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ये कैसी मुसीबत..रुला देगी मजदूर की बेबसी, साइकिल पर बोरा..बोरे में दिव्यांग बेटी को भरकर चल पड़ा...
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लॉकडाउन में पलायन कर रहे मजदूरों की यह तस्वीरें 1947 में हुए देश के विभाजन की याद दिलाती है। तस्वीर में दिखाई दे रहा है यह प्रवासी मजदूर परिवार को लेकर साइकिल से दिल्ली से अपने घर यूपी के लिए निकला है। जहां उसने अपनी मासूम दिव्यांग बेटी को बोरी में भरकर साइकिल पर लटका रखा है।
आप तस्वीर में साफ तौर पर देख सकते हैं कि किस तरह वो बोरे से झांक रही है। मासूम की इन आंखें में कोरोना के खौफ, भूख, तपती गर्मी, दर्द और मजबूरियों की दिखाई दे रही हैं।
बुरे वक्त का मारा इस प्रवासी मजदूर ने अपने बेटी के साथ साइकिल पर पीछे खाने का कुछ सामान भी लाद रखा है। क्योंकि रास्ता काफी लंबा है, ऐसे में वह इस खाने को बीच रास्ते में अपने बच्चों और परिवार को खिलाएगा।
तस्वीर में आप देखते हैं कि मजदूर के कछ बच्चे नंगे परे पैदल भी चल रहे हैं। बच्ची पापा की मदद करने के लिए साइकिल को पीछे से धक्का लगा रही है।
यह तस्वीर राजस्थान की है, जहां मजदूर शिवलाल अपनी वर्षा और तीन बच्चों के साथ मध्य प्रदेश के दमोह जाने के लिए पैदल सफर कर रहा है। घर पहुंचने की जिद में उसको तपती दुपहरी में उखड़ी हुई सड़क पर बिखरे कंकरों की चुभन भी महसूस नहीं हो रही।
यह तस्वीर अहमदाबाद की है, जहां दिव्यांग प्रदीप घर जाने के लिए अपनी बैसाखियों के सहारे चला जा रहा है। उसको राजस्थान जाना है, जब ट्रक वालों ने उसे लिफ्ट नहीं तो वह पैदल ही चल पड़ा।