGO की मदद से हुई पढ़ाई-लिखाई, दर्दनाक है इस शख्स की कहानी
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संदीप काम्बले नाम आज स्टूडेंट कमिटी के डनरल सेक्रेटरी हैं। वह स्कूल कॉलेज में कई अवॉर्ड भी अपने नाम कर चुके हैं। पर संदीप की जिंदगी के स्याह पन्ने अभी खुलने बाकी हैं जिन्हें पढ़कर किसी की भी आंखे छलक आएं। संदीप ने खुद आप-बीती सुनाई है कि कैसे वो दो बार अनाथ हुए थे। दरअसल संदीप जब 6 महीने के थे तब उनकी मां ने उन्हें कचरे के डब्बे में फेंक दिया था। संदीप के पिता की मौत हो चुकी थी और उनकी मां उनको पालने में असमर्थ थीं तो उन्होंने अपने 6 महीने के बेटे को कचरे में फेंक कर पीछा छुड़ा लिया। इसके बाद एक महिला ने बच्चे के रोने की आवाज सुनी और उसको पाल लिया।
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वह महिला वर्किंग थी और अपनी सैलरी पर बच्चे को पालने लगी और स्कूल में एडमिशन भी कवा दिया। पर संदीप जैसे-जैसे बड़े होते गए उन्हें मालूम हुआ कि वह उसकी असली मां नहीं है। वह दूसरे बच्चों को मां-बाप के साथ प्यार से रहते जिद करते देख बहुत उदास हो जाते थे। उनको अपनी एक फैमिली चाहिए थी जिसमें बिना शर्त प्यार और खुशी हो। ऐसे में संदीप को उस घर में अपनापन नहीं लगता था। जब वह 3 साल के हुए तो उन्हें अपने पड़ोस में रहने वाला एक शराबी अपना लगने लगा क्योंकि वह भी अनाथ था। वह उसके पास रोजाना जाने लगे दोनों की अच्छी पटने लगी और दोस्ती भी हो गई।
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बुजुर्ग संदीप को पार्टी करने ले जाता, उसके लिए खाना बनाता और उनको बेटे की तरह प्यार करता। पर यह खुशी संदीप के लिए पल भर की ही थी। वह शराबी कोमा में चला गया और उसकी मौत हो गई। इस हादसे ने संदीप को तोड़ दिया। वह वापस उस महिला के पास आ गए जिसने उन्हें डस्टबिन से उठाया था। अब उस महिला ने संदीप को अनाथ आश्रम भेजने की ठानी। संदीप के पैरों तले जमीन खिसक गई ये क्यों हो रहा है? अनाथ आश्रम क्या है मुझे यही रहना है ये मेरा घर है ? पर नहीं महिला ने संदीप की एक भी नहीं सुनी और उन्हें स्नेहासदन नाम के एक NGO में भेज दिया। संदीप के लिए यह एक झटका था। एक गहरा सदमा कि बाहरी दुनिया में पल-बढ़कर भी वह एक परिवार के साथ नहीं हैं। उनकी पढ़ाई और खेलने कूदने के दिन में उन्हें इस तरह भटकना पड़ रहा है। फिर संदीप ने देखा कि स्नेहासदन में उनके जैसे हजारों बच्चे हैं जिनकी अपनी कोई फैमिली नहीं है। ये बच्चे या तो छोड़ दिए गए थे या उनकी तरह फेंक दिए गए थे। वह यह बात जल्दी समझ गए।
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संदीप का कहना था कि, यहां बहुत से उनकी तरह थे जो उनके दुख को समझते थे। इसलिए उन्होंने खुद को अनाथ आश्रम के तौर तरीकों के अनुसार ढाल लिया। मैंने पढ़ाई में मन लगाया, नए दोस्त बनाए। मुझे अपने पिता की बात याद थी कि, आपका गुजरा हुआ कल आपकी जिंदगी नहीं है जो है उसमें बेहतर करो, चीजों को हमेशा नए सिरे से शुरू करो और बदलाव देखो। मैंने जमकर पढ़ाई की और देखा कि मेरे मार्क्स अच्छे आने लगे। जो लोग मेरी केयर करते थे। वो खुश होते थे। इस तरह मैंने बारहवीं अच्छे मार्क्स के साथ पास किया। फिर मैंने इंजीनियरिंग की। इसके बाद मुझे एक जॉब का ऑफर भी मिला जिसे सुनकर मैं बहुत खुश हुआ था। हालांकि तब तक संदीप अनाथ आश्रम में ही थे।
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संदीप ने अपनी नौकरी में बहुत मेहनत की। इसके बाद संदीप ने स्नेहासदन छोड़ दिया। अपनी सेविंग से उन्होंने एक फ्लैट खरीदा। आज संदीप के पास मुंबई में अपना खुद का घर है। इतना ही नहीं उन्होंने अनाथ आश्रम की ही एक लड़की से शादी की और अपना घर बसाया। आज उनके पास अपना भरा-पूरा परिवार है।
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संदीप का कहना है कि उन्होंने कभी अपनी मां को जानने की कोशिश नहीं की। वह कौन है कहां है? वह तो अपनी मां से मिलना भी नहीं चाहते क्योंकि वह उन्हें छोड़ चुकी है। संदीप का मानना है कि सगे-सौतले जैसा कुछ नहीं होता न ही खून के रिश्ते वाला परिवार ही असली है। बल्कि हमें दोस्तों को परिवार मानना चाहिए जो हमेशा सुख-दुख में साथ खड़े रहते हैं, वो अनजान लोग भी जो आपकी मदद करते हैं और वो टीचर्स और गुरुजन जो शिक्षा देते हैं। ये सब भी परिवार का ही हिस्सा हैं।