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वैक्सीन से हो जाएगा कोरोना, दस साल बाद बदल जाएगा DNA? डॉक्टर से जानें इन अफवाहों का सच क्या है
नई दिल्ली. कोरोना के कहर के बीच कई देशों ने वैक्सीन के प्रयोग को मंजूरी देकर वैक्सीनेशन भी शुरू कर दिया है। भारत में भी कोरोना वैक्सीन के इमरजेंसी इस्तेमाल को मंजूरी मिल गई है। IMA यानी इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व प्रेसीडेंट पद्मश्री डॉ केके अग्रवाल कोरोना को लेकर आम जनता को जागरूक कर रहे हैं। इसके अलावा वो विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ मिलकर कोरोना पर लंबे समय से काम कर रहे हैं। कोरोना वैक्सीन को लेकर उड़ रही तमाम अफवाहों पर उन्होंने मीडिया से बात करते हुए उसका खंडन किया है।
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मीडिया से बातचीत में डॉ अग्रवाल ने बताया कि सबसे पहले जान लीजिए कि वैक्सीन का मतलब है एकतरह की मॉक ड्रिल। इसका अर्थ है कि हमारे शरीर में वैक्सीन जाने से अपने आप एंटीबॉडीज बनने लगती हैं। इसे इस तरह से समझिए पहले वायरस को मार दिया और मरे हुए वायरस को काट दिया और काटकर इंजेक्ट कर दिया। इस वैक्सीन को बोलते हैं कोवैक्सीन।
इसी तरह अगर आपने वायरस को काटकर आधा हिस्सा बॉडी में डाल दिया तो वो कोविशील्ड कहलाता है।
वैक्सीन से कोरोना हो सकता है जैसी अफवाह पर डॉ केके अग्रवाल ने साफ किया कि भला कैसे हो जाएगा वैक्सीन से कोरोना, ये समझने वाली बात है। वैक्सीन के जरिये जो भेजा गया वो मरा हुआ वायरस है, उससे कैसे हो जाएगा। ये संभव ही नहीं है जब वायरस जिंदा है ही नहीं। वैसे भी मरा हुआ वायरस ज्यादा एंटीबॉडी बनाता है।
वैक्सीन से नपुंसकता हो सकती है इस अफवाह पर डॉ अग्रवाल ने कहा कि ये तो हास्यास्पद बात है। आज तक कौन सी वैक्सीन से नपुंसकता हुई है, जो इससे हो जाएगी। वैक्सीन पूरी तरह ये देखकर बनाई जाती है कि इससे दूसरी बीमारियां नहीं होती। ये पूरी तरह टेस्टेड होती हैं।
दस साल के बाद जीन-डीएनए बदल जाएंगे इस अफवाह पर उन्होंने कहा कि ऐसा कभी संभव नहीं हो सकता। क्योंकि न्यूक्लियस में वायरस जा ही नहीं रहा, न वैक्सीन इस स्तर पर जा रही। इसलिए इस तरह से सोचना पूरी तरह अवैज्ञानिक है।