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- 'थाली बजाने' की ऑटोमेटिक देसी जुगाड़...देखिए जब दिक्कतें सामने आती हैं, तो कैसे हो जाते हैं धांसू आविष्कार
'थाली बजाने' की ऑटोमेटिक देसी जुगाड़...देखिए जब दिक्कतें सामने आती हैं, तो कैसे हो जाते हैं धांसू आविष्कार
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देसी जुगाड़ का यह अनूठा मामला सोशल मीडिया पर वायरल है। इसमें लगे पंखे बिना बिजली के हवा के दबाव से घूमते हैं। इसमें साइकिल की बीयरिंग का इस्तेमाल किया गया है, जिस पर ये पंखुड़ियां घूमती हैं। आगे पढ़िए कैसे काम करता है यह देसी जुगाड़...
पंखुड़ियों के घूमने से बीयरिंग से बंधी लोहे की एक पतली रॉड भी घूमती है। इसके दोनों छोर पर छोटे नस कंसे हुए हैं। इनके घूमने से नट थाली पर पड़ते हैं। जब यह तेजी से घूमते हैं, तो तेज आवाज आती है। इससे टिड्डियां और जानवर खेत से भाग जाते हैं। आगे पढ़े बिलासपुर में रेलवे ने बनाई अनूठी साइकिल...
बिलासपुर, छत्तीसगढ़. भारतीय रेलवे ने सबसे सस्ते मॉडल यानी करीब 5 हजार रुपए वाली साइकिल को अपने के लिए बेहद काम की चीज बना दिया। साइकिल के बाद अब रेलवे ट्रैक की पेट्रोलिंग करना आसान हो गया है। दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे जोन-बिलासपुर अब इस साइकिल का इस्तेमाल करने लगा है। बता दें कि बिलासपुर में 13 हजार ट्रैकमेंटेनर हैं। प्रत्येक करीब 5 किमी पैदल चलकर रेलवे ट्रैक की निगरानी करता है। इस साइकिल के जरिये अब वे 15 किमी तक बिना थके पेट्रोलिंग कर सकते हैं। इस जुगाड़ वाली साइकिल का नार्थ वेस्टर्न रेलवे-अजमेर पहले ही सफल प्रयोग कर चुका है। इस साइकिल पर हथौड़ा, पेचकस, प्लास आदि भारी चीजों को एक थैले में रखकर आसानी से लटकाया जा सकता है। आगे पढ़ें इस साइकिल की खूबी...
इस साइकिल का वजन महज 20 किलो है। वहीं इसकी गति 10 किमी/प्रति घंटा है। सबसे पहले इस देसी जुगाड़ वाली साइकिल का प्रयोग नार्थ-वेस्टर्न रेलवे-अजमेर ने पेट्रोलिंग में किया था। साइकिल के अगले पहिये को एक लोहे के पाइप के जरिये व्हील से जोड़ा जा गया है। वहीं, दूसरी पटरी तक भी एक व्हील दो पाइप के जरिये जोड़ी गई है। इससे साइकिल व्हील पर तेजी से पटरी पर भागती है। आगे पढ़िए कोरोना से बचने दुकानदार का अनूठा आविष्कार...
यह मामला सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है। किसी गांव के एक दुकानदार ने कोरोना संक्रमण को देखते हुए सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने यह अनूठी मशीन बना दी। उसने साइकिल के पहिये, रस्सी और तसले से एक मशीन तैयार की। तसला रस्सी से बंधा है। यह साइकिल के पहिये को घुमाने पर आगे-पीछे जाता है। दुकानदार इसमें चीजें रखकर दूर खड़े ग्राहक तक पहुंचा सकता है। आगे पढ़िए बच्चे ने बनाई..अनूठी बाइक...
देसी जुगाड़ का यह मामला मध्य प्रदेश के नरसिंहगढ़ जिले के आमला गांव का है। यहां 9वीं क्लास के बच्चे ने देसी जुगाड़ से साइकिल को बाइक में बदल दिया। इस बच्चे ने पापा से बाइक की डिमांड की थी। लेकिन पिता ने सुरक्षा की दृष्टि से उसे साइकिल दिला दी। बच्चे ने लॉकडाउन में अपनी क्रियेटिविटी का सदुपयोग किया और साइकिल में ही इंजन लगाकर उसे बाइक में बदल दिया। हालांकि उसने साफ कहा कि वो इस बाइक को सिर्फ मोहल्ले में चलाएगा। ट्रैफिकवाली जगहों पर नहीं जाएगा। आगे पढ़िए इसी खबर का शेष भाग...
कबाड़ में पड़े इंजन का किया सदुपयोग
यह है अक्षय राजपूत। इन्होंने कबाड़ी से पुरानी चैम्प गाड़ी का इंजन खरीदा। इसके बाद कुछ दिनों की मेहनत से उसे साइकिल में फिट करके बाइक का रूप दे दिया। अक्षय के पिता बताते हैं कि उसे इस तरह के प्रयोग का शौक रहा है। इसी शौक की वजह से उसे कलेक्टर और विधानसभा अध्यक्ष ने सम्मानित किया था। अक्षय के पिता टेंट हाउस चलाते हैं। उन्होंने बताया कि अक्षय ने वादा किया कि वो इस बाइक को ट्रैफिक वाली जगहों पर नहीं ले जाएगा। आगे पढ़िए..किसान ने खेती के लिए बनाया सुपर स्कूटर...
देसी जुगाड़ का यह मामला झारखंड के हजारीबाग जिले के विष्णुगढ़ के उच्चघाना से जुड़ा है। यह मामला कुछ समय पुराना है, लेकिन इसे आपको इसलिए पढ़ा रहे हैं, ताकि मालूम चले कि असंभव को कैसे संभव किया जाता है। यह हैं रमेश करमाली। ये संयुक्त परिवार में रहते थे। लेकिन एक दिन इनके छोटे भाई ने मजबूरी में अपनी दोनों भैंसें बेच दीं। भैंसें खेतों की जुताई में भी काम आती थीं। लिहाजा, रमेश को अपने खेत जोतने में दिक्कत होने लगी। कुछ समय तो उन्होंने दूसरों से बैल लेकर काम चलाया, लेकिन ऐसा कब तक चलता। रमेश एक छोटे-मोटे मैकेनिक भी रहे हैं। उन्होंने तीन हजार में कबाड़ से एक स्कूटर खरीदा और पांच हजार रुपए और खर्च करके देसी जुगाड़ से पॉवर टीलर बना लिया। आगे पढ़ें इसी खबर का शेष भाग..
यह पॉवर टीलर दस गुने कम खर्च पर खेतों की जुताई कर रहा है। यानी ढाई लीटर पेट्रोल में पांच घंटे तक खेतों की जुताई कर सकता है। रमेश तीन भाई-बहनों में सबसे बड़े हैं। तीन साल की उम्र में वे पिता के साथ पुणे चले गए थे। पिता वहां मजदूरी करते थे। 1995 में रमेश बजाज शोरूम पर काम करने लगे। 2005-06 में बजाज कंपनी से मैकेनिक की ट्रेनिंग ली। लेकिन कम पढ़े-लिखे होने से उन्हें जॉब नहीं मिली, तो वे गांव लौट आए। यह कहानी यह बताती है कि समस्याओं का समाधान आपके नजरिये से जुड़ा है।