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- 5 की उम्र में कटा पैर, ईट भट्टे में काम करती थी मां..ऐसा है सिल्वर मेडलिस्ट मरियप्पन थंगावेलु का संघर्ष
5 की उम्र में कटा पैर, ईट भट्टे में काम करती थी मां..ऐसा है सिल्वर मेडलिस्ट मरियप्पन थंगावेलु का संघर्ष
स्पोर्ट्स डेस्क : टोक्यो पैरालंपिक (Tokyo Paralympics 2020 ) में मंगलवार को हाई जंप के T63 इवेंट में भारत के मरियप्पन थंगावेलु (Mariyappan Thangavelu) ने सिल्वर मेडल जीता है। थंगावेलु का ये दूसरा मेडल है इससे पहले उन्होंने रियो पैरालंपिक में गोल्ड मेडल जीता था। 26 साल के इस युवा खिलाड़ी ने आज पूरी दुनिया को बता दिया कि अगर हौसले मजबूत हो, तो कोई भी परेशानी घुटने टेकने को मजबूर हो जाती है। दरअसल, मरियप्पन और मजबूरी का साथ भी सालों तक चला। 5 साल की उम्र में एक पैर गवाने के बाद उन्हें बहुत गरीबी में अपना जीवन जीना पड़ा। आइए आज आपको बताते हैं, सिल्वर मेडलिस्ट मरियप्पन थंगावेलु की संघर्ष की कहानी....
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मरियप्पन थंगावेलु का जन्म 28 जून 1995 को तमिलनाडु के गांव पेरियावादगमपट्टी, सालेम में हुआ था। उनके घर में एक बड़ी बहन और दो छोटे भाई है। उनके पिता का एक हादसे में निधन हो गया था।
मरियप्पन का बचपन बहुत गरीबी में बीता है। पति की मौत के बाद उनकी मां सरोजा देवी ईट उठाने का काम किया करती थी। लेकिन एक दिन उन्हें सीने में दर्द हुआ तो मरियप्पन ने किसी से 500 रुपये उधार लेकर उनका ईलाज करवाया। जिसके बाद सरोजा देवी ईठ उठाने का काम छोड़कर सब्जियां बेचना शुरू कर दी।
जब मरियप्पन 5 साल के थे, उनके साथ वो हादसा हुआ जिसने उनकी पूरी जिंदगी को बदलकर रख दिया। दरअसल, जब वह सड़क पर खेल रहे थे, तो एक बस ने उनको इतनी जोर से टक्कर मारी की उनका एक पैर खराब हो गया। इतना ही नहीं पैर खराब हो जाने की वजह से डॉक्टरों को उनका पैर तक काटना पड़ा।
मरियप्पन के ईलाज कराने के लिए उनकी मां को 3 लाख रुपये उधार लेने पड़े। इस लोन को मरियप्पन का परिवार 2016 तक भी नहीं चुका पाया था। जब पैरालंपिक खेलों का आयोजन शुरू हुआ तो उस समय तक इनका पूरा परिवार किराए के मकान में ही रहता है।
मरियप्पन के साथ भीषण हादसा हो जाने के बाद उन्हें 17 सालों तक कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटने पड़े। जिसके बाद उनके परिवार को कुल 2 लाख रुपये का मुआवजा प्राप्त हुआ। इसमें से भी 1 लाख रुपये तो वकीलों को फीस के तौर पर चुकाने पड़ें। बाकि बचे एक लाख को उनकी मां ने बैंक में जमा करा दी ताकि भविष्य में मरियप्पन के काम आ सके।
मरियप्पन को बचपन से ही वॉलीबाल खेलने का काफी शौक था एक पैर कटने के बाद भी खेलों के लेकर उनकी लग्न को देखकर उनके एक टीचर ने उन्हें हाई जंप करने की सलह दी। जिसके बाद मरियप्पन ने इसमें ही करियर बनाने का मन बनाया।
14 साल की उन्होंने हाई जंप प्रतियोगिता में भाग लिया। जिसमें वह दूसरे नंबर के खिलाड़ी रहें। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और पैरालंपिक के लिए मेहनत करते गए और उनकी मेहनत 2016 में सफल हुई।
2016 में रियो में आयोजित रियो पैरांलपिक में में हाई जपंर मरियप्पन थंगावेलु ने हाई जम्प T42 वर्ग में गोल्ड मेडल अपने नाम किया। इसके बाद उन्हें 2017 में पद्म श्री अवार्ड और अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित भी किया गया।
इसके बाद 31 अगस्त 2021 को उन्होंने इतिहास रचा और दूसरी बार पैरांलपिक में मेडल अपने नाम किया। उन्होंने पुरुषों के ऊंची कूद टी63 फाइनल में शानदार प्रदर्शन करते हुए सिल्वर मेडल जीता है। इसी मुकाबले में शरद कुमार को ब्रॉन्ज मेडल मिला। टोक्यो पैरालंपिक में भारत का यह 10वां मेडल है।