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चमोली में ग्लेशियर पिघलने से मची तबाही, त्रासदी ने 2013 की प्रलय का खौफनाक मंजर फिर याद दिलाया

चमोली.  उत्तराखंड में 7 साल बाद फिर प्रलय टूट पड़ी। रविवार सुबह चमोली में जिले के जोशीमठ में ग्लेशियर टूटने से धौलीगंगा नदी का जलस्तर बढ़ गया है। इस आपदा में जिले के तपोवन इलाके में स्थित ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट तहस-नहस हो गया। यहां काम कर रहे 150 से ज्यादा लोगों के बहने की खबर है। पानी के बहाव से तपोवन बैराज, श्रीनगर डैम और ऋषिकेश डैम भी क्षतिग्रस्त हुए हैं। घटना की भयावहता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उत्तराखंड से लेकिर यूपी तक अलर्ट जारी किया गया है। गंगा नदी के किनारे रहने वालों को ऊंचे स्थलों पर जाने को कहा गया है। आपको बता दें कि उत्तराखंड में इससे पहले 16-17 जून, 2013 में बादल फटने से ऐसी प्रलय आई थी। तब  रुद्रप्रयाग, चमोली, उत्तरकाशी, बागेश्वर, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ जिलों में भारी तबाही हुई थी। चमोली की घटना ने उस प्रलय के जख्म ताजा कर दिए...

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Asianet News Hindi
Published : Feb 07 2021, 03:09 PM IST| Updated : Feb 07 2021, 03:12 PM IST
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क्या हैं ग्लेशियर और क्यूं टूटते हैं
ग्लेशियर ( Glacier) या हिमानी या हिमनद एक विशाल आकार के बर्फीले पहाड़ों को कहते हैं। ये पर्वतों से नीचे की ओर गतिशील होते हैं। जैसे-जैसे ग्लेशियर के ऊपरी हिस्से पर बर्फ का भार बढ़ता जाता है, उसकी निचले हिस्से पर दबाव पड़ने लगता है। ग्लेशियर पिघलने की एक बड़ी वजह ग्लोबल वार्मिंग, वनों का कटना माना जाता है। इससे गुरुत्वाकर्षण बढ़ता है और ग्लेशियर पिघलने लगते हैं। जब भी किसी ग्‍लेशियर का कोई हिस्‍सा टूटकर उससे अलग होता है, तो इसे तकनीकी रूप से काल्विंग (Glacier Calving) कहते हैं।
(पहली तस्वीर चमोली में ग्लेशियर टूटने की है, दूसरी 2013 की )
 

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17 जून, 2013 को अचानक इतनी बारिश हुई थी कि पहाड़ियां मानों पिघलकर बहने लगी थी। तब 340 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई थी। यह सामान्य बेंचमार्ग 65.9 मिमी से 375 प्रतिशत अधिक थी।
 

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2013 में बादल फटने से असिगंगा और भागीरथी नदी का जलस्तर बढ़ गया था। इसके बाद गंगा और यमुना भी उफान पर आ गई थीं।

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2013 की त्रासदी में बेशक सरकारी तौर पर 4,400 से अधिक लोग मारे गए या लापता हो जाने की खबर थी, लेकिन माना गया कि इसमें 10000 लोग हताहत हुए।
 

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2013 की त्रासदी में सैकड़ों घर-पुल आदि टूट गए थे। इन्हें दुबारा बनाने में कई साल लगे।

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2013 की त्रासदी में इस तरह बर्बादी का मंजर देखने को मिला था। घर मलबे में बदल गए थे।

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2013 की त्रासदी में सड़कें ताश के पत्तों की तरह बिघर गई थीं। कई गांवों का संपर्क पूरी तरह कट गया था।

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यह तस्वीर चमोली में ग्लेशियर टूटने के बाद नदी में आई बाढ़ की है। इसका असर 250 किमी दूर तक रहने की आशंका है।
 

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