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एक टाइम मुट्ठीभर चावल खाकर मेरा पेट कैसे भरेगा, मेरा दूध नहीं उतर रहा, अपनी बेटी को क्या पिलाऊं?
नई दिल्ली. यह हैं 22 साल की महक। उत्तराखंड की रहने वाली महक अपने पति के साथ दिल्ली में रहकर मेहनत-मजदूरी करती हैं। लेकिन लॉकडाउन के कारण दम्पती बेरोजगार बैठा है। महक ने लॉकडाउन के दौरान ही बेटी को जन्म दिया। मां बनने की खुशी जैसे उन्हें नसीब नहीं हो पा रही है। एक मां के लिए नवजात के दूध के वास्ते सही समय पर पौष्टिक भोजन जरूरी होता है। लेकिन महक को पौष्टिक भोजन तो दूर, पर्याप्त खाना तक नसीब नहीं हो रहा। वे एक टाइम थोड़ा-बहुत खाकर अपना पेट भर रही हैं। लेकिन उन्हें इस बात की फिक्र है कि खाना नहीं मिलने से उनका दूध नहीं उतर रहा..ऐसे में बेटी की भूख कैसे मिटाएं? यह बताते हुए वे फूट-फूटकर रोने लगती हैं। नैनीताल के एक गांव की रहने वालीं महक ने बताया कि अगर उन्हें ऐसे ही भूखे रहना पड़ा, तो उनकी बेटी का क्या होगा? महक का पति गोपाल पुरानी दिल्ली के टाउनहॉल इलाक़े की एक बिल्डिंग में मज़दूरी करता था। अपनी बेटी को भूख से बिलबिलाते देखकर गोपाल के भी आंसू निकल आते हैं।
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महक कहती हैं कि अगर उनकी बच्ची न होती, तो वे अपनी तकलीफ सहन कर लेतीं, लेकिन अब मजबूर हैं।
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महक का पति गोपाल अपनी बेटी को रोते देखकर मायूस हो जाता है। वो सिर्फ इतना पूछता है कि ऐसा कब तक चलेगा?
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गोपाल को अपने से ज्यादा अपनी बच्ची की फिक्र है। इसलिए वो अपने हिस्से का भोजन भी महक को दे देता है।
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महक को सिर्फ एक टाइम भोजन मिल पा रहा है, वो भी थोड़ा-सा चावल।
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यह तस्वीर प्रवासी मजदूरों की मजबूरी को दिखाती है। गंदगीभरी जगह पर उन्हें गुजर-बसर करनी पड़ रही है।
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यह तस्वीर प्रवासी मजदूरों की तकलीफ को दिखाती है। मजदूर मायूस हैं। काम बंद है, खाने के लिए हाथ फैलाने पड़ रहे हैं।
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