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सड़कों पर जिंदगी गुजार 2 वक्त की रोटी कमाने वाले लोहारों ने पेश की मिसाल, लोहे से भी मजबूत है हौसला

दिल्ली. दिहाड़ी करके दो वक्त की रोटी कमाने वाले लाखों मजदूरों की जिंदगी ठहर सी गई है। लॉकडाउन की वजह से उनके काम-धंधे ठप हो गए हैं, ऐसे हालतों में अपने आपको जिंदा रखने के लिए वह पलायन कर रहे हैं। इसी बीच इन बेसाहार लोगों की मदद के लिए के सड़क किनारे रहकर लोहे के बर्तन और औजारों को बनाने वाले लौहारों ने एक मिसाल पेश की है। जिनके हौसलों को हर कोई सलाम कर रहा है।  

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Arvind Raghuwanshi
Published : May 13 2020, 04:26 PM IST| Updated : May 13 2020, 04:29 PM IST
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खुद के पास नहीं, फिर भी की दूसरों की मदद: दरअसल, यह कहानी दिल्ली के पुटपाथ पर रकहर रोटी रोटी कामाने वाले लौहारों की है। जहां उनकी करीब 127 से ज्यादा बस्तियां हैं। वह सड़क किनारे बैठकर लोहे का सामान बनाते हैं। इस समय उनके पास भी कोई काम नहीं है, इसके बाद भी उन्होंने संकट के दौर में गरीबों के पेट भरने के लिए अपनी समाज के लोगों से चंदा किया और 51 हजार रुपए जुटाकर एक सामाजिक संस्था को दान दिया है। जो ऐसे समय में भूखे लोगों को खाना बनाकर बांट रही है।

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कही दिल को छू लेने वाली बात: लोहारों समाज के लोगोंने कहा-हम समझ सकते हैं कि भूख क्या होती है। अगर हमारे पास थोड़ा-बहुत कुछ है तो ऐसे समय में उनकी मदद करनी चाहिए जिनके पास कुछ भी नहीं है। आज हम इनकी मदद करेंगे तो कल कोई हमारी सहायता करेगा।  

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वहीं कुछ दिन पहले जब राजस्थान के भीलभाड़ा में रहने वाले इन लोहारों के लिए जब सामाजिक संस्थाएं राशन बांटने क लिए  गईं तो उन्हों ने इसे लेने से इंकार कर दिया था। उन्होंने कहा-अभी हमारे पास रखा हुआ है, इसको किन्हीं और गरीबों को बांट दीजिए। यह आप  हमको देंगे तो कुछ दिन तक  रखा रहेगा। लेकिन जरूरतमंदों को राशन सामग्री का वितरण करेंगे उनकी अभी भूख मिट जाएगी।

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दिलचस्प है इन लौहारों की कहानी: बता दें कि गाड़ियां लेकर चलने वाले इन लौहारों की कहानी भी दिलचस्प है। इनके इतिहास को हम सबने किताबों में पढ़ा है, यह लोग उन्हीं के बंशज हैं जिनके पूर्वजों ने मुगलों  से लोहा लेते हुए उनके दांत खट्टे किए थे। यानी यह लौहार समाज महान सम्राट महाराणा प्रताप के समाज से आते हैं। यह लोग बेहद सादे तरीके से अपना जीवन यापन करता है और एक जगह से दूसरी जगह गाड़ियों के जरिए घूमते रहते हैं। उनके बारे में ऐसा कहा जाता है कि वह एक जगह लंबे वक्त तक नहीं रहते हैं।

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डेरे से कर देते हैं बच्चों की शादी: बता दें कि यह लोहार सड़क किनारे मिट्टी के पांच-छह फीट ऊंचे कच्चे मकान बनाकर रहते हैं। इनके पास दो-चार मवेशी, एक बैल गाड़ी और कुछ लोहा-लक्कड़ यही इनकी संपत्ति होती है। सर्दी हो या गर्मी या फिर बारिश, हर मौसम यह लोग ऐसे ही घर में रहते हैं। इतना ही नहीं अपने बच्चों की शादियां भी वह इन्हीं डेरे से कर देते हैं। 

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महिलाएं भी पीटती हैं लोहा: महिलाएं भी मेहनत करती हैं वह पुरुषों के साथ लोहे को कूटने का काम करती हैं। इनको जो कुछ भी लोहे के औजार बनाकर मिलता है, उससे अपना और परिवार का पेट पालते हैं।

About the Author

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Arvind Raghuwanshi
अरविंद रघुवंशी। 2012 से पत्रकारिता जगत में कार्यरत हैं, 13 साल का अनुभव। 2019 से एशियानेट न्यूज हिंदी में बतौर सीनियर चीफ सब एडिटर के तौर पर काम कर रहे हैं। हाइपर लोकल या कह लें स्टेट टीम को ये लीड कर रहे हैं। उन्होंने माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय (MCU) से मास्टर ऑफ जर्नलिज्म (MJ) किया है। नेशनल, पॉलिटिक्स, क्राइम और फीचर स्टोरीज में लिखना पसंद है। दैनिक भास्कर के डिजिटल विंग, राजस्थान पत्रिका, राष्ट्रीय हिंदे मेल जैसे मीडिया संस्थानों में भी ये काम कर चुके हैं।

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